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________________ जीवन कोमल है और मृत्यु कठोर है जैसे लाश के साथ बलात्कार कर सक तोड़ भी नहीं से, प्रार्थना भरहे. और किसा भी नहीं जान पार उतने आश्वासन से नहीं कह सकते कि यही आखिरी है। जल्दी ही इलेक्ट्रान भी टूटेगा। चीर बढ़ता ही चला जाता है। चीर बढ़ता ही चला जाएगा। क्योंकि रहस्य पीछे सरकता जाता है। मैंने कहा कि तुम किसी स्त्री को निर्वस्त्र कर सकते हो, नग्न नहीं। और जब तुम निर्वस्त्र कर लोगे तब स्त्री और भी गहन वस्त्रों में छिप जाती है। उसका सारा सौंदर्य तिरोहित हो जाता है; उसका सारा रहस्य कहीं गहन गुहा में छिप जाता है। तुम उसके शरीर के साथ बलात्कार कर सकते हो, उसकी आत्मा के साथ नहीं। और शरीर के साथ बलात्कार तो ऐसे है जैसे लाश के साथ कोई बलात्कार कर रहा हो। स्त्री वहां मौजूद नहीं है। तुम उसके कुंआरेपन को तोड़ भी नहीं सकते, क्योंकि कुंआरापन बड़ी गहरी बात है। लाओत्से वैज्ञानिक की तरह जीवन के पास नहीं गया निरीक्षण करने। उसने प्रयोगशाला की टेबल पर जीवन को फैला कर नहीं रखा है। और न ही जीवन का डिसेक्शन किया है, न जीवन को खंड-खंड किया है। जीवन को तोड़ा नहीं है। क्योंकि तोड़ना तो दुराग्रह है; तोड़ना तो दुर्योधन हो जाना है। द्रौपदी नग्न होती रही है अर्जुन के सामने। अचानक दुर्योधन के सामने बात खतम हो गई; चीर को बढ़ा देने की प्रार्थना उठ आई। वैज्ञानिक पहुंचता है दुर्योधन की तरह प्रकृति की द्रौपदी के पास; और लाओत्से पहुंचता है अर्जुन की तरह-प्रेमातुर; आक्रामक नहीं, आकांक्षी; प्रतीक्षा करने को राजी, धैर्य से, प्रार्थना भरा हुआ। लेकिन द्रौपदी की जब मर्जी हो, जब उसके भीतर भी ऐसा ही भाव आ जाए कि वह खुलना चाहे और प्रकट होना चाहे, और किसी के सामने अपने हृदय के सब द्वार खोल देना चाहे। तो जो रहस्य लाओत्से ने जाना है वह बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी नहीं जान पाता। क्योंकि जानने का ढंग ही अलग है। लाओत्से का ढंग शुद्ध धर्म का ढंग है। धर्म यानी प्रेम। धर्म यानी अनाक्रमण। धर्म यानी प्रतीक्षा। और धीरे-धीरे राजी करना है। धर्म एक तरह की कोर्टिंग है। जैसे तुम किसी स्त्री के प्रेम में पड़ते हो, उसे धीरे-धीरे राजी करते हो। हमला नहीं कर देते। विज्ञान अति आतुर है, अधैर्यवान है। वह जल्दी हमला कर देता है। और तब उसके हाथ में जो लगता है वह कचरा है। उसकी उपयोगिता कितनी ही हो, उसमें अर्थ बहुत ज्यादा नहीं है। उससे यंत्र बन सकते हों, क्योंकि यंत्र मुर्दा हैं। और विज्ञान जबरदस्ती में प्रकृति को मार लेता है। इसलिए मृत्यु का जो राज है वह तो उसे पता चल जाता है; इसलिए यंत्र बना लेता है, क्योंकि यंत्र यानी मुर्दा चीजें। लेकिन जीवन का रहस्य नहीं खोल पाता। लाओत्से ऐसा गया है जीवन के तथ्यों के पास जैसा सुहागरात के दिन कोई अपनी नववधू के पास जाता है, आहिस्ता-आहिस्ता चूंघट उठाता हैउतना ही उठाता है जितने से ज्यादा वधू को राजी पाता है, उससे ज्यादा नहीं। और तब धीरे-धीरे जीवन अपने सब रहस्य खोल देता है। और लाओत्से के समक्ष जीवन ने ऐसे रहस्य खोल दिए हैं जो बहुत बड़े-बड़े वैज्ञानिकों, दार्शनिकों, तार्किकों के समक्ष छिपे रह गए हैं। लाओत्से के सामने छोटी-छोटी चीजों ने बड़े-बड़े द्वार खोल दिए हैं; राह के किनारे पत्थर माणिक-मोती हो गए हैं। लाओत्से को समझोगे तो पाओगे वह बहुत छोटी-छोटी चीजों की बात कर रहा है। लेकिन छोटी-छोटी चीजें बहुत बड़ी हो गई हैं। वैज्ञानिक बड़ी-बड़ी चीजों की बात करते हैं और बड़ी-बड़ी चीजें बहुत छोटी हो जाती हैं। वैज्ञानिक अगर चांद-तारों की भी बात करे तो छोटे हो जाते हैं। लाओत्से अगर फूल-पत्तों की भी बात करता है तो बड़े हो जाते हैं। धर्म का स्पर्श प्रत्येक चीज को विराट कर देता है। विज्ञान का स्पर्श प्रत्येक चीज को क्षुद्र कर देता है। और वही स्पर्श पाने योग्य है जिससे हर कण ब्रह्म हो जाए। उस स्पर्श का क्या करोगे जिससे ब्रह्म को छुओ और वह अणु हो जाए? क्षुद्र को बना कर तुम क्या करोगे? क्योंकि जितना तुम्हारे पास क्षुद्र इकट्ठा हो जाएगा, उसमें घिरे-ध्यान रखना-तुम भी क्षुद्र हो जाओगे। तुम जो खोजोगे वह तुम्हें निर्मित करेगा। तुम जो उघाड़ लोगे वह तुम्हें भी बनाएगा। क्योंकि उघाड़ने वाला बाहर नहीं रह सकता घटना के। इसलिए जो क्षुद्र की खोज में लगता है और 285
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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