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________________ ताओ उपनिषद भाग क्षुद्रतर को पाता चला जाता है, वह धीरे-धीरे क्षुद्र हो जाता है। हो ही जाएगा। लेकिन जो क्षुद्र को विराट करने की कला जानता है, जो जहां छूता है वहीं से अनंत का द्वार खुलने लगता है, उसके स्पर्श में धर्म आ गया। उसका स्पर्श पारस हो गया। और उसके स्पर्श में वह स्वयं भी तो घिर जाएगा, वह स्वयं भी धीरे-धीरे विराट हो जाएगा। इन तथ्यों को खयाल में रखो, फिर लाओत्से की बड़ी छोटी-छोटी बातों में छिपे बड़े राजों को समझना कठिन न होगा। कहता है लाओत्से, 'जब आदमी जन्म लेता है, वह कोमल और कमजोर होता है।' सभी के घरों में बच्चे जन्म लेते हैं। लेकिन तुमने कभी यह देखा कि बच्चे कोमल हैं, कमजोर हैं? सभी के घर में बूढ़े मरते हैं। तुमने कभी यह देखा कि बूढ़े कठोर और सख्त हैं? अगर तुमने यह देखा तो तुम्हें जीवन का एक बड़ा रहस्य हाथ आ गया कि अगर चाहते हो कि सदा जीवित रहो तो कोमल बने रहना। किसी भी कारण से सख्त मत हो जाना। क्योंकि सख्ती हर हालत में मौत की खबर है। और तुम्हें हजार तरह की सख्तियों ने घेर लिया है। फिर तुम तड़फड़ाते हो। और फिर तुम कहते हो, जीवन कहां है? अपने हाथ मरते हो, आत्मघात करते हो। क्योंकि सख्त होते चले जाते हो। और फिर पूछते हो, जीवन कहां? फिर पूछते हो, शांति नहीं। फिर पूछते हो, आनंद नहीं। फिर पूछते हो, जीवन की पुलक खो गई; नृत्य खो गया; काव्य नहीं। होगा कैसे? तुम सख्त हो, और सख्त बहुत-बहुत आयाम से हो।। और तुम्हारी सारी दीक्षा-शिक्षा तुम्हें सख्त बनाने की है। हिंदू कहते हैं, मजबूती से हिंदू हो जाओ, सख्त हिंदू। मुसलमान समझाते हैं, कठोर मुसलमान। कोई तुम्हें डिगा न सके; पत्थर की चट्टान हो जाओ। ईसाई सिखाते हैं कि चाहे मर जाना, मगर अपना सिद्धांत कभी मत छोड़ना। और तुम ऐसे लोगों की बड़ी प्रशंसा करते हो कि कितना दृढ़ आदमी है। लेकिन तुम्हें पता है कि दृढ़ता यानी सख्ती! सख्ती यानी मौत! लाओत्से बड़ा छोटा सा तथ्य पकड़ रहा है। पर यह बड़ी खुली आंखों से देखी गई बात है। देखता है, 'जब आदमी जन्म लेता है, वह कोमल और कमजोर होता है; मृत्यु के समय वह कठोर और सख्त हो जाता है। जब वस्तुएं और पौधे जीवंत हैं, तब वे कोमल और सुनम्य होते हैं; और जब वे मर जाते हैं, वे भंगुर और शुष्क हो जाते हैं। इसलिए कठोरता और दुर्नम्यता मृत्यु के साथी हैं, और कोमलता और मृदुता जीवन के साथी हैं।' यह किसी शास्त्र का वचन नहीं है। ऐसा तुमने किसी शास्त्र में लिखा देखा है? किसी उपनिषद में, किसी वेद में, किसी बाइबिल में, किसी कुरान में यह वचन है? अगर तुम खोजने चलोगे तो पाओगे, इससे विपरीत वचन तुम्हें सब शास्त्रों में मिल जाएंगे। यह वचन तो तुम्हें केवल जीवन के शास्त्र में मिलेगा। इसलिए लाओत्से बड़ा ताजा है-सुबह की ओस की भांति, रात के चांद-तारों की भांति, वृक्षों में आई नयी कोंपलों की भांति। एकदम ताजा है; जीवन से सीधी खबर ला रहा है। उसका संदेश जीवंत है। वह किसी शास्त्र को सिद्ध करने में नहीं लगा है। वह सिर्फ इतना कह रहा है कि जरा जीवन को गौर से देखो, और कुंजियां तुम्हें मिल जाएंगी। तुमने अगर कुंजियां खोई हैं तो कहीं और नहीं, शास्त्रों में खो दी हैं। कोई हिंदू होकर बैठ गया है, कोई मुसलमान होकर बैठ गया है। दोनों मर गए। जिंदा आदमी कहीं हिंदू होता है? जिंदा आदमी कहीं मुसलमान होता है? जिंदा आदमी कहीं जैन होता है? जिंदा आदमी किसी संप्रदाय में हो कैसे सकता है? क्योंकि संप्रदाय तो मरा हुआ रूप है धर्म का। जिस धर्म का प्राण जा चुका वह संप्रदाय है। जहां से आत्मा निकल चुकी और लाश पड़ी रह गई, वह संप्रदाय है। कभी जैन जीवित था जब महावीर जिंदा थे। तुम्हारे कारण जैन जीवित नहीं था, वह महावीर के कारण जीवित था। फिर महावीर की सुगंध गई, महावीर की लाश को तो तुम दफना आए; लेकिन महावीर के शब्दों की लाश को 286
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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