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________________ धर्म का सूर्य अब पश्चिम में उमेगा फिर भी, हो सकता है, लंबे अभ्यास से सिरदर्द न केवल मानसिक रहा हो, शारीरिक हो गया हो; न केवल मन में रहा हो, बल्कि मस्तिष्क के स्नायुओं में प्रवेश कर गया हो। तो फिर एक काम करो; सिरदर्द को हटाने की कोशिश मत करो, लाने की कोशिश करो। यह तुम्हें बहुत कठिन मालूम पड़ेगा, लेकिन यह बड़ा अदभुत उपाय है। और न केवल सिरदर्द में, बहुत सी बातों में कारगर है। सिरदर्द को तुम जितना हटाने की कोशिश करते हो, तुम उतने ही तनाव से भर जाते हो। और सिरदर्द पैदा हो जाता है। पहला सिरदर्द तो रहता ही है; दूसरा सिरदर्द कि सिरदर्द को कैसे हटाएं। सिरदर्द है, उसे स्वीकार कर लो। स्वीकार करते ही, तुम्हारे स्नायु शिथिल हो जाएंगे। स्वीकार करते ही आधा सिरदर्द तो गया। न केवल स्वीकार कर लो, बल्कि अहोभाव से परमात्मा के प्रति अनुगृहीत भी हो जाओ-कि तूने सिरदर्द दिया, जरूर कोई कारण होगा, जरूर कोई राज होगा, हम स्वीकार करते हैं। हमें कुछ पता भी नहीं कि इस सिरदर्द से कल क्या फायदा होने वाला है। कुछ पता नहीं। हम स्वीकार करते हैं। तुम सिरदर्द को लाने की कोशिश करो कि आ जाए। जब सिरदर्द हो, तब तुम पूरी कोशिश करो कि वह अपनी पूरी त्वरा को उपलब्ध हो जाए, तीव्रता को उपलब्ध हो जाए। और तुम चकित हो जाओगे कि कुछ ही दिनों में जितना तुम लाने की कोशिश करते हो उतना ही वह आना मुश्किल हो गया। और जितना तुम उसे त्वरा देने की कोशिश करते हो वह उतना ही कम हो गया। और जितना तुम स्वीकार करते हो वह उतना ही समाप्त हो गया। यही लाओत्से की विधि है। जीवन के दुख को स्वीकार कर लो और दुख चला जाता है। जो भी हो रहा है, उसे स्वीकार कर लो; संघर्ष मत करो। संघर्ष के हटते ही सभी चीजें सरल और शुभ और शांत और आनंदपूर्ण हो जाती हैं। एक युवक यहां पूना में है। वह एक कालेज में प्रोफेसर है। उसने कोई पांच साल पहले मुझे आकर कहा कि एक बड़ी मुसीबत है उसकी। और मुसीबत यह है कि वह भूल जाता है और बार-बार इस तरह चलने लगता है जिस तरह स्त्रियां चलती हैं। तो कालेज में तो मुसीबत हो ही जाएगी। कहीं भी होओ तो मुसीबत होगी, लोग हंसेंगे; फिर कालेज तो सबसे ज्यादा खतरनाक जगह हो गई। वहां हजार, पांच सौ विद्यार्थी, और कोई प्रोफेसर स्त्रियों जैसा चले, तो वह तो मजाक का, हंसी का आधार बन गया। और वह जितना इससे बचने की कोशिश करता है क्योंकि वह सम्हल कर जाता है, एक-एक कदम सम्हल कर उठाता है लेकिन जितना ही वह बचने की कोशिश करता है उतनी ही मुश्किल में पड़ जाता है। तो मैंने उस युवक को कहा, तू एक काम कर, तू स्त्रियों जैसा चलने का अभ्यास कर। हंसी तो हो ही रही है, मजाक तो हो ही रही है, बदनामी तो हो ही रही है; अब इससे ज्यादा कुछ और होगा नहीं। अब जब हो ही रहा है स्त्री जैसा चलना, तो कुशलता से चलो। उसने कहा, क्या आप कहते हैं। मैं मरा जा रहा हूं इसको हटा-हटा कर और आप कहते हैं कि अभ्यास करूं? मैंने कहा, तू हटा-हटा कर हटा नहीं पाया, हमारी भी बात सुन ले। तू कल अब कालेज जा और घर से ही स्त्री जैसा चलने की कोशिश करता हुआ जा। ___ डरा बहुत, पर उसने हिम्मत की। और तीन महीने तक निरंतर, जब भी वह कालेज जाए, तो होशपूर्वक स्त्री जैसा चलने की कोशिश करे। लेकिन तीन महीने में एक बार भी सफल न हो पाया, स्त्री जैसा न चल पाया। मन का एक यंत्र है; कुछ चीजें हैं जो अचेतन हैं। अगर तुम उन्हें चेतन बना लोगे, विलीन हो जाएंगी। कुछ चीजें इसीलिए जीती हैं, क्योंकि तुम उनसे लड़ते हो। अगर तुम स्वीकार कर लो, वे समाप्त हो जाएंगी। 279
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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