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________________ मा५वार धर्म का सूर्य अब पश्चिम में उगेगा यह बड़ी मुसीबत हुई। और इसको भी न नहीं कह सकते और वह आदमी ऐसा है जिद्दी कि वह सुनेगा भी नहीं। वह ठीक वेश्या के घर ले गया। उसने जाकर वेश्या के कमरे में उनको प्रवेश भी करवा दिया। वे उस वेश्या से भी न कह सके कि मैंने ब्रह्मचर्य का व्रत लिया है और मुझ पर कृपा करो, मुझे जाने दो, मैं बड़ी भूल में आ गया। वे आंख बंद करके बैठ गए वहां। हाथ कंप रहे हैं, पसीना बह रहा है; वह वेश्या बेचारी सेवा कर रही है कि यह मामला क्या हो गया! किसी तरह हिम्मत जुटा कर वहां से वापस लौटे। उनका अगर पूरा जीवन पढ़ो तो तुम पाओगे कि सारे जीवन का सूत्र कायरता थी। वे भीरु आदमी थे और उनका धर्म भीरु का धर्म था। और उसी भीरुता में से उन्होंने धीरे-धीरे अहिंसा का शास्त्र निकाला। तो कायरता तो छिप गई और अहिंसा ऊपर आ गई। मगर बहुत मुश्किल है, क्योंकि एक दफा जब हम एक आदमी को स्वीकार कर लेते हैं, पूजने लगते हैं, तो कभी उसके जीवन का ठीक-ठीक विश्लेषण नहीं करते, और कभी उसके जीवन की पर्तों में नहीं उतरते कि उसका जीवन कैसे निर्मित हुआ। महावीर की बात और है। वह एक क्षत्रिय की अहिंसा थी। वह अहिंसा किसी कायरता से पैदा नहीं हो रही थी। वह अहिंसा बड़े अभय से आई थी। और कृष्ण भी क्षत्रिय हैं; वे भी समझ लेते महावीर की अहिंसा को। मोहम्मद भी क्षत्रिय हैं; वे भी समझ लेते महावीर की अहिंसा को। ये लड़ाके हैं, और अहिंसा तो आखिरी लड़ाई है। तब तुम प्रेम से लड़ते हो, मगर वह लड़ाई है। हिंसा में तुम घृणा से लड़ते हो, क्योंकि तुम्हें अपने प्रेम का भरोसा नहीं है। और हिंसा में तुम तलवार उठाते हो, क्योंकि तुम्हें अपने बल पर भरोसा नहीं है, तलवार का सहारा लेते हो। - अहिंसा आदमी की आखिरी ताकत है। तब वह तलवार छोड़ देता है, क्योंकि हाथ काफी हैं। तब वह शस्त्र छोड़ देता है, क्योंकि हृदय काफी है। तब वह हमला नहीं करता, क्योंकि प्रार्थना काफी है। तब वह तुम्हें अपने प्रेम से हरा देता है। वह तुम्हें हराना भी नहीं चाहता, क्योंकि वह भी व्यर्थ है। वह तुम्हारे ऊपर जीतना भी नहीं चाहता, क्योंकि वह भी हिंसा है। वह तुमसे हार जाता है, और तुम्हें हरा देता है। वही लाओत्से का पूरा शास्त्र है कि तुम हारो। और तुम जिससे हार जाओगे उसे तुम हरा दोगे। इसलिए लाओत्से स्त्रैण शक्ति का बड़ा हामी और बड़ा तरफदार है। वह कहता है, स्त्री की ताकत क्या है? स्त्री की ताकत यह है कि वह जिसको प्रेम करती है उससे हार जाती है। और तुम्हें पता है कि वह हार कर तुम पर पूरा कब्जा कर लेती है। तुम्हें लगता है तुम जीत गए; जीतती वही है। - एक कमजोर से कमजोर स्त्री जो तुम्हारे प्रेम में तुमसे हार जाती है, और तुम्हारे कंधे का ऐसा ही सहारा लेती है जैसे कोई लता वृक्ष का सहारा लेकर चढ़ती है-बिलकुल कमजोर, अपने में खड़ी भी न हो सकेगी लता, वृक्ष का सहारा चाहिए। एक स्त्री बिलकुल हार जाती है; लता की तरह तुम्हारे चारों तरफ लिपट जाती है-बिलकुल हारी हुई। लेकिन अंततः तुम पाओगे कि वह जीत गई, तुम हार गए। वह बिना कहे, जो करवाना चाहती है, करवा लेती है। वह बिना इशारे के तुम्हें चलाती है। वह तुम्हारे पीछे होती है, लेकिन वस्तुतः तुम्हारे आगे होती है। उसकी तरकीब आगे होने की यही है कि वह तुम्हारे पीछे हो जाती है। वह तुम्हें प्रेम में दबा लेती है। वह तुम्हें सेवा से भर देती है। वह तुम्हारे आस-पास इतनी कोमल हवा को पैदा कर देती है कि तुम उस हवा को तोड़ना भी न चाहोगे। जब भी कोई स्त्री प्रेम में होती है तब जो घटना घटती है वही अहिंसक के पास भी घटती है। हिंसा पुरुष के मन का लक्षण है। अहिंसा स्त्री के हृदय का भाव है। अहिंसा से ही अहिंसा आती है; हिंसा से कभी अहिंसा नहीं आती। लेकिन ऐसी स्थितियां हो सकती हैं जब हिंसा-अहिंसा के बीच चुनाव ही नहीं होता; चुनाव अच्छी हिंसा और बुरी हिंसा के बीच होता है। और कभी-कभी 277|
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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