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ताओ उपनिषद भाग ६
नसे तुम लमबिना सत्ता
लोगों की
यह कायर की अहिंसा थी जो अपने को छिपा रहा था। अन्यथा असली रूप तो तब प्रकट होता जब सत्ता हाथ में आती। अगर ये असली अहिंसक थे तो जब तुम बिना सत्ता के अहिंसक रह सके तो सत्ता में तो तुम्हें बिलकुल अहिंसक हो जाना था। जब दुश्मन से तुम लड़ सके अहिंसा से तो अपने ही लोगों को समझाने में अहिंसा काम न आई? अपने ही लोगों की छाती में गोली दागने में तुम्हें रास्ता दिखाई पड़ता है?
साफ है मामला। तुम्हारे हाथ में गोली न थी, न हाथ तैयार थे, न हिम्मत थी गोली चलाने की अंग्रेज के खिलाफ। लेकिन अब ये गरीब हिंदुस्तानियों के खिलाफ तो तुम गोली मजे से चला सकते हो; कोई अड़चन नहीं है। हाथ में बंदूक भी है, ताकत भी है, चलाओ गोली।
तो जितनी गोली इन पच्चीस साल की आजादी में अहिंसावादियों ने चलाई है, गांधीवादियों ने चलाई है, उतनी अंग्रेजों ने अपने पूरे दो सौ साल में नहीं चलाई थी। सच बात तो यह है कि गांधी की अहिंसा जीत सकी, क्योंकि अंग्रेज कौम बड़ी विशिष्ट कौम है। अन्यथा जीत नहीं सकती थी।
थोड़ी देर को समझो कि अंग्रेजों की जगह जर्मन होते; गांधी-वांधी की कोई स्थिति नहीं थी। अंग्रेज बड़ी सुसंस्कृत कौम है। वह अहिंसा की भाषा को समझ सकी। जर्मन होते, मिट्टी में मिला देते। गांधी को कोई इतना । सम्हाल कर रखने की जरूरत नहीं। तुम थोड़ा सोचो, अंग्रेज गांधी को न मार पाए और हिंदुओं ने खुद मार दिया! अंग्रेजों को क्या दिक्कत थी इस आदमी को मिटाने में? इतना आसान मामला था, इससे ज्यादा आसान कुछ भी नहीं था कि इस आदमी को मिटा दो, झंझट खतम करो।
लेकिन नहीं; अंग्रेज जाति के पास एक अंतःकरण है, एक समझ है; उदार है। यह आदमी अहिंसक था तो इसको मिटाया नहीं; इसको बचाया, सम्हाला; इसको सब तरह से सम्हाला; और धीरे से इसको राज्य भी सौंप दिया। फिर हमने ही मार डाला। वल्लभ भाई पटेल न बचा सके जो कि गांधी के सरदार थे, और अंग्रेज बचाए रहे। और ऐसी संभावना है पूरी कि गांधी के मारने में जाने-अनजाने गांधीवादियों का भी हाथ है। कहता हूं, जाने-अनजाने। अचेतन मन से वे भी चाहते थे कि अब यह बुड्डा खतम हो, क्योंकि अब यह एक उपद्रव था। पहले तो,यह नेता था, अब यह एक उपद्रव था। पहले तो यह कायरों को छिपाने का आवरण था। और अब? अब यह हर चीज में अड़गा डाल रहा था। क्योंकि यह अब भी अपनी अहिंसा का राग लगाए हुए था।
___ गांधी की अहिंसा वस्तुतः कायर आदमी की सांत्वना है। और गांधी ने पूरा अहिंसा का शास्त्र बड़ी कायरता से विकसित किया। अगर तुम गांधी का जीवन ठीक से समझने की कोशिश करो तो तुम पाओगे, यह आदमी अपनी जवानी में बहुत कायर आदमी था। इतना कायर कि कहना मुश्किल है। जब वे भारत से यूरोप की यात्रा पर जा रहे थे तो कसम मां ने दिला दी ब्रह्मचर्य की।
वह कसम भी कायरता में ही खाई होगी; क्योंकि मां कहती थी, जाने न देंगे, अगर ब्रह्मचर्य की कसम न खाई। तो कसम खा ली, क्योंकि जाना था। एक सज्जन से मित्रता हो गई जहाज पर। और जब कैरो में जहाज रुका तो वे सज्जन वेश्या के घर जा रहे थे, जैसा कि जहाज में यात्रा करने वाले लोग, हर जगह जहां जहाज रुकता है, स्त्रियों की तलाश करने निकलते हैं। और हर जहाजी नगर वेश्याओं का घर हो जाता है। वह आदमी एक वेश्या के यहां जा रहा था। उसने कहा कि आओ, चलो भी!
गांधी इतने कायर कि उससे यह न कह सके कि मुझे नहीं जाना है। तब तुम्हें समझ में आएगा कि ब्रह्मचर्य का व्रत भी कैसे लिया होगा। मां ने कहा लो, तो ले लिया। इस आदमी ने कहा चलो, तो अब उनको ऐसा लगा अगर मैं कहूं कि मुझे नहीं जाना है या ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया है तो यह आदमी समझेगा कि पता नहीं नपुंसक है, क्या है, क्यों डरता है। डर के मारे उसके साथ चले गए। हाथ-पैर कंप रहे हैं, क्योंकि व्रत लिया है। डर लग रहा है कि अब
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