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________________ दूसरा प्रश्न : आपने कहा कि हिंसा से अहिंसा नहीं आ सकती, लेकिन कृष्ण आँन मोहम्मद ने तो युद्ध के विराट हिंसा-कार्य में सक्रिय भाग लिया। वे युद्ध से किस ढंग की अहिंसावी शांति लाना चाहते थे? ताओ उपनिषद भाग६ ___हिंसा से शांति नहीं आ सकती, यह कृष्ण भी जानते हैं और मोहम्मद भी। और आई भी नहीं। महाभारत के बाद कौन सी शांति आई भारत में? युद्ध तो हुआ; शांति कौन सी आई? मुल्क अशांत रहा। हिंसा मिट नहीं गई; हिंसा जारी रही। मोहम्मद के युद्धों के बाद कौन सी शांति आ गई है मुसलमानों में? वस्तुतः वे और अशांत हो गए। मोहम्मद की तलवार उनके लिए बहाना बन गई तलवार चलाने का। मोहम्मद का युद्ध उनको हर युद्ध को करने के लिए तर्क बन गया। मुसलमान अशांत रहे हैं, युद्धखोर रहे हैं। कृष्ण भी हार गए, मोहम्मद भी हार गए; हिंसा से अहिंसा आ ही नहीं सकती। लेकिन तब तुम पूछोगे, फिर कृष्ण को, मोहम्मद को क्या यह दिखाई नहीं पड़ा? ___ यह भलीभांति दिखाई पड़ा; लेकिन इसके अतिरिक्त कोई उपाय न था। यह मजबूरी थी। यह था कम से कम बुराई को चुनना। इसे तुम थोड़ा समझ लेना। सवाल यह नहीं था कृष्ण के सामने कि युद्ध से अहिंसा आएगी कि नहीं; वह तो उन्हें भी साफ है कि युद्ध से कहीं अहिंसा आती है! हिंसा से कैसे अहिंसा का जन्म हो सकता है? और घृणा से कैसे प्रेम पैदा होगा? और शत्रु बनाने से कैसे कोई मित्र हो जाएगा? पागलपन है। मारने से कहीं कोई जीता है? आग लगाने से कहीं वृक्षों में फूल खिलेंगे? और कांटे बोने से क्या तुम सोचते हो कि फूलों की शय्या बन जाएगी? यह तो कृष्ण को भी पता है। कोई कृष्ण नासमझ नहीं हैं। कृष्ण से समझदार आदमी खोजना मुश्किल है। कृष्ण को भलीभांति पता है कि युद्ध से कोई शांति नहीं होगी; हिंसा से कोई अहिंसा नहीं आएगी। लेकिन यह सवाल ही नहीं है कृष्ण के सामने; सवाल ही दूसरा था। सवाल था दो तरह की हिंसाओं के बीच चुनने का; अहिंसा और हिंसा के बीच चुनाव का सवाल ही नहीं था। युद्ध खड़ा था सामने। या तो कौरवों की हिंसा जीतेगी या पांडवों की हिंसा जीतेगी, चुनाव था दो हिंसाओं के बीच में। अगर कृष्ण के सामने अहिंसा और हिंसा का चुनाव होता तो स्वभावतः वे अहिंसा चुनते। लेकिन वह चुनाव न था। चुनाव थाः ये दो तरह की हिंसाएं आमने-सामने खड़ी थीं युद्ध में; इसमें जो सबसे कम बुरा था, उसे चुनने के अतिरिक्त कोई मार्ग न था। पांडव कौरवों से कम बुरे थे, बस इतनी ही बात है। और अगर पांडव हारते हैं तो कौरव जीतेंगे, वह बहुत भयंकर हिंसा जीतेगी। अगर कौरव जीतते हैं तो हिंसा पूरी तरह जीतती है। अगर पांडव जीतते हैं तो हिंसा आधी तरह जीतती है। यही तो पूरे गीता का राज है। वह राज यह है कि दुर्योधन ने तो नहीं पूछा कि मैं युद्ध करूं या न करूं; दुर्योधन के मन में तो सवाल भी न उठा। दुर्योधन के सामने सवाल तो वही था जो अर्जुन के सामने था। मित्र-परिजन खड़े थे, अपने ही सगे-संबंधी खड़े थे—उस तरफ भी, इस तरफ भी। परिवार का ही गृहयुद्ध था। सब बंट गए थे। इस तरफ भाई खड़ा था, दूसरा भाई उस तरफ खड़ा था। कृष्ण एक तरफ खड़े थे, उनकी युद्ध की सेना दूसरी तरफ खड़ी थी। अपनी ही सेना से लड़ रहे थे। गृहयुद्ध था। ठीक-ठीक गृहयुद्ध था। लेकिन दुर्योधन को सवाल भी न उठा। अर्जुन को सवाल उठा। इसलिए अर्जुन कम हिंसक है इसलिए सवाल उठा। और अर्जुन ने पूछा कि इससे तो अच्छा है मैं छोड़ कर चला जाऊं। अपनों को ही मार कर क्या पा लूंगा? और अगर इन सबको मार कर राज्य मिल भी गया तो उस राज्य का भी क्या मूल्य है? इतने खून के बाद इस खून से सने राज्य को पाकर मेरा मन तो सदा पीड़ा ही पाता रहेगा। वह कोई सुख की अवस्था न होगी; वह तो एक दुखस्वप्न हो जाएगा। ये सब अपने ही हाथ से काटे गए लोगों के चेहरे मुझे याद आते रहेंगे। न मैं ठीक से भोजन कर सकूँगा, 272
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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