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धर्म का सूर्य अब पश्चिम में उगेगा
ऐसा एक वर्तुल है। गरीब समाज धन में उत्सुक होता है; धन पाकर पाता है कि यह तो बेकार की मेहनत हुई, तब वह धर्म में उत्सुक होता है। जब धर्म में उत्सुक होता है तो धन की उपेक्षा हो जाती है। जब धन की उपेक्षा हो जाती है तो धीरे-धीरे समाज फिर गरीब हो जाता है। ऐसा चक्र की तरह सारी बात घूमती जाती है।
पूरब अमीर था, बहुत अमीर था। लोग कहते थे, सोने की चिड़िया है। वह था। उस सोने की चिड़िया के दिनों में उसने पाया कि सब सोना व्यर्थ है; सोने की चिड़िया होने में कोई सार नहीं। वह दूध और दही की नदियां सब व्यर्थ हैं। इस संसार में सब असार है। यह सब माया है, सपना है-ऐसा पाया। और यह पाना सच है। जब ऐसा पाया कि यह सब सपना है, तो सपने की कौन फिक्र करता है? कौन साज-सम्हाल रखता है? उपेक्षा हो गई। जब उपेक्षा हो गई तो पूरब धीरे-धीरे-धीरे-धीरे गरीब हो गया। अब जब गरीब हो गया तो सीढ़ियां टूट गईं; अब धर्म से कोई संबंध न रहा। अब उत्सुकता है-कैसे धन वापस मिले? कैसे शरीर वापस मिले? कैसे मन के सुख वापस मिलें?
अब पश्चिम अमीर है। पश्चिम गरीब था जब पूरब अमीर था। करीब-करीब ऐसा है कि जैसा सूरज जब पूरब में होता है तो पश्चिम में रात होती है; जब पश्चिम में सूरज होता है तो पूरब में रात हो जाती है। जो बाहर के सूरज के संबंध में सच है वही भीतर के सूरज के संबंध में भी सच है। जब पूरब में प्रकाश था तो पश्चिम अंधकार में था; गहन रात थी वहां। लोग भयंकर गरीबी में थे। धर्म की कोई बात ही न थी; कोई पूछने का सवाल ही न था।
फिर अब पश्चिम में सूरज उग रहा है। पूरब में गहन अंधेरी रात है। सारा पूरब धीरे-धीरे कम्युनिज्म की अमावस में दबा जा रहा है। कम्युनिज्म का अर्थ होता है : धन महत्वपूर्ण है, धर्म नहीं। कम्युनिज्म का अर्थ होता है : पदार्थ महत्वपूर्ण है, परमात्मा नहीं। कम्युनिज्म का अर्थ होता है : यही संसार सब कुछ है, और कोई संसार नहीं। कम्युनिज्म का अर्थ होता है : सपना ही सत्य है, और कोई सत्य नहीं। इसको सम्हाल लो, सब सम्हल जाएगा। पूरब कम्युनिस्ट होता जा रहा है। सब तरफ पूरब की पुरानी व्यवस्था टूटती जाती है। इसे बचाना मुश्किल है। पश्चिम धीरे-धीरे धार्मिक होता जा रहा है। पूरब का जवान कम्युनिस्ट होता है। और अगर पूरब में कोई जवान कम्युनिस्ट न हो तो लोगों को शक होता है कि यह आदमी जवान ही कैसा! समाजवादी, साम्यवादी, नाम कुछ भी हों, लेकिन पूरब का जवान आदमी कम्युनिस्ट होता है।
पश्चिम में जवान आदमी हिप्पी हो गया है। हिप्पी का अर्थ समझते हैं? हिप्पी का अर्थ है कि इस संसार में कुछ सार नहीं। कपड़े-लत्ते कैसे ही हुए, तो चल जाएगा। नहाए, न नहाए, तो चल जाएगा। पैसे पास हुए, न हुए, तो चल जाएगा। न बड़े मकान की जरूरत है, न बड़ी कार की जरूरत है। पैदल चल लिए, तो चल जाएगा; राह में चलते ट्रक वाले से प्रार्थना कर ली, उसने बिठा लिया, तो चल जाएगा। पश्चिम में अमीर से अमीर घरों के लड़के और लड़कियां हिप्पी हो गए हैं। हिप्पी पश्चिम का संस्करण है संन्यास का। वह पश्चिमी ढंग है संन्यासी होने का।
बुद्ध ने हजारों लोगों को संन्यासी कर दिया था। संन्यास का अर्थ ही था ः इस जिंदगी की हम चिंता नहीं करते, उपेक्षा करते हैं। एक बार भोजन मिल गया तो ठीक है, न मिला तो भूखे सो जाएंगे।
पश्चिम का जवान आदमी तो समाज के बाहर हट रहा है; एक तरह के संन्यास का जन्म हो रहा है। और पूरब का जवान आदमी संसार में प्रवेश कर रहा है। सूरज पश्चिम में उग रहा है, पूरब में डूब रहा है। और यह स्वाभाविक है। लेकिन अगर समझ हो तो अंधेरी रात में भी तुम परिपूर्ण प्रकाशित हो सकते हो, और नासमझी हो तो सूरज उगा हो तो भी आंख बंद करके अंधेरे में बैठ सकते हो।
इसलिए इससे कुछ बहुत परेशान मत हो जाना। जिसको समझ है, वह भीतर का दीया जला लेता है और बाहर के सूरज की चिंता छोड़ देता है। और जो नासमझ है, वह सूरज भी उगा रहता है तो आंख बंद करके खड़ा रहता है।