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________________ मेरे तीन खजाने प्रेम और अब अति और अंतिम होना 17 यह सबसे बड़ी खतरनाक साजिश है जो आदमी के साथ की गई है, कि उसका प्रेम का सूत्र काट दिया गया है। तब वह बंधा हुआ अपने आप मंदिर आएगा ही । आज नहीं कल, कल नहीं परसों, उसे मंदिर आना ही पड़ेगा। क्योंकि उसे लगेगा कि कुछ कम है जो संसार में पूरा नहीं होता, तो संसार के बाहर कहीं खोजें । जिस दिन दुनिया में प्रेम परिपूर्ण रूप से मुक्त होगा, कोई प्रेम पर बाधा और अड़चन न होगी, और प्रेम स्वयं का निर्णय होगा - मां-बाप का नहीं, परिवार का नहीं, समाज का नहीं, किसी राजनीति का नहीं - जिस दिन प्रेम स्वयं का आविर्भाव होगा, जिस दिन भीतर का हृदय खिलेगा, उस दिन मंदिर-मस्जिदों से लोग अपने आप विदा हो जाएंगे। प्रेम का मंदिर काफी मंदिर है। फिर कोई और मंदिर की जरूरत नहीं है। और तब प्रार्थना उठेगी। जब प्रेम पकता है तो पके प्रेम से जो गंध उठती है वही प्रार्थना है। जब दो व्यक्ति इतने लीन हो जाते हैं एक-दूसरे में कि एक हो जाते हैं, तब उनको पहली दफा पता चलता है कि जब दो के एक हो जाने से इतनी अपरिसीम सुख की संभावना पैदा हुई है, तो काश हम अनंत के साथ एक हो जाएं! पहली दफा विचार उठता है कि जब एक के साथ खोकर, दो बूंद के मिलने से ऐसा महा सुख बरसा है, तो जब बूंद सागर से मिलती होगी, जब सागर बूंद से मिलता होगा, तब क्या घटता होगा ? प्रेम स्वाद देता है; प्रार्थना में जाने का बल देता है; प्रार्थना की तरफ पैर उठने की हिम्मत और साहस आता है। लेकिन प्रेम से ही तुम बच रहे हो, तो तुम कायर हो गए हो, तुममें दुस्साहस रहा ही नहीं । लाओत्से कहता है कि तीन खजाने हैं मेरे जो मैं तुम्हें देना चाहता हूं। 'पहला है प्रेम, दूसरा है अति कभी नहीं ।' लाओत्से परमात्मा की बात ही नहीं करता, प्रार्थना की बात ही नहीं करता। क्योंकि कहता है, बीज दे दिया, बाकी घटनाएं घटती रहेंगी। बीज को बो दिया, अंकुर निकलेगा अपने आप, तुम्हें कुछ करना नहीं । वृक्ष बड़ा होगा, घनी उसकी छाया होगी, फूल लगेंगे, फल आएंगे; यह सब अपने से होगा, तुम बीज की सम्हाल कर लेना । इसलिए प्रेम की बात की है, प्रार्थना की नहीं, परमात्मा की नहीं । अनेकों को लगता है कि लाओत्से नास्तिक है। लाओत्से मा आस्तिक है। और तुम्हारे मंदिर-मस्जिदों में जो बैठे हैं वे सब नास्तिक हैं। उनकी साजिश गहन है, षड्यंत्र खतरनाक है। उन्होंने तुम्हारे जीवन को इस तरह से अवरुद्ध कर दिया है, इस तरह से काट दिया है; उन्होंने बीज को ही दग्ध कर दिया है। तब तुम जो भी करते हो सब झूठा झूठा। ऐसी मेरी प्रतीति है : जिस व्यक्ति का प्रेम झूठा, उसका पूरा जीवन झूठा होगा। क्योंकि प्रेम तक के संबंध में तुम सच्चे न हो सके तो अब तुम किस चीज के संबंध में सच्चे हो सकोगे? जब प्रेमी के साथ तुम सच्चे और प्रामाणिक न हो सके तो ग्राहक के साथ हो सकोगे ? बाजार में, समाज में? जब निकटतम के साथ तुम झूठे हो, जब पत्नी को देख कर तुम मुस्कुराते हो क्योंकि मुस्कुराना चाहिए, जब तुम पिता के पैर दबाते हो क्योंकि दबाना चाहिए, जब तुम गुरु को देख कर खड़े हो जाते हो क्योंकि. खड़ा होना चाहिए, तब सब खो गया । तुम्हारे जीवन में सब झूठ होगा अब । ये निकटतम बातें थीं जो हृदय के बहुत करीब थीं। ये झूठी हो गईं तो जो बहुत दूर हैं वे कैसे सच्ची होंगी? प्रेम सच्चा हो तो तुम्हारे जीवन में सब तरफ सच्चाई आनी शुरू हो जाएगी। क्योंकि प्रेम तुम्हें बड़ा करेगा, फैलाएगा। और धीरे-धीरे अगर तुमने एक व्यक्ति के प्रेम में रस पाया तो तुम औरों को भी प्रेम करने लगोगे । मनुष्यों को प्रेम करोगे - प्रेम की लहर बढ़ती जाएगी— पौधों को प्रेम करोगे, पत्थरों को प्रेम करोगे। अब सवाल यह नहीं है कि किसको प्रेम करना है, अब तुम एक राज समझ लोगे कि प्रेम करना आनंद है। किसको किया, यह सवाल नहीं है। अब तुम यह भूल ही जाओगे कि प्रेमी कौन है। नदी, झरने, पहाड़, पर्वत, सभी प्रेमी हो जाएंगे।
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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