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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ लेकिन जैसे झील में कोई पत्थर फेंकता है तो छोटा सा वर्तुल उठता है लहर का, फिर फैलता जाता, फैलता जाता, दूर तटों तक चला जाता है। ऐसे ही दो व्यक्ति जब प्रेम में पड़ते हैं तो पहला कंकड़ गिरता है झील में प्रेम की, फिर फैलता चला जाता है। फिर तुम परिवार को प्रेम करते हो, समाज को प्रेम करते हो, मनुष्यता को, पशुओं को, पौधों को, पक्षियों को, झरनों को, पहाड़ों को, फैलता चला जाता है। जिस दिन तुम्हारा प्रेम समस्त में व्याप्त हो जाता है, अचानक तुम पाते हो परमात्मा के सामने खड़े हो। प्रेम पकता है तब सुवास उठती है प्रार्थना की। जब प्रार्थना परिपूर्ण होती है तो परमात्मा द्वार पर आ जाता है। तुम उसे न खोज पाओगे। तुम सिर्फ प्रेम कर लो; वह खुद चला आता है। तुम उसे खोजने जाओगे भी कहां? पता-ठिकाना भी तो मालूम नहीं। और डर है कि उसे खोजने तुम गए तो तुम किसी साजिश के हिस्से न हो जाओ। क्योंकि काशी में, काबा में साजिश के अड्डे हैं। वहां तुम उलझ जाओगे। और वहां बैठे लोग तुम्हें समझाएंगे कि प्रेम पाप है, और छोड़ो प्रेम और प्रार्थना करो। वे बड़े कुशल लोग हैं। वे बड़ा गहरा खेल खेल रहे हैं। और उन्होंने इतने दिन से यह जहर तुम्हारे मन पर फेंका है कि तुमको भी उनकी बात जंचेगी कि बात तो ठीक ही है। प्रेम तो लगाव है, आसक्ति है। प्रार्थना भी लगाव है और आसक्ति है। और परमात्मा परम आसक्ति है। क्योंकि जीवन जुड़ा है। यहां हम अलग-थलग नहीं हैं; यहां हम सब संयुक्त हैं, इकट्ठे हैं। यहां तुम्हारा होना और मेरा होना दो लहरों की तरह है; नीचे छिपा सागर एक है। और एक लहर दूसरी लहर से मिल रही है। मिलने की तैयारी प्रेम है; मिल जाने का अनुभव तत्क्षण प्रार्थना में उठा देता है। और जब प्रार्थना पूर्ण होती है, आंख तुम खोलते हो, द्वार पर पाते हो परमात्मा खड़ा है। वह सदा से खड़ा था। तुम तैयार न थे, तुम्हारी तैयारी चाहिए। तो लाओत्से कहता है, पहला सूत्र प्रेम, पहला खजाना प्रेम। दूसरा है अति कभी नहीं। यह भी बड़ा समझ लेना है। क्योंकि मनुष्य का मन अतियों में जीता है, एक्सट्रीम्स में। या तो तुम एक तरह . की अति करते हो या दूसरे तरह की। अभी कुछ दिन पहले की बात है। एक युवक इंग्लैंड से आया। वह उपवास में भरोसा करता है। उपवास को उसने अपनी साधना बना रखा है। शरीर दीन-हीन हो गया है। ऊर्जा क्षीण हो गई है। तो मैं उसे समझाया कि अगर मरना ही हो तो बात अलग, मजे से करो उपवास। लेकिन जीवन ऐसे न चलेगा। और ऊर्जा अगर इतनी क्षीण है तो तुम ध्यान कैसे करोगे? क्योंकि ऊर्जा तो चाहिए ही। और ध्यान के लिए तो बहुत ऊर्जा चाहिए। क्योंकि वह कोई छोटी-मोटी घटना नहीं है। तुम इतनी बड़ी क्रांति की तैयारी कर रहे हो तो बड़ा ईंधन चाहिए। अगर तुमने सब राख कर डालने का तय किया है तो एकाध चिनगारी से काम न चलेगा; दावानल, विराट लपटें चाहिए। ध्यान की यात्रा पर निकले हो; अगर थके-मांदे तुम यात्रा के पहले ही हो तो कदम कैसे उठाओगे? कठिन था उसे समझना, फिर भी उसने समझने की कोशिश की। तीसरे दिन वह आया और उसने कहा, आपने मुसीबत में डाल दिया। मैं बहुत ज्यादा खा गया। अब मेरे पेट में दर्द है और मैं बड़ी मसीबत में पड़ा है। उपवासी, अगर उपवास छुड़ाओ, ज्यादा खा लेगा। असल में, ज्यादा खाने वाले लोग ही उपवास करते हैं। उन दोनों में संबंध है। जहां-जहां ज्यादा भोजन उपलब्ध हो जाता है वहां-वहां उपवास का संप्रदाय प्रचलित हो जाता है। अभी अमरीका में बड़े जोर से चल रहा है, उपवास करो! हर चीज के लिए उपवास कारगर है। बीमारी है तो उपवास, किसी स्त्री को सुंदर होना है तो उपवास, शरीर को सुडौल बनाना है तो उपवास, स्वस्थ बनाना है तो उपवास; सबके लिए उपवास। अमरीका इस समय ज्यादा भोजन की अवस्था में है। ऐसी दशा भारत में भी आई थी; उसी वक्त जैन पैदा हुए। आज से पच्चीस सौ साल पहले भारत ऐसे ही समृद्ध था जैसा अमरीका। बड़ा धन-धान्य 18
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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