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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ प्रेम तो बड़ा खतरनाक है, संन्यास जैसा खतरनाक है। विवाह समाज की संस्था है, प्रेम परमात्मा का आमंत्रण है। समाज ने अपनी व्यवस्था कर ली है, क्योंकि प्रेम के साथ समाज अड़चन में पड़ेगा। प्रेम कहां ले जाएगा, कुछ पता नहीं; किन रास्तों पर चलाएगा, कुछ पता नहीं; कहां भटकाएगा, कुछ पता नहीं। क्या परिणति होगी आखिर में, उसका कुछ पता नहीं। प्रेम का रास्ता नापा-जोखा नहीं है। प्रेम से तुम्हें बचा दिया गया है। और प्रेम से बचने के कारण तुम्हारे जीवन में एक कमी है। क्योंकि प्रेम के बिना कोई भी तृप्त नहीं हो सकता। प्रेम के बिना तुम जीओगे, लेकिन मरे-मरे, जीओगे अपने को ढोते बोझ की तरह। प्रेम ही तृप्त कर सकता है। क्योंकि जहां दो व्यक्ति मिलते हैं और अहंकार छूटते हैं, उस दो व्यक्तियों के मिलने के क्षण में वहां एक तीसरा व्यक्ति भी मौजूद होता है, जिसका नाम परमात्मा है। क्योंकि जहां भी अहंकार छूटते हैं वहीं परमात्मा प्रवेश कर जाता है। वह उसका द्वार है। अगर दो व्यक्तियों ने ठीक से प्रेम किया एक-दूसरे को...। ठीक से प्रेम करने का अर्थ है उन्होंने अहंकार हटा कर प्रेम किया, अहंकार के माध्यम से नहीं। क्योंकि जब अहंकार के माध्यम से प्रेम होता है तब तुम दूसरे को प्रेम नहीं करते, तुम दूसरे के द्वारा अपने को ही प्रेम करते हो। तब तुम दूसरे की फिक्र नहीं कर रहे हो, दूसरे का शोषण कर रहे हो। तब दूसरे की हिफाजत नहीं है, दूसरे का उपयोग है। तब दूसरा एक उपकरण है, एक वस्तु है, व्यक्ति नहीं। जब अहंकार बीच में होता है तो जीवंत व्यक्तियों को वस्तुओं में बदल देता है। पत्नी, पति वस्तुओं जैसे हो जाते हैं; एक-दूसरे का उपयोग कर रहे हैं। कोई पुलक नहीं है; कहीं कोई फूल नहीं खिलता; कहीं कोई सुगंध नहीं बिखरती। जहां भी कोई व्यक्ति अहंकार को बीच में ले आता है, वहां पजेशन, वहां मालकियत, परिग्रह, दूसरे पर दावा, कलह, संघर्ष, तरकीबें, चालाकी, सब राजनीति प्रविष्ट हो जाती है। लेकिन जब कोई अहंकारों को हटा देता है, और दो व्यक्ति ऐसे मिल जाते हैं जैसे दो ज्योतियां करीब आकर अचानक एक हो जाएं, उस घड़ी में एक संध खुलती है इस जगत में जहां से परमात्मा झांकता है। प्रेम परमात्मा की . पहली अनुभूति है। लेकिन प्रेम वंचित कर दिया गया है। प्रेम रोक दिया गया है। प्रेम के रोक देने के कारण तुम सदा अतृप्त हो, बेचैन हो, परेशान हो। कुछ कम, कुछ कम मालूम पड़ता है; कुछ कमी, कोई अभाव। यह भी साफ नहीं कि किस चीज का अभाव है, क्या चाहिए। धन भी है, धन भी इकट्ठा कर लेते हो, फिर भी अभाव। पद भी है, प्रतिष्ठा मिल जाती है, फिर भी अभाव। और यह भी तुम्हें साफ नहीं कि अभाव किस बात का। जैसे एक प्यासा आदमी है, जिसको प्यास किसी तरकीब से भुला दी गई है। वह धन इकट्ठा कर लेता है, फिर भी अभाव। क्योंकि प्यास थी, पानी की जरूरत थी, धन की जरूरत न थी। फिर इस तरह के प्यासे लोग जिनको अपनी प्यास भूल गई है, और जिन्हें प्रेम का सूत्र खो गया है जिनके हाथ से, छीन लिया गया है, और झूठी संस्थाएं जिनके हाथ में दे दी गई हैं; प्रेम के काव्य की जगह जिनको विवाह का गणित पकड़ा दिया गया है। प्रेम के धर्म की जगह जिनके हाथ में प्रेम का अर्थशास्त्र, विवाह, जो ढो रहे हैं; ये लोग मंदिर-मस्जिदों में जाते हैं, घुटने टेकते हैं, प्रार्थना करते हैं। इनका अभाव, इनको लगता है कि शायद प्रार्थना से पूरा हो जाए, शायद योग से पूरा हो जाए, शायद ध्यान से पूरा हो जाए। और मैं तुमसे एक बात कह देना चाहता हूं कि धार्मिक पंडे-पुरोहित, मंदिर-मस्जिदों के अधिकारी, इस सत्य को बहुत पहले समझ गए कि अगर लोगों को प्रेम से वंचित कर दो तो ही मंदिरों और मस्जिदों में भीड़ रहेगी, अन्यथा नहीं। क्योंकि जब प्रेम न मिलेगा तब वे प्रार्थना मांगेंगे। अगर जगत में प्रेम अवतरित हो जाए, मंदिर-मस्जिद, पंडे-पुजारी अपने आप खो जाएं। तुम्हारा हृदय मंदिर हो जाएगा। 16
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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