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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ लाओत्से का सूत्र स्पष्ट है। लाओत्से कह रहा है, स्वभाव पर छोड़ दो लोगों को। उनको ज्यादा नियोजित मत करो, ज्यादा शासित मत करो। वे शासन के लिए पैदा नहीं हुए हैं, जीने के लिए पैदा हुए हैं। और वे अपने जीवन का मार्ग खोज लेंगे। पशु-पक्षी खोज लेते हैं; आदमी क्यों न खोज लेगा। लेकिन राज्य कहता है: हम बीच में आएंगे, क्योंकि तुम ठीक से नहीं खोज पाओगे; तुम अपना पेट ठीक से न भर पाओगे, इसलिए हम व्यवस्था देंगे; तुम फैक्ट्री ठीक से न चला पाओगे, इसलिए राष्ट्रीयकरण करेंगे। और सब राष्ट्रीयकरण राज्यीकरण है; राष्ट्र का नाम व्यर्थ और झूठा है। राष्ट्रीयकरण का अर्थ कुल जमा इतना है कि सब सत्ता राज्य के हाथ में है। व्यापार, व्यवसाय, उद्योग, खेती-बाड़ी, सब राज्य के हाथ में है। और जितना राज्य के हाथ मजबूत होते जाते हैं, उतने लोग सूखते जाते हैं। फिर तुम कहते हो, लोग उपद्रव करते हैं। फिर उनको उपद्रव से रोकने के लिए या तो उन्हें मारो, कारागृहों में डालो। जितना तुम उन्हें मारते, कारागृह में डालते, और लोग दूसरे उपद्रवी होते चले जाते हैं। फिर भी सीधी सी बात नहीं दिखाई पड़ती कि यह बीमारी का लक्षण है। बीमारी राज्य में छिपी है! राज्य कम से कम हो तो सौभाग्य है, और ज्यादा हो जाए तो दुर्भाग्य है। राज्य की एक मात्रा जरूरी है, बस एक मात्रा। और मात्रा भी होमियोपैथी के डोज जैसी होनी चाहिए, एलोपैथी का डोज नहीं। बस एक जरा सी मात्रा राज्य की जरूरी है। और उसको मैं फिर से तुम्हें याद दिला दूं। राज्य का काम नकारात्मक है। उसका काम इतना ही है कि वह लोगों को एक-दूसरे के जीवन में बाधा डालने से रोके। बस, इससे ज्यादा नहीं है। जब तक लोग अपना काम कर रहे हैं और अपनी मस्ती में हैं तब तक राज्य को बीच में आने की कोई जरूरत नहीं है। राज्य का काम ऐसा है जैसा चौराहे पर खड़े पुलिसवाले का है। जब तक लोग बाएं चल रहे हैं उसे बीच में आने की जरूरत नहीं है, न कुछ कहने की जरूरत है। हां, जब कोई आदमी रास्ते के बीच में चलने लगे और बाधा बन जाए तब उसे आने की जरूरत है। जब तक लोग अपने मार्ग से चल रहे हैं, अपने ढंग से काम कर रहे हैं, ठीक उन्हें अपना काम करने दो। चौराहे पर खड़े. पुलिसवाले से ज्यादा राज्य की कोई जरूरत नहीं है। और राज्य के अधिकारियों को इतने सम्मान और इतनी पूजा की भी कोई जरूरत नहीं है। वे सेवक हैं, मालिक नहीं। कोई तुम चौराहे पर खड़े पुलिसवाले के चरण नहीं छूते; लेकिन दिल्ली में बैठे बड़े पुलिसवाले, राष्ट्रपति हों, प्रधानमंत्री हों, उनके चरण छूने की भी कोई आवश्यकता नहीं है, और न ही उनके गुण-गौरव की कोई आवश्यकता है। लेकिन वे छा जाते हैं सारे समाज पर। सारे अखबार भरे हैं उनसे। सारा रेडियो, टेलीविजन भरा है उनसे। सब तरफ उनका गुणगान चल रहा है। इस गुणगान का बड़ा खतरनाक परिणाम होता है। इसका परिणाम यह होता है कि जो सत्ता में नहीं हैं, वे भी पागल हो जाते हैं सत्ता में पहुंचने को, सत्ता की दौड़ पैदा होती है। तो सभी महत्वाकांक्षियों को सत्ता चाहिए। तब इतना भयंकर संघर्ष मच जाता है, और वह संघर्ष उपद्रव का कारण होता है। शासकों को बहुत सम्मान देने की कोई आवश्यकता नहीं है। वे एक काम कर रहे हैं, उनकी एक उपयोगिता है; बात खतम हो गई। उनकी उपयोगिता कोई ऐसी नहीं है कि उन्हें सिर-आंखों पर लिया जाए। भंगी रास्ता साफ कर रहा है, ठीक है, धन्यवाद! पुलिसवाला चौराहे पर खड़ा अपना काम कर रहा है, धन्यवाद! प्रधानमंत्री दिल्ली में अपना काम कर रहा है, धन्यवाद! बात खतम होनी चाहिए। इससे ज्यादा की कोई जरूरत नहीं। जिस दिन हम राजनीतिज्ञों को आदर देना कम कर देंगे उस दिन दूसरे लोगों में भी राजनीति में उतरने का पागलपन कम हो जाएगा। 256
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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