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________________ राजनीति को उतारो सिंहासन से छप्पर के नीचे विश्राम करते हो, तब तुम्हें कभी खयाल आता है कि मौत करीब आ रही है। मौत के लिए थोड़ी सी सुविधा चाहिए। और जिसको मौत का खयाल आया, वही व्यक्ति धार्मिक हो सकता है। इसलिए तो पशु-पक्षी धार्मिक नहीं हो सकते, क्योंकि उन्हें मौत का कोई पता ही नहीं है। इतना होश ही नहीं है कि मौत का पता आ जाए। जिनको मौत की चोट खयाल में आ जाती है उनके जीवन में एक नये अध्याय का प्रारंभ होता है। .. क्योंकि वे जीविका के लिए चिंतित हैं, यही कारण है कि वे मृत्यु से भयभीत नहीं हैं। जो उनकी जीविका में हस्तक्षेप नहीं करते, वे ही जीवन को ऊंचा उठाने का विवेक रखते हैं।' और लाओत्से कह रहा है, राज्य को कुछ ऐसा करना चाहिए कि लोगों की जीविका में हस्तक्षेप न हो। कम से कम उनकी जीविका उन्हें पूरी मिल जाए, क्योंकि तभी उनके जीवन का विवेक ऊंचा उठेगा। उनकी शरीर की जरूरतें पूरी करो, पूरी हो जाने दो, ताकि वे शरीर से ऊपर उठ सकें। उनकी मन की जरूरतें भी पूरी करो, ताकि वे मन से ऊपर उठ सकें; उनके जीवन में भी आत्मबोध आ सके। वह सुबह हो जहां वे आत्मा की जरूरतों का खयाल, आत्मा की बेचैनी और प्यास, आत्मा की तड़फ और अभीप्सा पैदा हो सके। वह आदमी अभागा है जिसके जीवन में आत्मा की तड़प न आई। वह मंदिर के बाहर-बाहर भटकता रहा। वह मंदिर के भीतर प्रविष्ट ही न हुआ। धन्यभागी है वह व्यक्ति जिसके जीवन में आत्मा की तड़पन आ गई; जिसकी आत्मा ने पंख फड़फड़ाए और परमात्मा के आकाश को खोजने की अभीप्सा से भर गई। ऐसे व्यक्ति के जीवन में विवेक अपनी चरम सीमा को छूता है। और विवेकशील कहीं उपद्रवी हुए हैं? और विवेकशील कभी अपराधी हुए हैं? और विवेकशीलों ने जीवन को कभी तहस-नहस और नष्ट-भ्रष्ट करने की कोई आकांक्षा की है ? लाओत्से यह कह रहा है कि जब तक लोग शरीर के तल पर ही जीएंगे तब तक उपद्रवी रहेंगे। उनको कभी भी भड़काया जा सकता है। वे सूखा ईंधन हैं, कोई भी उनमें आग लगा सकता है। और आग लग जाए, पकड़ जाए, तो फिर हवाएं ही उसे फैला देती हैं। जब तक लोगों का जीवन-विवेक ऊपर न उठे तो तुम दंड देकर उसे ऊपर न उठा सकोगे; न उनकी हत्याएं करके ऊपर उठा सकोगे। क्योंकि मृत्यु का उन्हें भय ही नहीं है। तुम मारने की धमकी भी दो, कुछ न होगा। तुम छीनने की धमकी दो, कुछ न होगा। तुम उन्हें जेलखानों में डाल दो, कुछ न होगा। क्योंकि असलियत ऐसी है कि जेलखाने उनके घरों से बेहतर हैं और वहां कम से कम भोजन दो बार नियम से मिल जाता है। जेलखाने ज्यादा सुखद हैं। तुम उन्हें जेलखानों में डाल कर उपद्रव से न बचा सकोगे, बल्कि उपद्रव की शिक्षा दोगे। तुम उन्हें मार कर, मिटाने की धमकी देकर कुछ भी रूपांतरण न कर पाओगे। क्योंकि मरने की उन्हें कोई चिंता ही नहीं, उन्हें जीने की चिंता है। मरने की किसको चिंता है? मार डालो; तुम्हारी गोलियां उनकी छातियों को छेद देंगी, लेकिन उन्हें बदल न पाएंगी। तुम्हारे कोड़े उनके शरीरों पर पड़ेंगे, लेकिन वे कोड़े उन्हें जगा न पाएंगे। उन्हें जगाओ। और उनके जगाने का एक ही उपाय है कि राज्य उनका शोषण न करे; राज्य उन्हें जीने दे अपने ढंग से; बीच-बीच में खड़ा न हो। राज्य धन को इतना न चूस ले कि उनके पास कुछ बचे ही न। जैसे ही उनके पेट भरे होंगे, वे सुविधापूर्ण होंगे, वैसे ही कोई उनसे उपद्रव न करवा सकेगा, वैसे ही कोई उन्हें अपराध की तरफ न ढकेल सकेगा। और उनके जीवन में धीरे-धीरे मृत्यु का दर्शन शुरू होगा। उस दर्शन से वे धार्मिक हो जाएंगे। धर्मशास्त्रों के अध्ययन से कोई धार्मिक नहीं होता; धार्मिक होने के लिए मृत्यु का शास्त्र पढ़ना जरूरी है। पंडित-पुजारियों की बकवास से कोई धार्मिक नहीं होता; धार्मिक होने के लिए मृत्यु के स्वर सुनने जरूरी हैं। मृत्यु सबसे बड़ा गुरु है। लेकिन आजीविका में उलझे लोग उस स्वर को नहीं सुन पाते, और आजीविका में उलझे लोग सब तरह के अपराध, उपद्रव, बगावतें, विद्रोह, विनाश में संलग्न हो जाते हैं। 255
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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