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________________ राजनीति को उतारो सिंहासन से श्तोल लाओत्से बिलकुल ठीक कह रहा है। लाओत्से कह रहा है, लोग भूखे हैं, इसलिए उपद्रवी हैं; और तुम उन्हें दंड देते हो! जब लोग उपद्रव करें तब तुम्हें दंड तो अपने को देना चाहिए, क्योंकि लोग इसकी खबर दे रहे हैं कि तुमने अब बहुत चूस लिया; अब तुम सीमा से आगे बढ़ गए; लोगों की क्षमता धैर्य की समाप्त हो गई। और लोगों की धैर्य की क्षमता बड़ी गहन है; तुम उसे भी समाप्त कर दिए। क्योंकि लोग सदियों से सहते हैं। अगर हम लोगों की सहिष्णुता का विचार करें तो वह अनंत मालूम पड़ती है। क्रांति, बगावत के लिए तो वे कभी-कभी राजी होते हैं। और वह भी लोग राजी नहीं होते, वह भी दूसरी सत्ता के लोलुप उनको भड़काते हैं, तभी राजी होते हैं। लाओत्से के वचन हम समझने की कोशिश करें। 'जब लोग भूखे हैं, तो उसका कारण है कि शासक बहुत करान्न खा जाते हैं।' लोगों का कर के माध्यम से इतना ज्यादा शोषण हो जाता है कि उनके पास कुछ बचता ही नहीं जीने के लिए। 'इसलिए भूखे लोगों का उपद्रव उनके शासकों के हस्तक्षेप से पैदा होता है।' इसलिए मूल कारण कहीं शासन में है, लोगों में नहीं है। लोग तो केवल उस मूल कारण के कारण प्रतिक्रिया करते हैं। अगर तुमने यह समझा कि लोगों में ही कारण है तो तुम उन्हीं को दबाने में लग जाओगे, उन्हीं को मारने में लग जाओगे। तब भूल हो गई। तब तुमने लक्षण को बीमारी समझ लिया। बीमारी कहीं गहरे में थी; तुम लक्षण को मिटाने में लग गए। जो अपराधी न थे, उन्हें तुमने जेलों में डाल दिया। जो अपराधी न थे, उनकी तुमने गर्दनें काट दीं। और जो वस्तुतः अपराधी थे, वे मालूम पड़ते हैं कि जैसे समाज की सुरक्षा कर रहे हैं। लोगों के जीवन में बहुत हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। राज्य ऐसा होना चाहिए कि लोगों को पता ही न चले कि 'वह कहां है। राज्य ऐसा होना चाहिए कि उसकी प्रतीति न हो। क्योंकि प्रतीति का मतलब है कि राज्य हर जगह तुम्हारे रास्ते में खड़ा हो जाता है। तुम उठते हो तो राज्य का विचार करना पड़ता है, बैठते हो तो विचार करना पड़ता है, तुम हिलते हो तो विचार करना पड़ता है। राज्य ऐसा होना चाहिए कि तुम्हें तुम्हारी स्वतंत्रता पर छोड़ दे। राज्य तो तभी बीच में आना चाहिए जब तुम किसी और की स्वतंत्रता पर आघात करो; इसके पहले नहीं। ठीक है, राज्य की व्यवस्था के लिए थोड़े से कर की जरूरत है कि राज्य की व्यवस्था चलती रहे। लेकिन जो काम साधारणतः एक आदमी कर सकता है, वही राज्य के हाथ में जाने पर पचास आदमी भी नहीं कर पाते। राज्य के हाथ में जो काम चला जाता है उसका ही पूरा होना मुश्किल हो जाता है। फाइलें सरकती रहती हैं एक टेबल से दूसरी टेबल पर। उनके अंबार हो जाते हैं। उनका कोई अंत ही नहीं मालूम पड़ता कि कोई चीज कभी पूरी होगी। छोटे-छोटे मुकदमे चलते हैं, वर्षों तक चलते रहते हैं। कोई हिसाब नहीं कि मुकदमे का इतना मूल्य ही न था; और वर्षों जितना उस पर व्यय किया जाता है, उसका कोई हिसाब नहीं है। जो काम क्षण भर में निपट सकता था, वह सालों में भी नहीं निपटता मालूम पड़ता। मेरे एक परिचित हैं; उन पर एक मुकदमा चला। वह मुकदमा उन पर उन्नीस सौ बीस में चला और अभी खतम नहीं हुआ है। उस मुकदमे में चार लोगों पर मुकदमा चला था; तीन मर चुके। जितने न्यायाधीशों ने उस मुकदमे को किया, वे सब मर चुके। जिस राज्य ने मुकदमा चलाया था, ब्रिटिश राज्य ने, वह मर चुका। जितने वकीलों ने मुकदमे में भाग लिया था, वे सब मर चुके। सिर्फ एक आदमी बच रहा है। वे मुझसे कहते हैं कि जब तक मैं न मर जाऊं, यह खतम न होगा; अब बस मेरे मरने की और बात है, तभी यह खतम होगा। पचास साल कोई मुकदमा चल रहा है! लेकिन उसका कोई अंत ही नहीं मालूम पड़ता। उसमें से नये जाल निकलते आते हैं, चीजें आगे बढ़ती चली जाती हैं। सरकार जैसे हर चीज को स्थगित करने की बड़ी गहरी तरकीब है। फिर इस पर व्यय होता है, करोड़ों रुपये का व्यय होता है। वह सारा व्यय उन लोगों के पास से आ रहा है जिनके पेट 247
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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