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________________ ताओ उपनिषद भाग६ भखे हैं। यहां लोगों को रोटी नहीं मिलती, वहां व्यर्थ की बातें वर्षों तक चलती रहती हैं जिनका कोई अंत नहीं आता। और सभी सरकारी नौकर कुशल हो जाते हैं टालने में। किसी को कुछ जरूरत ही नहीं मालूम पड़ती कि कोई चीज कभी अंत होनी चाहिए। मैंने सुना है कि दिल्ली के एक दफ्तर में बड़ा दफ्तर, बड़ा कारोबार किसी की टेबल कभी खाली नहीं, सब की टेबलों पर फाइलों के अंबार लगे हैं। सिर्फ एक आदमी की टेबल सदा खाली, जैसे कि हर काम वह रोज निपटा रहा है। लोग चिंतित हुए कि ऐसा कहीं हुआ है? आखिर एक आदमी ने उससे पूछा कि तुम किस तरकीब से काम करते हो? तुम्हारी टेबल पर कभी फाइल नहीं रहती! हर चीज तुम रोज निपटा देते हो जो कि बिलकुल असंभव है; कभी हुआ ही नहीं राज्यों के इतिहास में! तुम्हारी तरकीब क्या है? और तुम कभी थके-मांदे भी नहीं दिखते। कभी ऐसा भी नहीं कि तुम समय के बाद काम करते दिखते हो। तुम ठीक ग्यारह बजे आते हो, ठीक पांच बजे चले जाते हो। और टेबल सदा खाली! उस आदमी ने कहा, इसकी एक तरकीब है। तरकीब यह है कि कुछ भी आए, मैं बिना फिक्र उस पर लिख देता हूं : सेंड इट टु दयाराम फार फर्दर एक्सप्लेनेशंस इसे भेज दो दयाराम के पास और आगे की जानकारी के । लिए। अब मैं सोचता हूं, इतना बड़ा दफ्तर है, कोई न कोई दयाराम होगा ही। उस आदमी ने, जो पूछ रहा था, सिर ठोंक लिया। उसने कहा, दयाराम मैं हूं! और मेरी टेबल पर चल कर देखो। तो तुम्हारी कृपा है यह कि सारी दुनिया की फाइलें मेरी टेबल पर चली आ रही हैं। और मैं कोई हल ही नहीं कर पा रहा हूं कि उनका हल कैसे हो। भेज रहे हैं लोग एक से दूसरे के पास। नीचे की पहली पायदान से शुरू होती है फाइल और वह प्रधानमंत्री तक जाती है। वर्षों लगते हैं। फिर प्रधानमंत्री से वापस लौटती है कोई नयी जानकारी के लिए। फिर वर्षों लगते हैं। ऐसे ही सब डोलता रहता है। राज्य काम तो करता ही नहीं, सिर्फ टालता है। जो काम राज्य के हाथ में चला जाता है, वही होना बंद हो जाता है। और फिर भी, मजे की बात है, राजनेता कहे चले जाते हैं समाजवाद के लिए। जो उनके पास है, कुछ भी उनसे होता नहीं; लेकिन वे चाहते हैं कि सारे मुल्क का सारा काम उनके हाथ में हो जाए। वह फिर कब होगा? फिर उसके होने की कोई संभावना ही नहीं है। और इस सब व्यवस्था को जमाए रखने में यह सब मुफ्त नहीं जमती-इस व्यवस्था को जमाए रखने में सारा राज्य का शोषण चलता है। मैं एक सरकारी कालेज में कुछ दिन तक प्रोफेसर था। तो मैं चकित हुआ, किसी प्रोफेसर को कोई पढ़ाने की न इच्छा है, न कोई उत्सुकता है। लोग प्रोफेसर्स के कामन रूम में बैठ कर गपशप करते हैं, बातचीत चलाते हैं। लड़के आते हैं, चले जाते हैं, कोई किसी को उत्सुकता नहीं है। मैंने एक मित्र को पूछा कि यह मामला क्या है? तो उसने कहा, यह कोई प्राइवेट कालेज नहीं है, सरकारी कालेज है। प्राइवेट कालेज में पढ़ाई वगैरह होती है। यह सरकारी कालेज है, यहां कोई किसी को जरूरत नहीं है कुछ करने की। यहां तो जो नासमझ हैं वे ही पढ़ाते हैं; जो समझदार हैं वे राजनीति करते हैं। जो समझदार हैं वे वाइस चांसलर का इलेक्शन लड़ने का उपाय कर रहे हैं; और ऊपर कैसे चढ़ जाएं, प्रिंसिपल कैसे हो जाएं, हेड ऑफ दि डिपार्टमेंट कैसे हो जाएं, उस काम में लगे हैं। नासमझ कुछ छोटे-मोटे नये जो आ जाते हैं, जिनको अभी पता नहीं कि क्या करना, वे क्लासों में पढ़ाते हैं। सरकारी होते ही कोई भी काम स्थगित हो जाता है। और यह सब भयंकर भार है। लाओत्से कहता है, लोग भूखे हैं, उपद्रव पैदा होगा। लेकिन शासकों के हस्तक्षेप से यह सब हो रहा है। लोगों को उनके जीवन पर छोड़ दो; वे अपने लायक कमाने में सदा समर्थ थे; वे अपना पेट भर लेने में सदा समर्थ थे। जानवर, पशु-पक्षी समर्थ हैं; आदमी क्यों समर्थ न होगा! |248
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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