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मेने तीन नवजाबेः प्रेम ऑन अब-अति और अंतिम छोबा
इसलिए सच होंगे। एक व्यक्ति भी धार्मिक हो जाए तो कृष्ण, क्राइस्ट, बुद्ध, लाओत्से, महावीर सभी उस व्यक्ति के माध्यम से फिर पुनः अवतरित हो जाते हैं। क्योंकि फिर से वह व्यक्ति उस अज्ञात को खींच कर तुम्हारी पृथ्वी के अंधकारपूर्ण कोने में ले आता है; फिर से उन स्वरों को गुंजा देता है जो खो गए मालूम पड़ते थे।
लाओत्से कहता है, और यदि मूढ़ता जैसा नहीं लगता...।'
तो महान सिद्धांत सदा ही मूढ़ता जैसे लगेंगे। और महान सिद्धांतों की यात्रा पर केवल वे ही लोग जा सकते हैं जिन्हें मूढ़ होने की हिम्मत है। तुम अगर बहुत बुद्धिमान हो तब तो क्षुद्र से ही तुम्हें संतुष्ट होना पड़ेगा। बहुत बुद्धिमानों से मूढ़ तुम कहीं भी न खोज सकोगे। ज्यादा बुद्धिमानी मत दिखलाना, अन्यथा बुद्धिमत्ता से चूक जाओगे। पहली बुद्धिमानी तो मूढ़ होने की हिम्मत है। अज्ञानी होने का साहस ज्ञान की तरफ पहला चरण है।
तुम किसको धोखा दे रहे हो?
तुमने थोड़ा कचरा इकट्ठा कर लिया है; कहीं से सुने शब्द, बाजार में सुनी बातें, मां-बाप के उपदेश, स्कूल के शिक्षकों की चर्चा, वह सब तुमने इकट्ठा कर ली है। लेकिन उसका कोई भी मूल्य नहीं है।
मुल्ला नसरुद्दीन एक स्कूल में शिक्षक था। और जैसा कि स्कूल में शिक्षकों की आदत होती है, वह अखबार लेकर आंख बंद करके विश्राम करता था। लड़के उसे कई दफे सोया हुआ पकड़ लेते थे। आखिर लड़कों ने एक दफे कहा कि आप हमें तो सोने नहीं देते और आप खुद घुर्राटे लेते हैं। उसने कहा, मैं घुर्राटे नहीं लेता। तुम सब काम में लगे हो, उस बीच मैं स्वर्ग की यात्रा पर जाता हूं; वहां देवी-देवताओं से मिलता हूं, भगवान के दर्शन करता हूं; वहीं से तो ज्ञान लाता हूं तुम्हारे लिए रोज-रोज।
एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन बीच में जग गया; एक मक्खी उसके ऊपर भिनभिना रही थी। तो उसने देखा, एक सामने ही बैठा लड़का घुर्राटे ले रहा है। तो उसने जगाया। अब लड़के भी कुशल हो गए थे। लोग सीख लेते हैं, आखिर गुरु जब इतना ज्ञानी तो लड़के भी ज्ञानी हो गए। उस लड़के ने कहा, आप यह मत समझना कि मैं कोई सो रहा था; मैं स्वर्ग गया था। नसरुद्दीन थोड़ा चिंतित हुआ। उसने कहा कि वहां क्या देखा? उसने कहा, क्या देखा? मैंने सब देवी-देवताओं से पूछा कि मुल्ला नसरुद्दीन इधर आते हैं? उन्होंने कहा, हमने तो कभी नाम ही नहीं सुना।
न गुरु जानते हैं, न मां-बाप को कुछ पता है। कोई भी उस स्वर्ग में गए नहीं, कोई उस मोक्ष को जाना नहीं, और वे तुम्हें सिखा रहे हैं। हर बच्चे को वे सिखा रहे हैं। मैं छोटा था तो मुझे ले जाया जाता था मंदिर, कि झुको! मैं पूछता कि अगर आपको पता हो पक्का तो मैं झुकने को राजी हूं, मुझे आप पर भरोसा है। लेकिन मुझे शक है कि आपको पता नहीं है। मुझे लगता है कि आपके मां-बाप ने आपको झुकाया, आप मुझे झुका रहे हैं। अगर आपको पक्का पता हो तो मैं भरोसे में झुकने को राजी हूं। मेरे पिता ईमानदार आदमी हैं। उन्होंने मुझे कहा, तो फिर हम ही झुकते हैं, तुम मत झुको। क्योंकि हमारी तो आदत हो गई, और न झुकने से बड़ी अड़चन होगी। अब तुम अपना सम्हालो। मगर इस तरह के कठिन सवाल मत उठाओ।
___मां-बाप से सीख लिया है। स्कूल में सीख लिया है; किताबों में लिखा है। सब तरफ प्रचार हो रहा है, उससे सीख लिया है। उसको तुम ज्ञान समझ रहे हो! किसको धोखा दे रहे हो? खुद ही धोखा खा रहे हो।
एक पंडित एक गांव की यात्रा पर गया था। बड़ा पंडित था। एक छोटी सी घोड़ागाड़ी में गांव का किसान उसे ले जा रहा था। गांव में कोई यज्ञ होने को था। एक मक्खी घोड़े के आस-पास सिर के चक्कर काटती। और कभी-कभी पंडित के सिर के पास भी चक्कर काटती। पंडित बकवासी था, जैसे कि पंडित होते हैं। लंबा रास्ता था तो कुछ बातचीत चलाने के लिए उसने कहा उस देहाती से, क्यों रे-वह जो देहाती घोडागाड़ी को हांक रहा था—इस मक्खी का क्या नाम है? पंडितों की उत्सुकता नाम में ही रहती है। भगवान का क्या नाम है? मक्खी का क्या नाम है?