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ताओ उपनिषद भाग ६
और यह महान है और सदा ही ऐसा लगता रहेगा। अगर यह महान न होता तो कभी का तुच्छ हो गया होता। इसे भी थोड़ा समझ लो। महान शिक्षाएं सदा ताजी क्यों रहती हैं? तुम उन्हें बासी नहीं कर पाते। बुद्ध को गए पच्चीस सौ साल हो गए। लाओत्से को गए भी पच्चीस सौ साल हो गए। पच्चीस सौ साल समय जरा सी भी धूल उनके ऊपर नहीं जमा पाया है। पच्चीस सौ साल! न मालूम कितने सम्राट आए और गए, कितने युद्ध हुए, कितनी क्रांतियां हुईं, समाज बदला, जीवन के ढंग, सभ्यता, संस्कृति बदली। आज कुछ भी तो वैसा नहीं है जैसा लाओत्से के समय में था। लेकिन लाओत्से बिलकुल वैसा का वैसा, ऐसा ताजा जैसे सुबह की ओस हो, अभी-अभी खिला फूल हो, सद्यःस्नात, अभी-अभी स्नान करके आया हो। समय धूल नहीं जमा पाता महान सिद्धांतों पर।
छोटे सिद्धांत सामयिक होते हैं, महान सिद्धांत शाश्वत होते हैं, सनातन होते हैं। छोटे-छोटे सिद्धांत आते हैं, चले जाते हैं। महान सिद्धांत न तो आते हैं और न जाते हैं। जो लाओत्से कह रहा है वह लाओत्से के पहले भी मौजूद था। लाओत्से ने फिर से उसे वाणी दी। जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह सदा से मौजूद रहा है। मैं उसे फिर से वाणी दे रहा हूं। न लाओत्से का इसमें कुछ है, न मेरा इसमें कुछ है।
महान शिक्षाएं शाश्वत हैं, सनातन हैं। उन्हें कोई लाया नहीं; उन्हें कोई ले जा नहीं सकता। हां, इतना ही हो . सकता है, जब कोई व्यक्ति मौजूद होता है जो अपने हृदय को माध्यम बना दे, जो अपने प्राण को बांसुरी बना दे, तब वे शिक्षाएं फिर से अनुगूंज उठा देती हैं, फिर से गीत गुनगुनाने लगती हैं। शिक्षाएं सदा मौजूद रहती हैं; उस व्यक्ति की तलाश में रहती हैं जो अपने को खुला छोड़ दे और शिक्षाएं उससे बह जाएं।
धर्म किसी की बपौती नहीं है। इसलिए तो मैं कहता हूं, धर्म न तो हिंदू है, न मुसलमान है, न ईसाई है, न जैन है, न बौद्ध है; धर्म तो सनातन है। कभी क्राइस्ट के ओंठों से बांसुरी ने गीत गाया; इससे गीत ईसाई नहीं हो गया। गाने वाला वही एक है। कभी लाओत्से के ओंठों पर स्वर गूंजे; गीत ओंठों के कारण भिन्न नहीं हो गया। कभी महावीर, कभी बुद्ध, कभी कृष्ण। रूप बदलते हैं, अभिव्यक्ति बदल जाती है। लेकिन सार, आत्मा वही है।
इसे खयाल में रखो। क्योंकि ईसाई बन जाना बहुत सरल है, धार्मिक बनना बहुत कठिन। हिंदू बनना एकदम आसान है, मुफ्त; कुछ करना ही नहीं पड़ता। संयोग की बात है हिंदू घर में पैदा हो गए, हिंदू बन गए। धार्मिक बनना बड़ी क्रांति है। और जो सस्ते से राजी हो जाता है वह बहुमूल्य से वंचित रह जाता है। सस्ते से राजी मत होना। हिंदू होना इतना आसान नहीं है, न मुसलमान होना इतना आसान है, न ईसाई होना इतना आसान है जितना तुमने समझ रखा है। पैदा हो गए ईसाई घर में ईसाई हो गए। पैदाइश से धर्म का क्या संबंध है? धर्म से तो संबंध जन्म और मृत्यु का है ही नहीं। धर्म तो वही है जिसका कोई जन्म नहीं हुआ और जिसकी कभी कोई मृत्यु नहीं होती। तुम अपने जन्म और मृत्यु से धर्म को क्यों जोड़ रहे हो?
धार्मिक होना व्यक्ति का बड़े सचेतन अवस्था में लिया गया निर्णय है; जन्म नहीं। तुम्हें खोजना होगा; तुम्हें उठना होगा अपनी तंद्रा से; तुम्हें जागना होगा। जाग कर ही तुम धार्मिक हो सकोगे। सोए-सोए तुम हिंदू बने रहो, मुसलमान बने रहो, ईसाई बने रहो; कुछ फर्क न पड़ेगा। मंदिर-मस्जिदों में लोग सो रहे हैं। संप्रदाय एक तरह की गहन निद्रा है। जागना हो तो तुम्हें सनातन की खोज करनी पड़ेगी।
हां, जिस दिन तुम सनातन को समझ लोगे उस दिन तुम्हें उस सनातन की प्रतिध्वनियां मंदिरों-मस्जिदों में, गिरजाघरों में, गुरुद्वारों में, सब जगह सुनाई पड़ने लगेगी। संप्रदाय से कोई कभी धर्म तक नहीं पहुंचता, लेकिन जो धार्मिक हो जाता है उसकी समझ में सब संप्रदाय आ जाते हैं। शास्त्र से कोई कभी सत्य तक नहीं पहुंचता, लेकिन जिसने सत्य का जरा सा भी स्वाद चख लिया, सभी शास्त्रों में वही स्वाद अनुभव होने लगता है। तुम्हें गवाही बनना है; धार्मिक होकर ही तुम गवाही बन सकोगे। धार्मिक होते ही सारे शास्त्र तुम्हारी गवाही पर सच होंगे, तुम कहोगे
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