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________________ मेरे तीन खजानेः प्रेम और अब-अति आँन अंतिम छोबा अकबर ने फतेहपुर सीकरी बनाई। नयी बस्ती थी, नयी राजधानी थी। बड़ी मेहनत से बनाई गई थी। अरबों रुपये खर्च किए गए थे। फिर अकबर ने अपने पंडितों को, अपने दरबारियों को, अपने नवरत्नों को कहा कि कोई एक वचन खोजो दुनिया के साहित्य से जो इस फतेहपुर सीकरी के दरवाजे पर लिखा जा सके। बड़ा बहुमूल्य वचन लोगों ने खोजा; वह वचन है जीसस का। उस वचन का अर्थ है-जो फतेहपुर सीकरी के द्वार पर खुदा है कि यह संसार एक सेतु है; इससे गुजर जाओ, इस पर घर मत बनाना। दिस वर्ल्ड इज़ लाइक ए ब्रिज; पास श्रू इट, गो बियांड इट, बट डोंट मेक योर हाउस ऑन इट। सेतु का अर्थ होता है : दो किनारों के मध्य में। सेतु पर जो है उसमें हमेशा तनाव होगा। तुम जिस अवस्था में हो वह अवस्था नहीं है, वह एक बीमारी है। इसलिए तो तुम बेचैन हो। मनुष्य सदा बेचैन रहेगा। पशु बेचैन नहीं है। परमात्मा बेचैन नहीं है। मनुष्य बेचैनी है। मनुष्य एक गहन संताप है। रहेगा ही। क्योंकि दो अतियां उसे खींच रही हैं। या तो गिर जाओ और बन जाओ पशु। कभी संभोग में, कभी शराब में-वही घटना घटती है, गिर जाते हो वापस, थोड़ी देर के लिए पशुओं के जगत में लीन हो जाते हो। थोड़ी देर को शांति मिलती है। पर वह थोड़ी देर को ही हो सकता है। क्षणभंगुर! इसलिए तो तुम्हारे सारे सुख क्षणभंगुर हैं। क्षणभंगुर का इतना ही मतलब है कि जब तुम मूढ़ होते हो तभी तुम्हें सुख मिलता है। और मूढ़ता तुम क्षण भर को ही सम्हाल सकते हो। और उसके लिए भी तुम्हारे शरीर की केमिस्ट्री का बदला जाना जरूरी है। सेक्स में भी बदल जाती है। खूब भोजन कर लेते हो तब भी बदल जाती है शरीर की रसायन। शराब पी लेते हो, एल एस डी ले लेते हो, तब भी बदल जाती है शरीर की रसायन। शरीर की रसायन बदल जाए तो तुम थोड़ी देर के लिए पशु हो पाते हो फिर से। तब यह अंधी, मूढ़ प्रकृति के तुम हिस्से हो जाते हो। मूछित हो जाओ तो तुम मूढ़ जैसे हो जाते हो। सजग हो जाओ तो संतत्व उपलब्ध होता है। संतत्व में फिर कोई विचार नहीं है; यात्रा समाप्त हो गई। मूढ़ के पास भी कोई विचार नहीं है; यात्रा अभी शुरू ही नहीं हुई। मूढ़ एक तरह की शून्यता है, अभाव। संतत्व एक तरह की पूर्णता है। दोनों की एक खूबी है कि दोनों पूर्ण हैं। मूढ़ अपनी मूढ़ता में, संत अपनी पूर्णता में, पर दोनों पूर्ण हैं। इसलिए सांसारिक लोगों को अक्सर संत या तो विक्षिप्त मालूम पड़ते हैं या मूढ़ मालूम पड़ते हैं। . इस सूत्र को खयाल में ले लो। या तो तुम्हारी चेतना पूरी अंधकार में डूब जाए, तुम बिलकुल अचेतन हो जाओ, तो तुम्हें सुख मिल सकेगा। या तुम्हारी पूरी चेतना चैतन्य हो जाए, सब अचेतनता मिट जाए, सब मूर्छा टूट जाए, सब बेहोशी गिर जाए, तुम एक जलती हुई ज्योति बन जाओ परम चैतन्य की, तब तुम आनंद में लीन हो सकोगे। और ध्यान रखना, पीछे लौटने का कोई भी उपाय नहीं, कितनी ही कोशिश करो। पीछे लौटना ऐसा ही है जैसे कोई आदमी जमीन पर खड़े होकर छलांग लगाए; एक क्षण को हवा में उठ जाता है, दूसरे क्षण वापस जमीन पर आ जाता है। तुम्हारे चित्त की दशा से तुम पीछे नहीं जा सकते, प्रकृति पीछे जाने को मानती ही नहीं, जानती ही नहीं। जवान कैसे बच्चा होगा! बूढ़ा कैसे जवान होगा! पीछे लौटना नहीं होता, आगे ही जाना है। जीवन एक विकास है, जीवन एक सतत विकास है, परमात्मा पर पूर्णाहुति है। 'सब संसार कहता है, मेरा उपदेश मूढ़ता से मिलता-जुलता है। क्योंकि यह महान है, इसलिए यह मूढ़ता से मिलता-जुलता है। आल दि वर्ल्ड सेज, माइ टीचिंग ग्रेटली रिजेंबल्स फॉली। बिकाज इट इज़ ग्रेट, देयरफोर इट रिजेंबल्स फॉली। और यदि मूढ़ता जैसा न लगता, तो यह कब का तुच्छ हो गया होता। इफ इट डिड नाट रिजेंबल फॉली, इट वुड हैव लांग एगो बिकम पेटी इनडीड।'
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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