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________________ ताओ उपनिषद भाग६ उस गांव के गंवार ने कहा कि इसका नाम घुड़-मक्खी है। घुड़-मक्खी? घुड़-मक्खी का क्या मतलब होता है? उस गांव के गंवार ने कहा कि यह घोड़े, खच्चर, गधे, उनके सिर के आस-पास चक्कर...इसलिए इसका नाम घुड़-मक्खी है। उस पंडित ने कहा, क्या तेरा मतलब कि मैं घोड़ा हूं? उस ग्रामीण ने कहा कि नहीं, आप घोड़ा बिलकुल नहीं हैं, और घोड़ा जैसे लगते भी नहीं। तो उस पंडित को और थोड़ी बेचैनी हुई; उसने कहा, इसका क्या मतलब? तू मुझे खच्चर समझता है? उसने कहा कि नहीं, खच्चर भी आप नहीं हैं। आपके चेहरे से साफ है, आप खच्चर भी नहीं हैं। नहीं, मेरा यह मतलब नहीं है। तो पंडित ने कहा, अब तो एक ही विकल्प बचा, क्या तू मुझे गधा समझता है? उस ग्रामीण ने पंडित को नीचे से ऊपर तक कई बार देखा और कहा कि नहीं, गधा भी आप नहीं हैं, और गधे जैसे लगते भी नहीं हैं। लेकिन घुड़-मक्खी को धोखा देना मुश्किल है। धोखा किसको दे रहे हो? घुड़-मक्खी तक को धोखा देना मुश्किल है, तुम परमात्मा को, अस्तित्व को धोखा देने चले हो। वह तुम्हारा पांडित्य दो कौड़ी का है; जितने जल्दी कचरेघर पर रख आओ उतना अच्छा है। लाओत्से कहता है कि अगर मूढ़ों को ये परम सिद्धांत मूढ़ता जैसे न लगते तो वे कभी के तुच्छ हो गए होते। उनकी ताजगी है कि आज भी लाओत्से को समझने में उतनी ही अड़चन है जितनी कभी पहले थी। लाओत्से अब भी उतना ही बेबूझ है जितना कभी था। और लाओत्से सदा बेबूझ रहेगा। क्योंकि वह जिस सत्य की बात कर रहा है, सत्य का स्वभाव बेबूझ है। सत्य का स्वभाव रहस्य है। जिन्होंने अपने अज्ञान को समझ लिया वे तो शायद उसे समझने को तैयार हो जाएं, लेकिन जिन्होंने अपने अज्ञान को ज्ञान समझा है, उनके लिए वह सदा मूढ़ता जैसा ही रहेगा। , लाओत्से कहता है, 'मेरे तीन खजाने हैं।' यह लाओत्से की शिक्षाओं का सार है, निचोड़ है, नवनीत है। 'मेरे तीन खजाने हैं; उन पर पहरा दो, और उन्हें सुरक्षित रखो। पहला है प्रेम; दूसरा है अति कभी नहीं; तीसरा है संसार में प्रथम कभी मत हो। आई हैव थ्री ट्रेजर्स; गार्ड देम एंड कीप देम सेफ। दि फर्स्ट इज़ लव दि सेकेंड इज़ नेवर टू मच; दि थर्ड इज़ नेवर बी दि फर्स्ट इन दि वर्ल्ड।' - समझें। प्रेम। लाओत्से प्रार्थना नहीं कहता। क्योंकि प्रार्थना तो तुम अभी कर ही न सकोगे। अभी तो तुमने प्रेम ही नहीं किया। अभी तो प्रार्थना बड़ी दूर की बात हो जाएगी। और अभी तुम प्रार्थना अगर करोगे, बिना प्रेम किए, तो झूठी हो जाएगी प्रार्थना। क्योंकि प्रार्थना का सारा सत्य तो प्रेम से आता है। मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, ऐसा नहीं है कोई उपाय कि प्रेम को बचा कर और हम सीधे प्रार्थना में चले जाएं? तुम प्रार्थना में जाओगे कैसे प्रेम को बचा कर? प्रेम कोई सीढ़ी होती तो हम छलांग भी लगा लेते। प्रेम सीढ़ी नहीं है, प्रार्थना का प्राण है। अगर प्रेम कोई सीढ़ी होती तो छलांग लगा कर एक दूसरी सीढ़ी पर सीधे चले जाते। लेकिन प्रेम सीढ़ी नहीं है, प्रेम प्रार्थना का सारभूत प्राण है। और जब प्रेम से ही तुम बचना चाहते हो तो तुम प्रार्थना से भी बचना चाहोगे। हालांकि प्रार्थना में धोखा देना आसान है, प्रेम में धोखा देना मुश्किल है। इसलिए लोग पूछते हैं कि प्रेम से बचने का कोई उपाय नहीं? प्रार्थना तुम मंदिर में करते हो। लेकिन तुम प्रार्थना को सीखोगे कहां? उसका स्वाद तुम्हें कहां मिलेगा? __ अगर तुमने जीवन में प्रेम जाना हो तो मंदिर के द्वार खुलेंगे। क्योंकि जीवन में जिसने प्रेम को जाना वह आज नहीं कल मंदिर के द्वार पर दस्तक देगा। क्योंकि जब प्रेम में इतना रस पाया तो प्रार्थना में कितना रस न मिलेगा! प्रेम ही तो खींचेगा। जब एक बूंद पाकर इतना मिल गया तो सागर में कितना न मिलेगा! प्रेम अगर बूंद है, बिंदु है, तो प्रार्थना सागर है, सिंधु है। 14
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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