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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ 218 हो, तुम अपने जीवन के आंतरिक धर्म से न भाग सकोगे। धर्म वही है जो तुम्हें सम्हाले है, और सदा तुम्हें सम्हालेगा। तुम्हारी बुराई में भी सम्हालेगा; तुम्हारी भलाई में भी सम्हालेगा। तुम्हें अड़चन भी न देगा कि तुम यह मत करो। परमात्मा तुमसे कभी कहता ही नहीं कि तुम क्या करो और क्या न करो। करने की पूरी स्वतंत्रता है। लेकिन एक बात ध्यान रखना हर कृत्य का परिणाम है; उसको भोगने के लिए भी तुम राजी रहना । कृत्य की स्वतंत्रता है, परिणाम का बंधन है। तुम पाप करने को स्वतंत्र हो, लेकिन पीड़ा भोगने में परतंत्र हो । तुम पुण्य करने को स्वतंत्र हो, लेकिन सुख लेने में परतंत्र हो । वह तुम्हें लेना ही पड़ेगा। अब तक ऐसा हुआ ही नहीं कि कोई आदमी ने पुण्य किया हो और सुख लेने से छुटकारा पा लिया हो। वह नहीं हो सकता। बीज बोने में तुम स्वतंत्र हो, लेकिन फिर फल भी तुम्हें ही काटने पड़ेंगे। वहां तुम्हारी स्वतंत्रता नहीं है। इसलिए बीज बोते वक्त सावधानी बरतना । हमारी सबकी चेष्टा यही है कि बीज तो हम कड़वे बोएं, और फल हम मीठे काट लें। पाप तो हम करें, और सुख मिल जाए। यही तो हमारी सारी चेष्टा है। यह चेष्टा सफल न होगी। कृत्य के लिए तुम स्वतंत्र हो; फिर परिणाम हर कृत्य का बंधा हुआ है। ऐसा हुआ। बड़ी मीठी घटना है कि मोहम्मद के शिष्य अली ने मोहम्मद से पूछा कि आपकी बातें सुन कर ऐसा लगता है कि हम परम स्वतंत्र भी हैं और परम परतंत्र भी; ये दोनों विरोधाभास कैसे फलित हो रहे हैं? • मोहम्मद तो सीधे-सादे आदमी थे । वे कोई बड़े दार्शनिक न थे, कुछ पढ़े-लिखे न थे। इसलिए मोहम्मद की बात में जो सचोट अभिव्यक्ति है, वह तुम्हें मुश्किल से कहीं मिलेगी। कभी किसी कबीर में मिल सकती है; महावीर में न मिलेगी वह चोट, कृष्ण में न मिलेगी, बुद्ध में न मिलेगी। क्योंकि वे बड़े परिष्कृत लोग थे, बड़े सुसंस्कृत लोग थे। मोहम्मद तो बिलकुल अपढ़ गंवार | लिखना भी पता नहीं कि कैसे लिखें। बड़ी चोट है, क्योंकि उनकी जीवन की अनुभूति सीधी-सीधी है । शब्दों की आड़ नहीं है, शास्त्रों का फैलाव नहीं है। मोहम्मद ने कहा, तू ऐसा कर अली कि खड़ा हो जा और कोई भी एक पैर ऊपर उठा ले । अली ने बायां पैर ऊपर उठा लिया। मोहम्मद ने कहा कि अब तू दायां भी उठा ले । उसने कहा, अब आप जरा ज्यादती कर रहे हैं | बायां जब उठा लिया तो अब दायां नहीं उठा सकता। मोहम्मद ने पूछा कि मैं तुझसे यह पूछता हूं कि जब मैंने पहली दफा तुझसे कहा कि कोई भी पैर उठा ले, तब तू स्वतंत्र था या नहीं ? अली ने कहा, बिलकुल स्वतंत्र था; चाहता तो दायां उठाता, चाहता तो बायां । लेकिन अब तू क्या अनुभव कर रहा है? बायां तूने उठा लिया, अब दायां क्यों नहीं उठा सकता ? अब तू परतंत्र अनुभव कर रहा है। बिलकुल स्वतंत्र था शुरू में, तू कोई भी पैर उठा लेता, लेकिन उस पैर के उठाने के कारण अब तू परतंत्र है। अब उसका परिणाम है कि अब तू दाएं को नहीं उठा सकता; बायां उठा लिया, अब दायां नहीं उठा सकता। मोहम्मद ने कहा, ऐसी ही है परम स्वतंत्रता मनुष्य की, और ऐसी ही है परम परतंत्रता । कृत्य करने को तुम राजी हो । जो भी कृत्य तुमने किया, बिलकुल स्वतंत्र थे। कोई तुमसे कह न रहा था कि तुम यह करो। लेकिन जब तुमने कृत्य कर लिया, एक पैर उठ गया, दूसरा पैर बंध गया। वह दूसरा पैर है परिणाम का । कर्म की स्वतंत्रता है, कर्म फल की स्वतंत्रता नहीं । इसलिए अगर तुम चाहते हो कि परिपूर्ण स्वतंत्र रहो तो कर्म करने के पहले सोच लेना । कर्म करने के बाद तुम स्वतंत्र न रह जाओगे । छूट बड़ी है, बड़े-बड़े छेद हैं उसके जाल में, लेकिन तुम उससे भाग न पाओगे। कोई उससे बच नहीं सकता है। प्रत्येक कृत्य के पहले स्वतंत्रता तुम्हारे द्वार पर खड़ी होती है। और प्रत्येक कृत्य के बाद परतंत्रता खड़ी हो जाती है।
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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