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ताओ उपनिषद भाग ६
कारण वे उन्हीं कृत्यों को बार-बार दोहराते हैं जो तुम रोकना चाहते हो। और कुशलता से दोहराते हैं। और जितने लोग जेलों में बंद हैं उनसे हजार गुने लोग बाहर मौजूद हैं जो वही कृत्य कर रहे हैं, लेकिन ज्यादा कुशलता से कर रहे हैं।
असल में, बड़े पापी सदा बाहर रहते हैं, छोटे पापी फंस जाते हैं। बड़े पापी राजधानियों में बैठे हैं; छोटे पापी जेलों में सड़ रहे हैं। जो बहुत कुशल है उसको कानून पकड़ नहीं पाता। कैसा भी कानून बनाओ, कुशल आदमी कानून से बाहर निकलने का रास्ता खोज लेता है। कितनी भी व्यवस्था करो, आखिर जो व्यवस्था करता है आदमी वह आदमी ही है। तो आदमी की व्यवस्था को दूसरा आदमी तोड़ सकता है, क्योंकि दोनों की बुद्धिमत्ता एक जैसी है। तो दिल्ली में बैठ कर लोग कानून बनाते रहते हैं। जो कानून बनाने वाले हैं, वह भी आदमी की बुद्धि है। और सारे मुल्क में बैठ कर लोग कानून तोड़ते रहते हैं, क्योंकि वहां भी आदमी की बुद्धि है। आदमी ऐसा कानून कभी भी न बना सकेगा जिसे आदमी न तोड़ सके। सिर्फ परमात्मा ही ऐसा नियम बना सकता है जो आदमी न तोड़ सके।
लेकिन तुम्हारे कानून की वजह परमात्मा के कानून अंधेरे में पड़ गए हैं। वे पीछे हो गए हैं। तुम पापी को देखने ही नहीं देते कि पाप के कारण तुझे दुख मिल रहा है। तुम्हारी अदालतें उसे धोखा दे देती हैं। वह सोचता है, अदालतें दुख दे रही हैं। अगर न पकड़ाया गया होता तो क्यों ऐसा दुख मिलता? अगली बार ऐसी कोशिश करूंगा न . पकड़ा जाऊं। उसकी नजर ही तुम खराब किए दे रहे हो। पाप का दुख भीतर से आ रहा है; तुम बाहर से दुख देने की कोशिश में उसकी नजर को बाहर अटका रहे हो। वह देख ही नहीं पाता कि सिर मैं खुद ही तोड़ रहा हूं दीवाल से टकरा कर, कोई अदालत नहीं मुझे दंड दे रही। मैं मर रहा हूं खुद ही पाप में डूब-डूब कर; मैं जीवन को खो रहा हूं।
और जहां आनंद का नृत्य हो सकता था वहां केवल पीड़ा के आंसू हैं। और कांटे मैंने ही बोए हैं, कोई दूसरा मेरे लिए नहीं बो रहा है। तुम्हारी समाज की व्यवस्था ऐसी भ्रांति पैदा करती है कि दूसरे तुम्हारे लिए कांटे बो रहे हैं। तो प्रतिकार लो, लड़ो, संघर्ष करो।
लाओत्से कहता है, 'बिना संघर्ष के ताओ, स्वर्ग का मार्ग, विजय में कुशल है। बिना शब्द के पाप और पुण्य को पुरस्कृत करता है। बिना बुलावे के वह प्रकट हो जाता है।'
तुम्हें बुलाने की भी जरूरत नहीं है। अदालत को तो बुलाना पड़ेगा। पुलिस को आवाज देनी पड़ेगी। कानून को पुकारना पड़ेगा, तब कानून आएगा। परमात्मा का मार्ग तुम्हारे बुलावे के लिए प्रतीक्षा नहीं करता। तुमने कुछ किया, वहीं परमात्मा का नियम मौजूद है। तुमने कुछ सोचा, वहीं परमात्मा का नियम मौजूद है। इधर भाव की तरंग हिली, वहां फल तैयार होने लगा। यहां विचार उठा, वहां परिणाम शुरू हो गया। देर नहीं है क्षण भर की।
_ 'बिना बुलावे के वह प्रकट होता है। बिना स्पष्ट योजना के फल प्राप्त करता है।' ___ न तो उसने जाल बिछाया है अदालतों का; न हर चौराहे पर पुलिस के आदमी खड़े किए हैं। न कानूनों की कोई किताब है, कोई इंडियन पेनल कोड नहीं है; न कोई धाराएं हैं। तुम बचना भी चाहोगे तो कैसे बचोगे? कानून की धाराएं होती तो वकील कर लेते। परमात्मा और तुम्हारे बीच तुम वकील भी तो नहीं कर सकते।
हालांकि तुमने करने की कोशिश की है। और कुछ लोगों ने दावे किए हैं कि वे वकील हैं। तुम्हारे पुरोहित हैं, पंडे हैं, वे दावे करते हैं कि हम वकील हैं। तुम घबड़ाओ मत, हम इंतजाम जमा देंगे। तुम हमें पैसा दो, फीस चुका दो; हम यज्ञ करवा देंगे, हम पूजा करेंगे, स्तुति करेंगे, परमात्मा को राजी करवा देंगे। तुम बेफिक्री से चोरी करो। छोटा मंदिर बना दो घर में, हम आकर घंटी हिला कर पूजा कर जाएंगे तुम्हारी तरफ से।
वकील हैं। लेकिन वहां वकालत चल नहीं सकती। क्योंकि वहां कोई नियम-कानून नहीं हैं, तोड़ोगे कैसे? कानून लिखा हो, तोड़ा जा सकता है। जिस स्त्री से तुमने विवाह किया हो, तलाक लिया जा सकता है। लेकिन जिस स्त्री से विवाह न किया हो, प्रेम किया हो, तलाक कैसे लोगे? विवाह के साथ तलाक है। कानून के साथ तोड़ने का
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