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ताओ उपनिषद भाग ६
इसे थोड़ा समझ लो। जिसको भी समाज मिटाने को राजी हो जाता है वह भी समाज के प्रति प्रतिरोध से भर जाता है। और उसके प्रतिरोध का अर्थ होगा कि तुम जो चीज बदलना चाहते हो, वह वह न बदले। अपराधियों को दंड दे-देकर हमने अपराधी बढ़ाए हैं, कम नहीं किए। क्योंकि दंड अहंकार को चोट पहुंचाता है। और जब तुम किसी को दंड देते हो तो उसके मन में यही भाव उठता है कि और करके दिखाऊंगा, यही करके दिखाऊंगा, यद्यपि अगली बार थोड़ी कुशलता से करूंगा कि पकड़ा न जा सकूँ। इसके अतिरिक्त कोई भाव नहीं उठता। दंड देने से तुमने कभी किसी को बदलते देखा है? कभी दुनिया में ऐसा हुआ है कि दंड देकर कोई बदला हो?
लेकिन अंधापन हद्द है! हम दंड दिए जाते हैं। हम जितना दंड देते हैं उतने कारागृह बड़े होते जाते हैं। हर साल नये कारागृह बनते हैं, नयी अदालतें खड़ी होती हैं, नये पुलिस, नये संरक्षक, और यह बढ़ता जाता है सिलसिला। इसका कोई अंत नहीं मालूम होता। ऐसा लगता है, अगर ऐसा ही चलता रहा तो कभी न कभी पूरी पृथ्वी अपराधगृह हो जाएगी। संख्या बढ़ती ही जाती है।
दंड से कोई भी तो कभी रूपांतरित नहीं हुआ। दंड से तो आदमी पतित ही हुआ है।
मनसविद कहते हैं कि जो आदमी एक बार दंडित हो जाता है फिर वह बार-बार कारागृह आने लगता है। और हर बार बड़ी सजा पाता है, क्योंकि हर बार बड़ा अपराध करके आता है। तुम भी जानते हो, छोटे-छोटे बच्चे भी जानते हैं कि उनसे तुम कहो कि मत करो यह, तो उनके भीतर एक प्रबल आकांक्षा पैदा होती है करने की। क्योंकि आखिर तुम जब कहते हो मत करो, तो तुम उसके अहंकार को भयंकर आघात पहुंचा रहे हो। करके ही वह अपने अहंकार को बचा सकेगा, अन्यथा कोई उपाय नहीं है।
तुम्हें पता नहीं कि तुमने कितने अपराध बच्चों में इसीलिए पैदा करवा दिए हैं क्योंकि तुमने सिखाया कि मत करो। असल में, बच्चों को पता ही नहीं होता कि झूठ बोलना पाप है। जब तुम कहते हो कि झूठ बोलना पाप है तब उन्हें पहली दफा पता चलता है कि झूठ बोलने में जरूर कोई रस होगा। क्योंकि पाप में रस होता ही है। जिन चीजों को तुमने पाप कहा है वे सब रसपूर्ण हो गईं; तुम्हारे पाप कहने से और भी रसपूर्ण हो गईं। और तुमने जिन चीजों के लिए दंड दिया है, वर्जना की है, उनमें आकर्षण पैदा हो गया।
यहां दरवाजे पर लिख दो कि भीतर झांकना मना है। फिर यहां से कोई हिम्मतवर निकल न सकेगा बिना झांके। झांकेगा ही। तुमने जहां-जहां लिखा देखा हो कि यहां पेशाब करना मना है, वहां तुम्हें नीचे सौ आदमियों के चिह्न पेशाब करने के वहीं मिलेंगे उसी वक्त। असल में, जिस दीवाल पर लिखा हो यहां पेशाब करना मना है, वहां आते ही अचानक पेशाब लग आती है।
किसी ने कभी ऐसा किया नहीं, लेकिन तुम करके देखना। अगर कोई दीवाल बचानी हो तो उस पर लिख देना कि यहां से बिना पेशाब किए जाना सख्त मना है; अगर गए तो बहुत बुरा होगा। वहां जिस आदमी को पेशाब भी लगी हो वह भी रोक लेगा। आखिर आदमी आदमी है; इज्जत का सवाल है। ऐसे कोई मजबूर कर सकता है? ऐसे कोई जबरदस्ती कर सकता है किसी पर? ___ अहंकार जबरदस्ती से प्रतिशोध करता है, प्रतिरोध करता है, रेसिस्ट करता है।
इसलिए लाओत्से कहता है, 'कौन जानता है किन्हें मारा जाए और क्यों? संत भी इसे कठिन प्रश्न की तरह लेते हैं।'
यह निर्णय करना मुश्किल है। यह निर्णय वस्तुतः किया ही नहीं जा सकता। फिर हम कौन हैं निर्णय करने वाले? जीसस ने कहा है, जज यी नाट, तुम निर्णय लो ही मत। क्योंकि तुम्हारे सब निर्णय गलत होंगे।
'स्वर्ग का मार्ग-ताओ-बिना संघर्ष के विजय में कुशल है।'
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