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________________ ताओ उपनिषद भाग६ अमरीका में सब चीजें फैशन हैं। निर्भीक के लिए नये में रस है। नया गलत हो तो भी रस है; नया सड़ा-गला हो तो भी रस है; नया किसी सार का न हो, दो कौड़ी का हो, तो भी रस है। वह पुराने हीरे को भी नयी कौड़ी के लिए फेंक सकता है। यह उसका खतरा है। यह उसका दुर्गुण है। पुराने के साथ, भीरु के साथ यह खतरा है कि अगर नया हीरा भी उसे मिल रहा हो तो भी वह कौड़ी को रखेगा छाती से लगा कर, वह हीरे से भी डरेगा। वह कहेगा, नया है; क्या भरोसा? पुराने का भरोसा है। अगर पुराने भीरु आदमी को समझाना भी हो कुछ नया तो नयी शराब को भी पुरानी बोतल में ढाल कर देना पड़ता है। इसलिए तो मुझे लाओत्से और बुद्ध और कृष्ण पर बोलना पड़ता है; अन्यथा कोई कारण नहीं है। शराब मेरी है। मेरी ही बोतल भी हो सकती है। मगर मैं चाहूंगा कि भीरु भी उत्सुक हो जाए। वह मुझे सुनने न आएगा, लेकिन मैं गीता पर बोलूंगा तो सुनने आ जाता है। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। शराब तो मेरी है। बोतल कृष्ण की सही। बोतल का भी कोई मूल्य है! तो चलो लाओत्से सही, बुद्ध सही; तुम्हारी नासमझी को थोड़ी तृप्ति मिले, यही सही। नासमझी की तृप्ति से भी अगर कहीं तुम्हारे कानों में मेरे शब्द पड़ जाएं, बोतल के बहाने तुम आ जाओ और शराब मेरी पी लो, बात हो गई। पुराना होना चाहिए, भीरु आदमी को। फिर पुराना कुछ भी हो। प्राचीन उसका आब्सेशन है, उसकी विक्षिप्तता है; वह प्राचीन का दीवाना है। वह बचाता है। कचरे को भी बचा लेता है, मुर्दे को भी बचा लेता है, सड़े-गले को भी बचा लेता है। क्रांति होने ही नहीं देता। खतरा भी साफ है; लाभ भी साफ है। बचा सकता है वह। जीवंत को भी वही बचाता है। नये का खतरा और गुण भी साफ है। जीवंत को नया ही खोज पाता है। वही जो भूल करने को तैयार है वही तो नये को खोज पाएगा। जो भूल करने से डरता है वह नये को खोज ही नहीं सकता। जो सौ रास्तों पर जाने को तैयार है चाहे वे गलत हों, वही तो एक उस रास्ते पर पहुंच पाएगा जो सही हो सकता है। सही को खोजने का रास्ता ही क्या है और? गलत करने की हिम्मत! गलत में उतरने का दुस्साहस! भटकने के लिए जो राजी है वही तो हीरा खोज लाएगा। तुम अगर भटकने से डरे हो, हीरा नहीं खोज पाओगे। तो लाभ है निर्भीक का कि वह नये को खोजता है, नये को जन्म देता है। खतरा है निर्भीक का कि नये के नाम पर वह कूड़ा-करकट भी बटोर लाता है, कंकड़-पत्थर ले आता है। वह कहता है, ये नये हैं। और क्या पुराने हीरे को लिए बैठे हो? फेंको! इसलिए लाओत्से कहता है, 'कुछ लाभ भी हैं, कुछ हानि भी।' संत न तो साधु है, न असाधु; न तो भयभीत-भीरु, न निर्भीक-निर्भय। संत को न नये से संबंध है, न पुराने से; संत को सत्य से संबंध है। सत्य नया भी हो सकता है, पुराना भी। वस्तुतः सत्य न तो नया होता है, न पुराना; सत्य तो शाश्वत है। वह सदा पुराना है और सदा नया है। चिरनूतन! चिरपुरातन! संत की नजर न तो नये से आविष्ट होती है, न पुराने के प्रति पागल होती है। संत नये को जन्म देता है और पुराने को बचाता भी है। वस्तुतः संत नये को जन्म देकर ही पुराने को बचाता है। यह उसकी तरकीब है। यही रास्ता है पुराने को बचाने का कि नये को जन्म दो। वह पुराना हो गया है इसीलिए कि तुम उसे फिर-फिर जन्म नहीं दे पा रहे हो। किसी भी चीज को नया रखने का एक ही रास्ता है और वह यह है कि उसे प्रतिपल जन्म दो। बुद्धत्व कोई नयी चीज को थोड़े ही लाता है; वही जो सदा से थी, उसे फिर से नये रूप में ले आता है। पुराने रूप पुराने पड़ गए। पुराना ढंग-ढांचा जराजीर्ण हो गया। पुराना अब सम्हाल नहीं पाता उस आत्मा को। पुराने घर को आत्मा ने छोड़ दिया, क्योंकि वह घर रहने योग्य न रहा, खंडहर हो गया। बुद्ध पुरुष नया घर बनाते हैं। आत्मा तो पुरानी ही है सदा। नया रूप देते हैं; नया निमंत्रण भेजते हैं आत्मा को कि अवतरित हो जाओ। बुद्ध पुरुष बार-बार धर्म को अवतरित करते हैं। 212
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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