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मुक्त व्यवस्था-संत और स्वर्ग की
कभी की मर चुकी। भीरु उसे छाती से लगाए बैठा रहता है। वह यह मान ही नहीं सकता कि जो कभी जिंदा था वह मर कैसे सकता है। वह कहता है, हमारा धर्म सनातन है।
कोई धर्म सनातन नहीं होता। सनातन अस्तित्व है। धर्म तो अस्तित्व की सुनी गई प्रतिध्वनि है किसी प्रज्ञावान पुरुष में। जब प्रज्ञावान पुरुष जीवित होता है तो उसकी सुनी गई प्रतिध्वनि में प्राण होते हैं, बल होते हैं। जैसे-जैसे प्रज्ञावान पुरुष विदा हो जाता है वैसे-वैसे रूढ़ि बन जाती है, जो ज्ञान था वह शास्त्र बन जाता है। जो शब्द निशब्द से आते थे, अब केवल शब्दों की ही भरमार रह जाती है। जो कभी उस प्रज्ञावान पुरुष के शून्य से पैदा होते थे, अब वे केवल शास्त्रों की व्याख्या से पैदा होते हैं। जो कभी ध्यानस्थ समाधि से आए थे, अब वे केवल पंडित के पांडित्य से आते हैं। अब पुरोहित कब्जा कर लेता है।
बुद्ध ने कहा है कि मेरा धर्म पांच सौ साल से ज्यादा नहीं जीएगा। लेकिन अभी भी जी रहा है। कैसे जी रहा है? बंदरिया मरे बच्चे को लेकर घूम रही है। बुद्ध खुद कह गए हैं कि मेरा धर्म पांच सौ साल से ज्यादा नहीं जीएगा। अब बुद्ध की भी सुनने को, जो बुद्ध को मानता है, वह राजी नहीं। वह पकड़े है छाती से। धर्म मर चुका है। उसके प्राण खो गए, उसकी जीवंत गरिमा जा चुकी; अब कुछ सार नहीं है। लेकिन प्राचीन मार्ग है। बुद्ध के द्वारा पैदा हुआ है। अनेक लोग उस पर चल कर प्राचीन समय में बुद्धत्व को उपलब्ध हुए हैं। भीरु उसको पकड़े बैठा है। वह छोड़ेगा नहीं।
भीरु बचाता है। लेकिन उसके पास बोध नहीं है। वह गलत को भी बचा लेता है; मुर्दा को भी बचा लेता है; सड़े-गले को भी बचा लेता है। वह सिर्फ बचाता रहता है। वह बचाने में पागल है। उसका रस बचाने में है। वह यह नहीं देखता कि क्या बचा रहा है। वह चुनाव नहीं कर सकता; जैसे निर्भीक चुनाव नहीं कर सकता कि वह कहां जां रहा है, क्यों जा रहा है; बस नये का बुलावा काफी है।
इसलिए निर्भीक के हाथ में अगर दुनिया हो तो दुनिया में कभी किसी वृक्ष की जड़ें न जम पाएंगी। जमने के पहले कोई दूसरी पुकार आ जाएगी। इस वृक्ष को सम्हालने के पहले दूसरा वृक्ष बुला लेगा। अगर निर्भीक के हाथ में दुनिया हो तो दुनिया में फैशन होंगी, धर्म नहीं हो सकता।
अमरीका में वह हालत है आज। अमरीका आज जवान से जवान मुल्क है; इसलिए बड़ा निर्भय है। आज अमरीकन की चाल में जो निर्भय है, दुनिया की किसी कौम की चाल में नहीं है। हो नहीं सकता। क्योंकि अमरीका का कुल इतिहास तीन सौ साल का है। कोई इतिहास है तीन सौ साल भी? बिलकुल जवान है। जवान भी कहना ठीक नहीं है; बालपन है। तो अमरीका में हर चीज फैशन की तरह है। दो-चार साल टिक जाए तो बहुत। जब आती है
आंधी तो ऐसा लगता है कि पूरा अमरीका आत्मसात कर लेगा। कभी महर्षि महेश योगी, कभी मेहरबाबा, कभी सूफीज्म, कभी झेन। अभी आंधी चल रही है तिब्बेतन धर्म की। क्योंकि तिब्बत से लामा भाग खड़े हुए हैं, तिब्बत को छोड़ना पड़ा है। वे सब अमरीका पहुंच गए हैं। बड़ी जोर की आंधी है। पर दो-चार साल से ज्यादा कुछ भी नहीं चलता। क्योंकि अमरीका में अभी भीरुता नहीं है चीजों को पकड़ने की। सुनी आवाज; नया कुछ भी मिला, गए। वह ऐसे ही जैसे कि नये वस्त्र पहनने का आकर्षण होता है; नयी किताब पढ़ने का आकर्षण होता है; नयी स्त्री में सौंदर्य दिखता है; नये पुरुष में सौंदर्य दिखता है। नये का सेंसेशन है, नये की दौड़ है। पर वह फैशन से ज्यादा नहीं। फैशन कितनी देर टिकती है? उसकी कोई जड़ें नहीं होतीं।।
एक दिन राह पर मैंने मुल्ला नसरुद्दीन को देखा भागते, एक बंडल बगल में दबाए। मैंने पूछा, क्या इतनी जल्दी है? कहां भागे जा रहे हो? उसने कहा, पत्नी के लिए साड़ी खरीदी है; बातचीत में मत लगाएं, रोकें मत, मुझे जाने दें। मैंने कहा, इतनी क्या जल्दी है? साड़ी खरीदी है, पहुंच जाएगी। उसने कहा, इसके पहले कहीं फैशन बदल जाए। साड़ियों का कोई भरोसा है? कितनी देर फैशन चलता है?
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