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ताओ उपनिषद भाग ६
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हजार बार! और अभी एक मिनट पूरा नहीं हुआ। क्या कारण होगा स्त्री को इतना ज्यादा दर्पण के सामने तल्लीन होने में? वह तैयारी कर रही है उछालने की राह पर, बाजार में, सिनेमागृह में, क्लब - घर में, मंदिर में, वह उछालने की तैयारी कर रही है।
मैं एक जैन घर में रहता था। तो जब भी कभी कोई जैन उत्सव होता, जो घर की गृहिणी थी वह अपने सब सोने के आभूषण निकाल लेती। मैं उसको पूछा कि मंदिर में ? तो उसने कहा, और कोई मौका ही नहीं मिलता दिखाने का। धार्मिक स्त्री है, सिनेमा जाती नहीं, क्लब से कोई संबंध नहीं, होटल जा नहीं सकती, सात्विक शाकाहारी है। पति का भी इन चीजों में रस नहीं है। अब एक मंदिर ही बचा । पर स्त्री तो स्त्री है, मंदिर हो कि क्लब, फर्क क्या पड़ता है ? वृत्ति तो वही है, उछालना है।
उछालने का अर्थ यह है कि तुम अपने को प्रेम नहीं कर पाए; तुम किसी और की प्रतीक्षा कर रहे हो जो तुम्हें प्रेम करे । और कोई तुम्हें प्रेम करे, तो ही तुम्हारा भय कम हो । जो व्यक्ति अपने को प्रेम करता है वह उछालता नहीं फिरता। और मजा तो यह है कि तुम जितना मांगोगे कि कोई तुम्हें प्रेम करे, मांगे से प्रेम नहीं मिलता। बिन मांगे मोती मिलें, मांगे मिले न चून। प्रेम ऐसी चीज है जो मांगने से मिलती ही नहीं । तुम्हें प्रेम मांग कर कभी भी न मिलेगा। तुम भिखारी ही रहोगे। और जहां भी मिलेगा, तुम पाओगे कि धोखा हुआ। हर बार तुम पाओगे कि धोखा हुआ; असली न था। प्रेम तो उन्हें मिलता है जो प्रेम पाने के योग्य होते हैं। और प्रेम पाने के योग्य होने की पहली शर्त है : तुम अपने को प्रेम करो। तभी तो कोई दूसरा तुम्हें प्रेम कर सकेगा। तुमने कभी अपने को प्रेम ही नहीं किया और दूसरे की आकांक्षा कर रहे हो कि वह तुम्हें प्रेम करे। जो गलती तुमने नहीं की वह दूसरा क्यों करेगा? तुम तो अपनी निंदा करते हो और दूसरे से चाहते हो तुम्हें प्रेम करे ।
मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, हम अकेले में ऊब जाते हैं, हमें कोई संगी-साथी चाहिए। मैं कहता हूं, जब तुम खुद ही से अकेले में ऊब जाते हो तो दूसरा तुमसे ऊबेगा। जब तुम खुद भी अपने साथ रहने को राजी नहीं तो कौन तुम्हारे साथ रहने को राजी होगा? और वह दूसरा भी अपने से ऊबा हुआ होगा, तभी तो तुम्हारी तलाश में आ रहा है। तो दो ऊबे हुए आदमी जब मिलते हैं तो तुम सोच सकते हो क्या परिणाम होगा। जो हर विवाह में हो जाता है। पति-पत्नी ऐसे ऊब कर बैठे रहते हैं। पति-पत्नियों के चेहरे देखो; उनसे ज्यादा उदास चेहरे तुम कहीं भी न पाओगे। अगर तुम पुरुष को जरा प्रसन्न देखो तो समझना कि पत्नी उसकी नहीं है जो पास बैठी है, किसी और की होगी। अगर पुरुष को तुम रास्ते पर किसी स्त्री के साथ चलते हुए आनंद भाव में देखो, यह उसकी पत्नी नहीं है। क्योंकि उसकी पत्नी के साथ तो वह ऐसा डरा हुआ और कंपा हुआ और उदास और ऊबा हुआ चलता है कि तुम देख ही सकते हो, फौरन पहचान सकते हो।
मुल्ला नसरुद्दीन ने एक दिन मुझसे कहा कि मैं आदमियों को देख कर बता सकता हूं कि यह आदमी विवाहित है कि गैर-विवाहित। मैंने कहा, जरा मुश्किल मामला है। खैर, जो भी लोग आएं मुझसे मिलने, तुम नोट करते जाओ, और पीछे पता लगा लेंगे। उसने नोट किया और उसने बिलकुल ठीक-ठीक बता दिया। मैं थोड़ा हैरान हुआ तरकीब क्या है तेरी? उसने कहा, तरकीब यह है : जो आदमी शादीशुदा है वह बाहर पड़े हुए बिछावन पर पैर पोंछता है, जो गैर- शादीशुदा है वह सीधा चला आता है। पत्नी का भय! नहीं तो कौन पोंछता है पैर । अभ्यस्त हो गए हैं वे । जीवन तुम्हारे भीतर से बाहर की तरफ जाएगा; बाहर से भीतर की तरफ नहीं आता। तुमने अगर अपने को प्रेम किया है तो तुम पाओगे बहुत लोग तुम्हें प्रेम करेंगे। तुम अगर अपने को प्रेम करने में समर्थ हो गए तो तुम पाओगे अनंत-अनंत प्राणों से तुम्हारी तरफ प्रेम की धारा बहनी शुरू हो जाती है। तुम अगर अपने को प्रेम न कर पाए, जो कि तुम्हारे साधुओं की शिक्षा के कारण असंभव हो गया है, तो तुम्हें कोई भी प्रेम न कर सकेगा।