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ताओ उपनिषद भाग ६
किसको बुलाइएगा? और फिर इतनी बड़ी दुनिया है, अगर सब लोग बिना नाम के घूम रहे हों तो बड़ी अड़चन आ जाएगी। तो झूठा नाम भी बड़ा काम का है। लेकिन फिर कोई गाली दे दे राम को तो वे लकड़ी लेकर खड़े हैं, जान देने-लेने को राजी हैं-उस नाम के लिए जिसको वे लेकर कभी आए न थे; उस नाम के लिए जिसको लेकर वे कभी जाएंगे न; जो कि बीच की दुनिया की उपयोगिता थी; जिसकी कोई सार्थकता नहीं थी।
न तो नाम तुम्हारा है, न तुम्हारा कोई पता-ठिकाना है कि तुम कहां से आए हो, कि तुम कहां जा रहे हो, कि तुम क्यों आए हो, कि तुम क्यों जी रहे हो, कि तुम क्यों मर रहे हो। गहन अज्ञान है। लेकिन अज्ञान से घबराहट होती है, डर लगता है। तो हम अज्ञान के ऊपर ज्ञान को चिपका कर बैठ गए हैं। उससे थोड़ी सांत्वना मिलती है; सब चीजें मालूम होता है कि जानी-पहचानी हैं।
अजनबी आदमी तुम्हें ट्रेन में मिल जाता है, तुम अगर अकेले डब्बे में हो तो पहला काम तुम करना चाहते हो कि जान लो इस आदमी का नाम क्या है? कहां का रहने वाला है? हिंदू है कि मुसलमान है कि ईसाई है? थोड़ा पता-ठिकाना कर लो। क्योंकि अकेले इसके साथ बैठे हो; सो जाओ, बिस्तर उठा कर ले जाए, पेटी खोल ले, क्या करे, गर्दन पर सवार हो जाए। थोड़ी जानकारी जरूरी है। लेकिन जानकारी तुम किससे लोगे? उसी आदमी से! और जानकारी वह क्या दे सकता है? वह कहेगा, हां, मेरा नाम राम है, मैं हिंदू हूं। अगर तुम भी हिंदू हो तो आश्वस्त हुए। अगर तुम मुसलमान हो तो दुश्मन कमरे में है। इसे कुछ पता नहीं इसके नाम का, इसे कुछ पता नहीं इसके धर्म का। धर्म भी दिया हुआ है। वह भी मां-बाप दे रहे हैं। नाम भी मां-बाप दे रहे हैं। तुम्हारी सारी आइडेंटिटी, तुम्हारा सारा पता किसी के द्वारा दिया गया है। और पूछोगे किससे तुम? इसी आदमी से। बातचीत कर लोगे; थोड़ी जान-पहचान कर लोगे। अब यह आदमी अजनबी न रहा।
लेकिन तुमने कभी सोचा कि जिस पत्नी के साथ तुम तीस साल से रह रहे हो वह अभी भी अजनबी है, स्ट्रेंजर है। जान क्या पाए हो? तीस साल रह कर भी तो जानना संभव नहीं है। छोड़ो पत्नी को, अपने साथ तो तुम पचास साल से रह रहे हो; अपने को जान पाए हो? वह भी कुछ पता नहीं है। पूछो किससे? तुम्हें खुद ही अपना पता नहीं है। तुम पूछोगे किससे? और जब तुम्हें पता नहीं तो किसको पता होगा?
मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन पोस्ट आफिस गया एक पार्सल छुड़ाने। क्लर्क ने गौर से देखा, आदमी थोड़ा संदिग्ध मालूम पड़ा। उसने कहा कि लेकिन पक्का क्या कि यह नाम तुम्हारा ही है? और नाम तुम्हारे ही पार्सल है। उसने कहा कि प्रमाण है। जेब से उसने अपना पासपोर्ट निकाला, खोल कर बताया कि देख लो यह फोटो। उस क्लर्क ने गौर से फोटो देखा, नसरुद्दीन की तरफ देखा। कहा कि बिलकुल तुम ही हो। पार्सल दे दी।
अब मजा यह है कि तुम पूछोगे किससे? नसरुद्दीन से ही पूछ रहे हो। उसी का पासपोर्ट है, उसी का फोटो है, मान लिया। लेकिन यह आदमी नसरुद्दीन है जिसके नाम पार्सल है, इसका क्या प्रमाण है?
कोई भी प्रमाण नहीं है। लेकिन जिंदगी चल रही है। जिंदगी बिना प्रमाण के चल जाती है। लेकिन सत्य की खोज बिना प्रमाण के न चलेगी। तुम जो भी जानते हो, उससे तुमने किसी तरह जिंदगी में काम चला लिया है। लेकिन क्या वह ज्ञान है ? क्या जानते हो तुम?
अब तक दुनिया में हजारों तरह की ज्ञान की धाराएं बनीं और सब एक समय के बाद अंधविश्वास हो जाती हैं। कभी वे ज्ञान की धाराएं थीं; अब वे अंधविश्वास हैं। दुनिया ने जितनी चीजों को अब तक ज्ञान समझा था, सब कचरे की टोकरी में जा चुका है। और तुम यह मत सोचना कि जिसे तुम ज्ञान समझ रहे हो वह कचरे की टोकरी में नहीं चला जाएगा। वह भी रोज जा रहा है। वैज्ञानिक कहते हैं कि अब तो विज्ञान पर भी भरोसा करना मुश्किल है। क्योंकि हर दिन सब बदल जाता है। विज्ञान पर बड़ी किताबें लिखना मुश्किल हो गया। क्योंकि जब तक किताब पूरी
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