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________________ मुर्छा रोग और जागरण स्वास्थ्य होगी तब तक विज्ञान बदल जाता है। तो छोटी-छोटी किताबें लिखी जाती हैं, पीरियाडिकल्स में लेख लिखे जाते हैं बिलकुल छोटे। क्योंकि इसके पहले कि लेख छपे, कहीं ऐसा न हो कि बात बदल जाए। इतनी जल्दी सब करना पड़ता है। तीन सौ साल में विज्ञान तीस हजार बार बदल चुका है। कुछ भी तय नहीं है। सब बदल रहा है। और जो कल सही था वह आज गलत हो जाता है। जो आज गलत है वह कल सही हो सकता है। जो आज सही है वह कल गलत हो सकता है। ___ आदमी का ज्ञान कामचलाऊ है। उसके ज्ञान में कभी भी जड़े न होंगी। हो नहीं सकतीं। परमात्मा ही जान सकता है ठीक-ठीक क्या है। आदमी तो बाहर-बाहर घूमता है; कुछ भी इकट्ठा कर लेता है; भरोसा कर लेता है कि ज्ञान है; काम चला लेता है। काम भी चल जाता है। और यहीं कठिनाई है कि जिन चीजों से काम चल जाता है, हम समझते हैं कि वे ठीक होनी चाहिए, सत्य होनी चाहिए। जरूरी नहीं है। तुम्हारा भरोसा कि वे सत्य हैं काफी है। उनका सत्य होना जरूरी नहीं। देखो, दुनिया में कितनी पैथीज हैं! एलोपैथी है, आयुर्वेद है, यूनानी है, होमियोपैथी है, नेचरोपैथी है, एक्युपंक्चर है, हजार...। कौन ठीक है? अब तो वैज्ञानिक भी संदिग्ध हो गए हैं कि कुछ साफ मामला नहीं है कौन ठीक है। क्योंकि सभी इलाजों से मरीज ठीक होते पाए जाते हैं। और करीब-करीब अनुपात बराबर है। इस बात को देख कर कि होमियोपैथी से भी मरीज ठीक हो जाता है, एलोपैथी से भी ठीक हो जाता है, आयुर्वेद से भी ठीक हो जाता है-मरीज बड़े अनूठे हैं, कोई एक सिद्धांत को मान कर नहीं चलते मालूम होता है, बीमारी भी बड़ी अजीब है-तो पश्चिम में बहुत से प्रयोग किए गए जिसको वे प्लेसबो कहते हैं। एक मरीज को एलोपैथी की दवा दी जाती है। उसी बीमारी के दूसरे मरीज को सिर्फ पानी दिया जाता है। और बताया नहीं जाता कि किसको दवा दी जा रही है, किसको पानी दिया जा रहा है। बड़ी हैरानी है, सत्तर परसेंट दोनों ठीक हो जाते हैं। पानी जिसको मिलता है, वह भी उतना ही ठीक हो जाता है; जिसको दवा मिलती है, वह भी उतना ही ठीक हो जाता है। तो ऐसा लगता है कि आदमी ठीक होना चाहता है इसलिए ठीक हो जाता है। और जिसका जिस पर भरोसा हो। अगर होमियोपैथी पर तुम्हें भरोसा है तो एलोपैथी तुम्हें ठीक न कर पाएगी। अगर एलोपैथी पर तुम्हें भरोसा है तो होमियोपैथी तुम्हें ठीक न कर पाएगी। तुम्हारा भरोसा ही तुम्हें ठीक करता है। इसीलिए तो राख भी दे देता है कोई तो कभी काम कर जाती है। मैं एक साधु को जानता हूं। उन्होंने मुझे कहा। ग्रामीण हिस्से में रहते हैं। बड़े सरल आदमी हैं। बेपढ़ा-लिखा इलाका है। आदिमवासी हैं सब आस-पास बस्तर में जहां उनका निवास है। बेपढ़े-लिखे लोग, जंगली लोग हैं। उन्होंने मुझे कहा कि एक दफे एक आदमी आया। लगता था कि वह क्षयरोग से बीमार है। उनको औषधि का थोड़ा ज्ञान है। तो उन्होंने कुछ दवा-अब वहां कुछ था नहीं लिखने को; ईंट का एक टुकड़ा पड़ा था; उस ईंट के टुकड़े पर ही उन्होंने लिख दिया कि तुम जाकर बाजार से और ये दवा ले लेना। वह आदमी गैर पढ़ा-लिखा। वह कुछ समझा नहीं कि क्या मामला है। वह घर गया, उसने समझा कि यह ईंट दवा है, उसको घोंट-घोंट कर वह पी गया। जब तीन महीने में बिलकुल ठीक हो गया तब वह आया कि थोड़ी औषधि और दे दें; ऐसे तो मैं बिलकुल ठीक हो गया। उन्होंने कहा, भई औषधि तो बाजार में मिलेगी। उसने कहा, बाजार जाने की क्या जरूरत? आपने दी थी वह काम कर गई। उन्होंने पूछा, क्या किया तुमने? उसने कहा कि हम तो घोल-घोल कर पी गए उसको और बिलकुल ठीक हो गए हैं। और बिलकुल ठीक था, चंगा खड़ा था। तो वह साधु मुझसे कह रहे थे कि फिर मैंने उचित न समझा कहना कि वह ईंट थी और उसको पीने से टी.बी. ठीक नहीं होती। लेकिन जब ठीक हो ही गई तो अब कुछ कहना ठीक नहीं है, अब चुप ही रह जाना उचित है। और 171
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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