________________
मुर्छा रोग हैं और जागरण स्वास्थ्य
ला रहे हो? तुम तत्क्षण कहते हो, जो मन नहीं। जानते तुम दोनों को नहीं हो। एक अज्ञान से तुम दूसरे अज्ञान को छिपाने की कोशिश कर रहे हो।।
हमारा सारा ज्ञान ऐसा है, कामचलाऊ है, यूटिलिटेरियन है; उसकी उपयोगिता है। लेकिन उसकी सार्थकता क्या है? हम जानते क्या हैं? छोटी-छोटी बातें भी तो हमें पता नहीं हैं।
. डी.एच.लारेंस से एक छोटे से बच्चे ने पूछा कि वृक्ष हरे क्यों हैं? और लारेंस ने लिखा है कि मेरा सारा ज्ञान मिट्टी में गिर गया। वृक्ष हरे क्यों हैं? कुछ उत्तर न सूझा।
लारेंस बहुत ईमानदार आदमी है। बच्चे तो तुमसे भी ऐसे सवाल पूछते हैं जिनको बड़े-बड़े दार्शनिक जवाब नहीं दे सकते। लेकिन तुम उनका मुंह बंद करने की कोशिश करते हो। क्योंकि तुम यह मानने में डरोगे कि बच्चे के सामने तुम कहो कि मैं अज्ञानी हूं, मुझे पता नहीं। हर बाप बच्चे का मुंह बंद करता है। वह कहता है, जब बड़े हो जाओगे तब जान लोगे। और खुद को भी पता नहीं है; बड़ा वह हो गया है। और जब तक बच्चा बड़ा होगा, जान नहीं पाएगा, लेकिन उसके बच्चे पैदा हो जाएंगे जो जान लेने लगेंगे। वह उनसे कहेगा, जब बड़े हो जाओगे तब जान लोगे। डी.एच.लारेंस ईमानदार आदमी है। उसने कहा कि वृक्ष हरे क्यों हैं, मुझे पता नहीं। वृक्ष हरे हैं क्योंकि हरे हैं। मुझे पता नहीं।
तुम्हें पता है, वृक्ष हरे क्यों हैं? तुम कहोगे कि नहीं, वैज्ञानिक को पता है। वह बता देगा कि क्लोरोफिल के कारण वृक्ष हरे हैं। लेकिन क्लोरोफिल वृक्षों में क्यों है? बात तो वहीं की वहीं रही, कोई हल नहीं होता इससे। हम पूछते हैं, वृक्ष हरे क्यों हैं? तुम सवाल को एक कदम पीछे हटा देते हो, तुम कहते हो, क्लोरोफिल के कारण। लेकिन क्लोरोफिल क्यों है वृक्षों में? जरा ही तुम ज्ञान को पूछते चले जाओ दो-चार कदम, और पाओगे अज्ञान आ गया। जहां-जहां ज्ञान पाओ, जरा पूछने की हिम्मत करना, दो-चार कदम भी न चल पाओगे कि अज्ञान आ जाएगा। और जैसे ही अज्ञान खुलेगा वैसे ही पता चलेगा कि ज्ञान सिर्फ ढांकना था।
मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन बाजार गया था पत्नी के लिए साड़ी खरीदने। पत्नी भी चकित थी, क्योंकि पैसे उसके पास न थे। पर ईद करीब आ गई थी और कुछ भेंट वह देना चाहता था। खाली जेब चलने लगा तो पत्नी · ने पूछा, खाली जेब? उसने कहा, घबरा मत, हर चीज में से रास्ता है। पत्नी ने कहा, होगा। साथ गई।
. मुल्ला नसरुद्दीन ने दो साड़ियां चुनीं डेढ़-डेढ़ सौ रुपये की। पत्नी भी चकित हुई, इतनी कीमती साड़ियां खरीद रहा है और जेब खाली है। दुकानदार ने पैकेट भी बांध दिया, बिल भी तैयार करने लगा। तब उसने अचानक मन बदल लिया और उसने कहा कि ठहरो। बजाय दो साड़ियों के डेढ़-डेढ़ सौ की मैं यह तीन सौ की एक ही साड़ी ले लेता हूं। तीन सौ की साड़ी बांध दी गई। दबा कर साड़ी वह बाहर निकलने लगा। दुकानदार ने कहा, सुनिए, आप पैसा चुकाना भूल गए। उसने कहा, पैसा किस बात का? उन दो साड़ियों के बदले में ली है। दुकानदार ने कहा, वह तो आप ठीक कहते हैं, लेकिन उन दो का पैसा कहां चुकाया? उसने कहा, जो खरीदी नहीं उनका पैसा क्यों चुकाएं? वे तो आपके पास ही हैं।
आदमी का सारा ज्ञान ऐसा गोल-गोल है, किसी चीज का कुछ भी पता नहीं है। लेकिन सब चीजों पर हमने लेबल लगा दिए हैं कि पता है। जरूरी है। छोटा बच्चा जैसे पैदा होता है तो हम एक नाम रख देते हैं कि राम। पता हमें कुछ भी नहीं है कि इनका नाम क्या है। लेकिन बिना नाम के काम न चलेगा। एक लेबल लगा दिया कि इनका नाम राम, और हम उन्हें राम कहने लगे। उन्होंने भी सुना, वे भी अपने को राम मानने लगे। अब रास्ते पर कोई गाली दे देता है राम को और वे झगड़ा करने को खड़े हो जाते हैं। जो बिना नाम के आया था, जिसका कोई नाम नहीं था; न किसी को पता है। कामचलाऊ एक नाम चिपका दिया है ऊपर से, नहीं तो मुश्किल पड़ेगी। घर में दस बच्चे हैं,
169