SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग ६ भीतर से आवाज आई कि अभी तू तैयार नहीं। और द्वार तभी खुल सकते हैं जब तू तैयार हो। लौट जा! तैयार होकर वापस लौट। प्रेमी वर्षों तक पहाड़ों में, जंगलों में, मौन में, शांति में, ध्यान में डूबा रहा। चांद उगे, गए; दिन, रातें, महीने, वर्ष बीते। और तब एक दिन प्रेमी वापस लौटा, द्वार पर दस्तक दी। फिर वही सवालः कौन है? इस बार उसने कहा, तू ही है; मैं नहीं। द्वार खुल गए। जिस दिन भी तुम कह सकोगे अस्तित्व के द्वार पर जाकरः तू ही है, मैं नहीं; उस दिन द्वार खुले ही हैं। अगर ठीक से समझो तो द्वार कभी बंद ही न थे, तुम्हारे मैं ने ही द्वार बंद किए थे। पर्दा परमात्मा पर नहीं पड़ा है; पर्दा तुम्हारी आंख पर पड़ा है। परमात्मा पर से पर्दा नहीं उठाना है; नहीं तो एक आदमी उठा देता और सब दर्शन कर लेते। बुद्ध उठा देते, महावीर उठा देते, कृष्ण उठा देते, और बाकी अपनी जगह खड़े-खड़े दर्शन कर लेते। पर्दा अगर परमात्मा पर पड़ा होता तो एक बार उठ जाता, बात खतम हो गई। पर्दा हर आदमी की आंख पर पड़ा है। इसलिए बुद्ध कितना ही पर्दा उठाएं, तुम्हारी आंख से न उठेगा। महावीर कितना ही उठाएं, तुमसे न उठेगा। महावीर उठाएंगे तो उनका ही पर्दा उठेगा; तुम उठाओगे तो तुम्हारा उठेगा। द्वार बंद नहीं हैं। तुम्हारे मैं की ही एक दीवाल है, जिसमें तुम ही घिरे हो। और ज्ञान तुम्हारे मैं को बड़ी गहरी शक्ति देता है। अज्ञान में तो तुम कंपते हो; ज्ञान में तुम अकड़ जाते हो। जैसे ही तुम्हें लगता है मैं जानता हूं, वैसे ही तुम्हारा भय खो जाता है। जैसे ही तुम्हें लगता है मैं जानता हूं, वैसे ही तुम कुछ और हो गए। इसे भी छोड़ देना है। अन्यथा तुम ज्ञान से जकड़े रहोगे। ज्ञान तुम्हारा बंधन हो जाएगा। और ज्ञान तो वही है जो मुक्त करे। तो जो ज्ञान बंधन बना ले वह अज्ञान से बदतर है। यह पहली बात। दूसरी बात खयाल में रख लेनी जरूरी है कि जिसे हम ज्ञान कहते हैं वह है क्या? वस्तुतः वह ज्ञान है? या कि ज्ञान का धोखा है? ऐसा समझो कि अंतरिक्ष की यात्रा पर तुम्हें मंगल ग्रह का एक यात्री मिल जाए, और तुमसे पूछे, कहां रहते. हो? और तुम कहो, कोरेगांव पार्क। और वह पूछे, कभी सुना नहीं, कहां है यह कोरेगांव पार्क? और तुम कहो, पूना। और वह कहे कि यह तो एक उलझन को तुम दूसरी उलझन से सुलझाते हो, कहां है पूना? और तुम कहो, महाराष्ट्र। वह पूछे, कहां है महाराष्ट्र ? तो तुम कहो, भारत। और वह कहे, कहां है भारत? तो तुम कहो, पृथ्वी पर। वह पूछे, कहां है पृथ्वी? और तुम कहो कि सौर परिवार में। पर वह कहे कि तुम बात का हल नहीं कर रहे हो। तुम उत्तर नहीं दे रहे हो। मैं पूछता हूं अ, तुम बताते हो ब। जब मैं पूछता हूं ब, तो पता चलता है वह भी तुम्हें पता नहीं है, तब तुम बताते हो स। तुम एक अनजान को दूसरे अनजान से हल कर रहे हो। तुम्हें किसी का भी पता नहीं है। क्योंकि जैसे ही उसका सवाल उठता है, तुम फिर पीछे कहीं और हट जाते हो; तुम कहते हो महाराष्ट्र, भारत, सौर परिवार। कहां है सौर परिवार? अगर पूछने वाला पूछता ही जाए तो एक घड़ी ऐसी आ जाएगी जब तुम्हें कहना पड़ेगा पता नहीं। और जब आखिरी बात पता नहीं है तो पहली बात, जिसको तुम आखिरी से हल करना चाहते थे, वह कैसे पता हो सकती है? वैज्ञानिकों में एक मजाक चलता रहा है। एडिंग्टन ने अपनी किताबों में उस मजाक की चर्चा की है। और वह यह है कि वैज्ञानिक से अगर पूछो कि व्हाट इज़ मैटर? पदार्थ क्या है? तो वह कहता है, नाट माइंड। पदार्थ की परिभाषा? तो वह कहता है, जो मन नहीं। और पूछो, मन क्या है? तो वह कहता है, जो पदार्थ नहीं।। पर ज्ञान कहां है? हम पूछते हैं एक बात, तुम दूसरे अज्ञान पर हट जाते हो। हम पूछते हैं, मन क्या है ? तुम कहते हो, पदार्थ नहीं। स्वभावतः सवाल उठता है कि पदार्थ क्या है जिसको तुम मन को समझाने के लिए उपयोग में 168
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy