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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ महा भाषा नहीं बोलता था, क्योंकि भाषा कैसे सीखता? लेकिन एक बात अनुभव की गई उस बच्चे में कि अगर वह अशांत होता और कोई प्रेमपूर्ण स्त्री उसके ऊपर हाथ फेर देती तो वह शांत हो जाता। वह जो स्त्री का स्पर्श, वह उसे शांत करता। उसे मां का स्पर्श बन जाता होगा। उसे कभी मां का स्पर्श याद भी नहीं। प्रेम की आकांक्षा उसमें भी थी। लेकिन और उसके पास कुछ भी न था। वह बिलकुल जंगली जानवर था। मांस कच्चा खाता था। छह महीने लग गए उसे भोजन खिलाने में सिखाने में। छह महीने लग गए उसको किसी तरह खड़ा करने में। छह महीने में वह मर भी गया। और मेरा अपना खयाल है कि उसको सिखाने की यह जो चेष्टा की गई, इसमें वह मर गया। अन्यथा वह बड़ा स्वस्थ था जब आया था। क्योंकि उसके ऊपर यह भारी हो गया। बारह साल का बच्चा था, उसको यह सिखाना बहुत भारी हो गया। यह इतना ज्यादा तकलीफदेह हो गया कि वह मर गया। जैसे-जैसे सिखाया वैसे दुर्बल होता गया। जीवन को सिखाने की जरूरत ही नहीं है। जीवन कोई सभ्यता थोड़े ही है। जीवन कोई शिक्षण थोड़े ही है। जीवन तो तुम हो। तो जीवन को जानने के लिए तो तुमने जो सीख लिया है उसको थोड़ा अनसीखा करना ही हितकर होता है, ताकि तुम थोड़े मुक्त हो सको बंधनों से, ताकि तुम थोड़े अपने चारों तरफ की दीवाल को तोड़ कर बाहर आ सको। तो लाओत्से अगर कुछ भी कह रहा है तो वह यह कह रहा है कि तुमने जितना सीख लिया है वह जरूरत से ज्यादा है। कामचलाऊ को बचा लो, बाकी को छोड़ दो। या जो तुम बचाओ उसको भी बाहर-बाहर रखो, भीतर मत ले जाओ। उसे तुम्हारे प्राणों को आक्रांत मत करने दो। जीवन को सिखाना नहीं है। जीवन तुम हो। इसलिए लाओत्से कहता है, न कोई उसे साध सकता है; समझने में आसान, और कोई समझ नहीं सकता। और जब तक तुम समझने की कोशिश करोगे, तुम वंचित रहोगे समझने से। साधने में आसान; और कोई साध नहीं सकता। जीवन को साधने की कोशिश मत करना। जीवन को तुम्हारे साधने की कोई जरूरत नहीं है। जीवन लंगड़ा नहीं है कि उसे शिक्षा की बैसाखियां चाहिए हों। जीवन के पास अपने पंख हैं, अपने पैर हैं। तुम सिर्फ जीवन को खुला, मुक्त छोड़ देना। और तुम पाओगे कि जीवन चलने लगा अपने आप। जीवन के पास परमात्मा की ऊर्जा है। यह पूरा अस्तित्व उसे साथ दे रहा है। जीवन पंगु नहीं है। और न जीवन कमजोर है। जीवन के पास बड़ी ऊर्जा है। तुम सिर्फ एक मौका देना कि तुम बाधा मत डालना, और जीवन चलने लगेगा, दौड़ने लगेगा। और जीवन उड़ने भी लगेगा। कोई आकाश इतना बड़ा नहीं है जहां जीवन उड़ न सके। बड़े से बड़े आकाश को छोटा सा आंगन बना लेगा। लेकिन साधने की कोशिश तुमने की कि चूक जाओगे; समझने की कोशिश की कि नासमझी पैदा होगी। इसलिए तो पंडितों से ज्यादा अज्ञानी और नासमझ खोजना मुश्किल है। साधने की कोशिश की कि तुम भटक जाओगे। क्योंकि तुम जो भी करोगे वह तुम करोगे, तुम्हारी बुद्धि करेगी, जो कि बहुत छोटी है, और उस पर करेगी जो बहुत बड़ा है। अंश अंशी को साधने लगे, खंड अखंड को साधने लगे। तो मुश्किल में पड़ जाएगा। एक ही साधना है कि तुम खंड का आग्रह छोड़ दो, तुम खंड को अखंड में डुबा दो, तुम बूंद को सागर में गिरा दो। फिर सागर ही सम्हाल लेगा। तुम यह मत पूछो कि फिर बूंद का क्या होगा, फिर बूंद कहां जाएगी, भटक तो न जाएगी। तुम बूंद को बचाओ मत। और सागर को सिखाने की कोशिश मत करो। और सागर को बांधने की चेष्टा मत करो; सागर को साधने की चेष्टा मत करो। अगर लाओत्से को ठीक से समझो तो कोई साधना नहीं है। इसलिए लाओत्से ने किसी योग की विधियों की कोई बात नहीं की। न कोई पद्धतियां, न कोई मार्ग। साधना ही नहीं है। लाओत्से यह कह रहा है कि तुम्हें मिला है, उसे भोगो; तुम्हें मिला है, उसे जीओ। 152
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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