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संत को पठचाबबा महा कठिन है
तुम जीने में कृपणता कर रहे हो। तुम जीने तक में कंजूस हो। तुम श्वास तक डरे-डरे लेते हो। कोई आदमी पूरी श्वास नहीं लेता। फेफड़ों में, वैज्ञानिक कहते हैं, छह हजार छिद्र हैं। और स्वस्थ से स्वस्थ आदमी भी जो श्वास लेता है वह केवल दो हजार छिद्रों तक जाती है। चार हजार छिद्र तो बिना उपयोग के पड़े रहते हैं। तुम श्वास तक पूरी नहीं ले रहे, कैसे घबड़ाए हुए हो? और श्वास लेने में क्या तुम्हारा खो रहा है? लेकिन श्वास के साथ आता है जीवन; श्वास के साथ आती है ऊर्जा। और ऊर्जा का भय है।
छोटे बच्चे पूरी श्वास लेते हैं। कभी छोटे बच्चे को लेटा हुआ देखो जब वह सो रहा हो। तो उसकी छाती नहीं उठती, उसका पेट ऊपर उठता है। वह श्वास का पूरा ढंग है। क्योंकि तब श्वास पेट तक जा रही है, नाभि तक जा रही है, गहरे से गहरे छिद्रों तक फेफड़े में श्वास जा रही है। इसलिए छोटे बच्चे के जीवन में जो तरलता होती है वह तुम्हारे जीवन में खो जाती है। उसके जीवन में जो कोमलता होती है वह तुम्हारे जीवन में खो जाती है। छोटे बच्चे में जो ताजगी होती है वह तुम्हारे जीवन में खो जाती है।
फिर छोटा बच्चा क्यों ऐसी गहरी श्वास लेना बंद कर देता है? __ तुम जरा बच्चों को ध्यान करो। अगर तुमने बच्चे को कभी डांटा, तत्क्षण तुम पाओगे, उसकी श्वास धीमी हो जाती है और गहरी नहीं जाती। वह घबरा गया। क्योंकि जब भी तुम डांटते हो तभी तुम यह कह रहे हो कि तुम गलत हो। और जीवन में जब भी कोई गलत चीज मालूम पड़ती है तो जीवन सिकुड़ता है। तुमने कहा, ऐसा मत करना! तो तुमने एक द्वार बंद कर दिया जीवन का। तुमने कहा, बाहर मत जाना! तुमने दूसरा द्वार बंद कर दिया। तुमने कहा, अंधेरे में निकलना मत! तुमने तीसरा द्वार बंद कर दिया। तुमने कहा, इतना शोरगुल मत करो! तुम द्वार बंद करते जा रहे हो। बच्चा श्वास कैसे ले? क्योंकि श्वास तो ऊर्जा पैदा करेगी। ऊर्जा पैदा होगी तो बच्चा दौड़ेगा, अंधेरे को भी जानना चाहेगा, समुद्र में भी उतरना चाहेगा, वृक्ष पर भी चढ़ना चाहेगा। इसलिए अब एक ही उपाय है कि बच्चा ऊर्जा पैदा न होने दे। कमजोर हो जाए, खुद ही पेड़ पर चढ़ने में डरने लगे, तो तुम्हें डराने की जरूरत न रहे। तुम्हारे नियमों के कारण बच्चा अपने को कमजोर कर लेता है।
अगर तुम्हारे नियम न हों तो हर बच्चा वृक्षों पर चढ़ेगा, हर बच्चा नदियों में तैरेगा, हर बच्चा पहाड़ की यात्रा • पर जाएगा, और जीवन के सभी अभियान करेगा। अगर तुम्हारे निषेध-नियम न हों तो बच्चा वह सब जानना चाहेगा
जो जीवन जानना चाहता है। जो उसका भीतर का जीवन कहेगा जानो, वह जानेगा। बुरे को भी जानेगा, क्योंकि वह भी जीवन का आयाम है; भले को भी जानेगा, क्योंकि वह भी जीवन का आयाम है। क्रोध भी करेगा, करुणा भी करेगा, हंसेगा भी, रोएगा भी। वह जीवन के सब आयाम को अनुभव करेगा। और तब तुम पाओगे, उसकी श्वास पूरे छह हजार छिद्रों तक जाती है। तब उसके पास एक जीवन होगा जो ऊपर से बह रहा है; भरा-पूरा जीवन होगा।
लेकिन सभ्यता ने बहुत विषाक्त कर दिया है। इधर जो लोग भी गहन ध्यान में उतरना शुरू होते हैं, और विशेषकर सक्रिय ध्यान में, जिसमें श्वास का बड़ा प्रयोग है, वे मेरे पास आना शुरू हो जाते हैं। वे कहते हैं कि बड़ी अजीब-अजीब बातें श्वास की चोट से उठनी शुरू हो रही हैं। कि कभी इतना क्रोध अनुभव नहीं किया था; क्रोध अनुभव हो रहा है! और कोई कारण नहीं है। और कभी इतनी उदासी नहीं थी; उदासी अनुभव हो रही है! और कोई कारण नहीं है। वे दबी हुई, जो श्वास कम लेकर जिनको दबा दिया था, वे सब वृत्तियां वापस उठनी शुरू हो जाती हैं। डायाफ्राम के पास तुम्हारे सब दबे हुए मनोवेग पड़े हैं। उन पर जैसे ही चोट लगती है वे सब जगने शुरू हो जाते हैं। घबराहट होती है कि कहीं पागल तो न हो जाएंगे!
हद्द आश्चर्य है कि जीवन को सिकोड़ कर तुम स्वस्थ बने हो, और जीवन को फैलाते ही पागल होने का डर पैदा होता है। तुम्हें इतना डरा दिया गया है। तुम्हें समझाया ही यह गया है कि तुम मरे-मरे जीना। क्योंकि तुम अगर
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