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________________ संत को पहचाबबा मठा कठिन है तो लाओत्से कहता है, समझने में आसान, लेकिन न कोई उन्हें समझ सकता है और न कोई उन्हें साध सकता है। समझने की बात ही नहीं है। यही तो समझना है। बात जीने की है। कबीर ने कहा है : लिखा-लिखी की है नहीं, देखा-देखी बात। कोई लिखा-लिखी की होती, समझ लेते, पढ़ लेते। यह देखा-देखी बात! देखने की है। सौंदर्य देख सकते हो, समझ नहीं सकते। सौंदर्य को अनुभव कर सकते हो, समझ नहीं सकते। अनुभव संपूर्ण का होता है; समझ बुद्धि की होती है। समझ तो सिर्फ विचार की होती है, अनुभव तन-प्राण सबका होता है, इकटे का होता है। रो-रोआं उसमें सम्मिलित होता है। जब फूल को तुम खिलते देखते हो और सौंदर्य की प्रतीति होती है, तो क्या प्रतीति खोपड़ी में ही होती है? रोएं-रोएं पर छा जाता है फूल। उसके खिलने में तुम भी कहीं भीतर खिल जाते हो। उसके साथ एक रास बन जाता है, एक रंग बन जाता है। आंख, कान, सब तरफ से प्रवेश कर जाता है। बुद्धि को भी उसका अंश मिलता है, पर अंश ही मिलता है। समग्र शरीर पर व्याप्त हो जाता है; समग्र आत्मा पर फैल जाता है। समझ तो केवल बुद्धि की है, शब्दों की है; अनुभव जीवन का है। इसलिए लाओत्से कहता है, समझने में आसान, लेकिन कोई समझ न पाएगा। और साधने में आसान, लेकिन कोई साध न सकेगा। जीवन को कोई साध सकता है? जो मिला ही हुआ है उसे साधोगे कैसे? साधना तो उसे पड़ता है जिसे हम लेकर नहीं आते। सीखना तो उसे पड़ता है जो हमारा स्वभाव नहीं है। सीखने का अर्थ ही होता है पर-भाव। एक बच्चा पैदा होता है। उसे हम जो-जो बातें सिखाते हैं वे उसके स्वभाव में नहीं हैं। अगर हम न सिखाते तो 'वे कभी अपने आप पैदा न होतीं। लेकिन कुछ बातें अपने आप पैदा हो जाती हैं। वह उसका स्वभाव है। बच्चा जवान होता है और प्रेम की आकांक्षा उठती है। बच्चा जवान होता है और प्रेम की पुकार उठती है। क्या तुम सोचते हो अगर एक बच्चे को ऐसा बड़ा किया जाए कि उसे पता ही न चले कि प्रेम जैसी कोई घटना होती है, कोई प्रेम का शास्त्र उसके पास न आने दिया जाए, वात्स्यायन की कोई खबर उसे न मिले, खजुराहो, कोणार्क के मंदिर देखने को न मिलें, किसी पुरुष को कभी किसी स्त्री के प्रेम में पड़े होने की खबर उसे न मिले-हम उसे ठेठ जंगल में पाल सकते हैं, छिपा कर रख सकते हैं लेकिन एक घड़ी आएगी जब उसके भीतर प्रेम का उदय होगा। तब न वात्स्यायन की जरूरत होगी, न खजुराहो की जरूरत होगी। उसने शायद अपने जीवन में कोई स्त्री न भी देखी हो, तो भी उसके सपनों में स्त्री की छाया पड़ने लगेगी; उसे रूप भी स्त्री का पता न हो, पर रूप की प्यास उठने लगेगी। उसे कुछ भी कभी न समझाया गया हो कि क्या है प्रेम, क्या है काम, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वह स्वभाव है। वह जागेगा। पशुओं को, पक्षियों को, पौधों को कौन सिखा रहा है? कहां है विश्वविद्यालय जहां पशु-पक्षियों और पौधों को प्रेम सिखाया जा रहा है? स्वभाव से उठती है बात। और जीवन तुम्हारा स्वभाव है। साधना क्या है? साधना उन चीजों को पड़ता है जो स्वभाव नहीं हैं। हां, इस बच्चे को भाषा नहीं आएगी, अगर न सिखाई गई। तो यह गणित नहीं सीख लेगा; यह तर्कशास्त्र नहीं सीख पाएगा, अगर न सिखाया गया। यह बच्चा सभ्य नहीं हो सकेगा, अगर न सिखाया गया। इसे सभ्यता का कोई पता न होगा। ऐसा बहुत बार हुआ है कि कुछ बच्चों को भेड़ियों ने पाल लिया है। छोटे बच्चों को उठा ले गए। ऐसी तीन घटनाएं हैं; इस सदी में ही घटी हैं। अभी कुछ वर्ष पहले एक बच्चे को लखनऊ के पास पकड़ा गया जो भेड़ियों ने पाला था। वह भेड़ियों जैसा चलता था, आदमियों जैसा चलता भी नहीं था। दो पैर पर भी खड़ा नहीं होता था। शायद वह भी हम सिखाते हैं। बच्चा अपने आप अगर छोड़ दिया जाए तो शायद चारों हाथ-पैर से चलेगा, क्योंकि वही सुगम है। दो पैर पर खड़ा होना तो बड़ा हठयोग है बच्चे के लिए। धीरे-धीरे अभ्यास होने से खड़ा हो जाता है। कोई 151
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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