SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग६ क्षण में मन की कोई अभीप्सा नहीं, कोई प्यास नहीं। और यह क्षण बहुत छोटा है। यह क्षण इतना छोटा है कि तुम जरा सा हिले कि चूक जाओगे। और मन तो कंप रहा है; अतीत और भविष्य के बीच झूले मार रहा है। बस यहां नहीं रुकता, घड़ी के पेंडुलम की तरह घूमता है बाएं से दाएं; मध्य में नहीं ठहरता। इसलिए जितना बड़ा विचारक उतना ही जीवन से दूर। पहले वह प्रेम के संबंध में सोचता है; फिर प्रेम के संबंध में जो सोचा उसके संबंध में सोचता है। ऐसे चलता जाता है। फिर कोई अंत नहीं है। यह तो पहली बात खयाल में ले लेनी जरूरी है कि जटिल तुम हो; जीवन सरल है। जीवन अभी उपलब्ध है; तुम अभी मौजूद नहीं। लौट आओ वर्तमान में, समेट लो अपने को पीछे से और आगे से, ठहर जाओ यहीं और अभी, और कुछ भी तुमने कभी खोया नहीं है। और कुछ भी पाने को नहीं रह जाता। सब तुम पा लोगे। पर वर्तमान के क्षण में रुकना ही तो अड़चन है। तुम इस बात को भी सुन कर यही सोचते होः अच्छा, तो कल अभ्यास करेंगे, तो कल कोशिश करेंगे वर्तमान में आने की। आज तो उलझनें और हैं। फिर इतने जल्दी किया भी नहीं जा सकता। तो तुम इसे भी स्थगित करते हो। तुम ध्यान को भी स्थगित करते हो। और ध्यान का अर्थ कुल इतना ही है : वर्तमान में होना। मेरे पास लोग आते हैं। उनको मैं कहता हूं, ध्यान करो। तो वे कहते हैं, करेंगे। पर अभी बहुत उलझनें हैं; अभी लड़की की शादी निपटानी है। जैसे लड़की की शादी निपटाना ध्यान में कोई बाधा बनती हो। कि अभी बहुत काम-धाम है, उलझनें हैं सिर पर; और फिर अभी जीवन पड़ा है; फिर ध्यान तो वृद्धावस्था की बात है। वह तो चौथा चरण है, चौथा आश्रम है। आखिर में कर लेंगे। ध्यान का अर्थ ही होता है वर्तमान में होना। तुम उसे भी टालते हो। और जब भी तुमसे कहा जाए ध्यान, तुम तत्क्षण पूछते हो, विधि क्या है? विधि का मतलब है, तुम अभ्यास करोगे। अभ्यास का मतलब है, कल पर टालोगे। अभ्यास का अर्थ ही होता है, तुमने टाल दिया कल पर। ध्यान अभ्यास नहीं है। ध्यान तो जागरण है। अभी हो सकता है। अभ्यास किया तो कभी न होगा, क्योंकि अभ्यास की बात में ही तुम भूल गए, चूक गए। कृष्णमूर्ति निरंतर अपना सिर ठोंक लेते हैं। क्योंकि वे जीवन भर से समझा रहे हैं कि ध्यान की कोई विधि नहीं। और उनको वर्षों से सुनने वाले बार-बार फिर पूछते हैं, तो कैसे करें? अब जब विधि नहीं है, तो कैसे करें पूछना बिलकुल असंगत है। कैसे का तो मतलब होता है अभ्यास; कैसे का तो अर्थ होता है करेंगे तब मिलेगा। और ध्यान का अर्थ है कि वह मिला ही हुआ है इस क्षण। तुम कुछ मत करो; तुम सिर्फ रुक जाओ; तुम न करने में हो जाओ और ध्यान बरस जाएगा। तुम्हारे करने में ही चूका है; तुम्हारे न करने में मिलन है। जीवन तो सरल है, लेकिन मन जटिल है। लाओत्से के इन वचनों को समझने की कोशिश करो। 'मेरे उपदेश समझने में आसान हैं, और साधने में भी।' क्योंकि लाओत्से का उपदेश ही क्या है! सच कहो तो यह कोई उपदेश है! लाओत्से का उपदेश तो जीवन ही है। जीवन को उपलब्ध हो जाओ। जो मिला ही है, उसे पुनः पा लो। जो तुम्हारे भीतर जगा ही है, उसे पहचान लो। जो तुम हो, उसके रस, उसके स्वाद को पा लो। लाओत्से का उपदेश यानी जीवन। लाओत्से कोई परमात्मा की बात करता नहीं। परमात्मा की बात भी वस्तुतः जीवन से बचने की तरकीब है मन की। जीवन है; परमात्मा कहां है? और जीवन को ही जिन्होंने उसकी गहनता में जान लिया उन्होंने परमात्मा को जान लिया। लेकिन मैंने अब तक एक आदमी नहीं देखा जो मुझसे पूछने आया हो कि जीवन कैसे जीएं। मुझसे लोग पूछने आते हैं, परमात्मा को कैसे खोजें? एक आदमी नहीं आया जो पूछता हो जीवन कैसे जीएं। और जीवन है; और 146
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy