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________________ संत को पहचानबा मला कठिन है परमात्मा तो सिर्फ शब्द है। लेकिन परमात्मा के खोजी हैं; क्योंकि परमात्मा को खोजने में तो जन्म-जन्म लगेंगे। अगर तुम जीवन की बात मुझसे पूछोगे तो अड़चन में पड़ोगे। क्योंकि जीवन तो अभी यहां द्वार पर खड़ा है। अभी जी सकते हो। अगर परमात्मा को मिल कर नाचना है तो जन्मों-जन्मों की यात्रा है; पता नहीं कभी पूरी होगी कि नहीं होगी। लेकिन अगर जीवन को पाकर नाचना है तो तुम्हें कोई भी तो नहीं रोक रहा है। तुम नाच उठो अभी। द्वार पर जीवन बरस रहा है, सूरज उगा है, पक्षी गीत गा रहे हैं, सब तरफ उत्सव है। तुम किसकी खोज कर रहे हो? तुम क्यों नहीं उस उत्सव में सम्मिलित हो जाते अभी? अगर तुम जीवन की पूछोगे तो अभी मिल सकता है। इसलिए तुम जीवन की पूछते ही नहीं। तुम पूछते हो, परमात्मा कहां है? परमात्मा का रूप क्या है? परमात्मा है या नहीं? तुम परमात्मा को तर्क से सिद्ध करते हो, असिद्ध करते हो, सिद्धांत बनाते हो। और जो है वह तो सिर्फ जीवन है। उसका कोई सिद्धांत है? उसका कोई शास्त्र है? बिना वेद के पक्षी जी रहे हैं, बिना बाइबिल के वृक्ष जी रहे हैं, बिना कुरान के आकाश जी रहा है। तुम क्यों नहीं जी सकते? तुम क्यों शास्त्र को बीच में लाते हो? कहीं कोई गहरी चालाकी है जो तुम अपने साथ खेल रहे हो; कोई खेल है जिसमें तुम अपने को धोखा दे रहे हो। ___ एक दिन मैं मुल्ला नसरुद्दीन के घर गया, वह पेशेंस खेल रहा था, ताश खेल रहा था अकेला ही। मैं बैठा उसका खेल देखता रहा। मैंने देखा कि वह कई बार अपने को ही धोखा दे रहा है। अकेले ही खेल रहा है, दोनों तरफ से चालें खुद ही चल रहा है, लेकिन उसमें भी धोखाधड़ी कर रहा है। मैंने पूछा कि नसरुद्दीन, धोखा दे रहे हो? उसने कहा, कहां दिया! धोखा वगैरह कुछ नहीं दे रहा हूं; नियम से 'खेल रहा हूं। मैंने कहा, तुम्हारे अतिरिक्त यहां कोई भी नहीं है। तुम्हीं दोनों तरफ से चालें चल रहे हो। धोखा भी देने का क्या सार है ? उसने कहा, मैंने कभी धोखा दिया ही नहीं। अभी भी वह धोखा दे रहा है। मैंने पूछा, यह तो असंभव मालूम पड़ता है कि तुम अकेले हो, धोखा दो और पता न चले। उसने कहा कि मैं काफी होशियार हूं धोखा देने में; देता हूं और पता भी नहीं चलने देता। किसको धोखा दे रहे हो तुम शास्त्रों को बीच में लाकर? शास्त्रों की दीवाल खड़ी करके तुम किसे रोक रहे हो? तुम जीवन के ही प्रवाह को रोक रहे हो। तुम सूर्य की किरणों को रोक रहे हो। तुम पक्षियों के गीत को रोक रहे हो। तुम अपने को ही रोक रहे हो। लेकिन एक बार तुम शास्त्र में उलझ गए कि फिर तुम गहन जंगल में खो गए। शब्दों के जंगल से बाहर आना बड़ा मुश्किल है। क्योंकि बाहर आने का उपाय नहीं मिलता। एक शब्द दूसरे शब्द में ले जाता है; दूसरा तीसरे शब्द में ले जाता है। और इतना जाल खड़ा हो जाता है कि जितना तुम सुलझाते हो, लगता है और उलझने लगा। जीवन के संबंध में पूछो। जीवन ही परमात्मा है। और जीवन के अतिरिक्त और कोई परमात्मा नहीं है। लेकिन तुम्हारे धर्मगुरु तो जीवन की निंदा कर रहे हैं। उन्होंने तो परमात्मा को जीवन के विपरीत खड़ा कर रखा है। वे तो कहते हैं, जिसे परमात्मा की तरफ जाना हो उसे जीवन को काट डालना पड़ेगा। उनकी तो सारी सिखावन यही है कि तुम जीवन को काटो, पत्तों को, शाखाओं को, जड़ों को। जिस दिन तुम जीवन को बिलकुल काट डालोगे उस दिन तुम्हें परमात्मा मिलेगा। उनकी बात तुम्हें जंचती है। जंचती है, क्योंकि जीवन को काटने में तुम्हारे मन की हिंसा पूरी होती है। और जीवन को काटने में कल पर टालने की सुविधा मिलती है। और जीवन को काटते रहोगे तो तुम कभी भी न पा सकोगे परमात्मा को। क्योंकि अगर परमात्मा कहीं था तो जीवन की धड़कन में था; जहां हृदय धड़कता है, जहां श्वास चलती है, वहीं परमात्मा छिपा था। परमात्मा जीवन की ऊर्जा का नाम है। 147
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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