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________________ वन सरल है, लेकिन तुम जटिल हो। इसलिए चलते हो साथ-साथ, जीवन के समानांतर; लेकिन जीवन से कभी मिलन नहीं हो पाता। जब तक कि तुम भी जीवन जैसे सरल न हो जाओ तब तक मिलन हो भी न सकेगा। क्योंकि समान से समान का मिलन हो सकता है, सरल से सरल का, जटिल से जटिल का। जटिलता मन की है। और मन की जटिलता को समझ लो तो शेष सब समझ में आ जाता है। मन की जटिलता यह है : अगर फूल को देखो तुम, तो फूल को नहीं देखते, फूल के संबंध में सोचने लगते हो। संबंध में सोचा कि दूर निकल गए। फूल को ही देखते, सोचते न; फूल के सौंदर्य को जीते, सोचते न; फूल को पीते, सोचते न; फूल को घेर लेने देते तुम्हें सब ओर से, सोचते न; फूल को जाने देते हृदय तक, हृदय को जाने देते फूल तक, विचार की बाधा खड़ी न करते, तो सब सरल था। लेकिन देखा भी नहीं कि सोचना शुरू हो जाता है। सोचने से ही तुम जीवन से दूर हो जाते हो। प्रेम नहीं करते, प्रेम के संबंध में सोचते हो। उत्सव नहीं मनाते, उत्सव के संबंध में सोचते हो। जीते नहीं, जीने के संबंध में विचार करते हो। और जितना तुम विचार से घिरते जाओगे उतना ही जीवन दूर होता जाएगा। विचार का अर्थ है दूर जाने की यात्रा। फिर एक विचार दूसरे विचार में ले जाता है; दूसरा तीसरे विचार में ले जाता है। फिर अनंत श्रृंखला हो जाती है। पहला कदम चूके कि फिर तुम चूकते ही चले जाते हो। पहले कदम पर ही जीने और विचार के फासले को ठीक से समझ लेना। जीना हो तो जीना निर्विचार में है; सोचना हो तो सोचना निर्जीवन है। इस जटिलता के कारण जीवन सरल होते हुए भी उपलब्ध नहीं हो पाता। . जीसस ने कहा है, देखो लिली के फूलों को! वे सोचते नहीं। लेकिन उनके सौंदर्य के सामने सम्राट सोलोमन का सौंदर्य भी फीका है। फूल कल के संबंध में विचार नहीं करते; आज काफी है। आज इतना काफी है कि कल के संबंध में सोचने की जगह कहां? आज बहुत है। आज को उत्सव मना लेना है। तुम्हारे पास भी आज बहुत है। लेकिन तुम कल के संबंध में सोच रहे हो—जो अभी आया नहीं, और जो कभी आएगा भी नहीं। और तुम्हारी आदत निर्मित हो रही है। जब कल आएगा तो वह आज की तरह आएगा। और आज से टूटने की तुम्हारी आदत मजबूत होती चली जा रही है। कल भी तुम आगे आने वाले कल के लिए सोचोगे। ऐसे तुम जीओगे, और कभी न जी पाओगे। मरते क्षण भी तुम परलोक के संबंध में सोचोगे। चूक जाने की यह कला है, जीवन से चूक जाने की कला है कि तुम सदा वहां मत रहो जहां जीवन है, कहीं और रहो। या तो अतीत में, जो जा चुका, मन बड़ा रस लेता है; या भविष्य में, जो आया नहीं, मन बड़ी कल्पना करता है। बस यह क्षण, जो आ गया है, जो अभी है, जो मौजूद है, जो वर्तमान है, जहां जीवन का द्वार है, बस इस 145
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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