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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ __ और क्या हर्जा है? चींटी अगर चढ़ भी गई तो क्या हर्जा है? काट ही लेगी तो क्या बिगड़ जाएगा? तुम कभी सोचते ही नहीं कि दांव पर क्या लगा है? पैर पर काट ही लेगी चींटी तो काट लेगी। क्या बिगड़ जाएगा? लेकिन तुम ध्यान खोने को राजी हो, चींटी के काटने को सहने को राजी नहीं हो। इतनी सी भी कीमत न चुकाओगे जागने के लिए! अगर कमर में थोड़ा दर्द हो रहा है तो होने दो। कमर का ही दर्द है; कोई बहुमूल्य खजाना दांव पर नहीं लग गया है। ध्यान के बाद विश्राम कर लेना थोड़ा। नहीं लेकिन, कमर में दर्द है तो तुम ध्यान, परमात्मा सब भूल जाते हो। तत्क्षण कमर का दर्द सब कुछ हो जाता है। यह मन तुम्हें अटका रहा है। मन तुम्हें कह रहा है कि शरीर से लगे रहो। शरीर में हजार उत्पात पैदा कर रहा है। मत सुनो। उपेक्षा करो। कह दो कि ठीक है, यह शरीर जाएगा, यह तो चिता पर चढ़ेगा। चींटी ने काटा तो चढ़ेगा, न काटा तो चढ़ेगा। कमर में दर्द रहा तो चढ़ेगा, न रहा दर्द तो चढ़ेगा। इसकी अब हम बहुत चिंता नहीं ले रहे हैं। मन से कह दो कि तू बकवास बंद कर। अपने मन से बात करना शुरू करो। उसे कहना शुरू करो कि जो हमने निर्णय किया है वह हम करेंगे, तू बीच-बीच में मत आ। और अगर तुमने उससे ठीक से बात की तो तुम, चकित हो जाओगे, अगर तुमने बलपूर्वक बात की तो वह . बीच में आना बंद हो जाता है। गुलाम गुलाम है। मुंह लगा गुलाम है, बस इतनी ही बात है। बहुत उसकी सुनी है तो वह सुनाता है, वह रास्ते बताता है। तुम एक दफा कह दो कि चुप हो जाओ! तो मन चुप हो जाता है। कह कर देखो। बलपूर्वक कह कर देखो। ऐसे डरे-डरे मत कहना, ऐसा मत कहना कि हमें मालूम तो है कि वह चुप होगा नहीं। तो तुम कह ही नहीं रहे हो। कह दो कि चुप हो जाओ! अगर तुमने ठीक से कहा, तुम पाओगे, तत्क्षण मन चुप हो जाता है। मन तुम्हारा गुलाम है, तुम्हारा यंत्र है; तुम मालिक हो। अपनी मालकियत की घोषणा करो। यह कोई दमन नहीं है मन का, यह सिर्फ मालकियत की घोषणा है। यह सिर्फ यह कहना है कि मैं मालिक हूं, निर्णायक मैं हूँ तेरा काम मेरे निर्णय में साथ पहुंचाना है। जल्दी ही तुम पाओगे, मन हट जाता है। मन के हटते ही शरीर के उत्पात बंद हो जाते हैं, और जागरण की धीमी-धीमी ज्योति उठनी शुरू हो जाती है। गहन अंधकार के बाद जैसे सुबह, मरुस्थलों में भटकने के बाद जैसे अचानक मिल गया मरूद्यान, ऐसा ही वह जागरण है। हजारों-हजारों जन्मों तक धूप में चलने के बाद जैसे मिल गई वृक्ष की छाया, ऐसा ही शीतल वह जागरण है। प्यासे को जैसे पानी, भखे को जैसे भोजन, ऐसी ही आत्मा की प्यास के लिए वह जलस्रोत है। और एक बार तुम्हें उस जलस्रोत की थोड़ी सी भी समझ आ जाए कहां है, तब तुम पाओगे कि तुम चाहे बाहर से कितने ही भिखारी हो, भीतर से तुम सम्राट हो। और बाहर से प्रकृति ने तुम्हें घेरा है, लेकिन भीतर से तुम परमात्मा हो। जैसे हर मिट्टी के दीये में ज्योति है ऐसे हर मिट्टी की तुम्हारी देह में परमात्मा की ज्योति है। लेकिन तुम मिट्टी के दीये से इतने उलझे हो कि तुम्हें याद ही नहीं आती कि ज्योति भी है। मिट्टी का दीया ज्योति को सम्हालने को है, लेकिन मिट्टी के दीये को सम्हालने में तुम ज्योति को भूल गए हो। __ स्मरण करो ज्योति का! और ज्योति के स्मरण का अर्थ है, चौबीस घंटे कुछ भी करो, एक काम भीतर जारी रखो कि जाग कर करेंगे। साइकिल चला रहे हो रास्ते पर, जाग कर चलाओ। और तुम फर्क अनुभव करोगे फौरन। अगर तुम जाग कर चलाओगे, तुम पाओगे तत्क्षण पूरे शरीर की दशा बदल गई। भोजन कर रहे हो, जाग कर करो। तत्क्षण तुम पाओगे, गुण बदल गया, भीतर की चेतना का गुण और हो गया। एक हलकी शांति, एक सौम्यता, एक मधुरिमा तुम्हें घेर लेगी। अन्यथा तुम यंत्र हो। अभी तो तुम यंत्र हो। अभी मनुष्य होना नाममात्र को है। मनुष्य होने का अर्थ तो है जागना, पुनरुक्ति को तोड़ देना, मौलिक में प्रवेश, नये में-शाश्वत नये में पदार्पण। 1361
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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