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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ या है कि जैसे तुम पालनी; करके तुम पछतावा नहीं ले जाती, चाक फिर से काम-ऊर्जा से भर जाता है पागल की तरह। अगर जवान आदमी से भी उसके सारे सेक्स के हारमोन निकाल लिए जाएं तो वह नपुंसक हो जाता है, उसके मन से वासना उठ जाती है; दौड़ नहीं रह जाती, शिथिल हो जाता है। यही तरकीब तो उपवास करने वालों ने खोज ली थी। ज्यादा देर उपवास करो तो ऊर्जा काम-कोष्ठों को नहीं मिलती; नहीं मिलती तो वासना नहीं मालूम पड़ती। तो शरीर को ऐसा रखो कि बस काम के लायक शक्ति मिले, उससे ज्यादा नहीं, तो काम-ऊर्जा अपने आप क्षीण हो जाती है। लेकिन जिस दिन भोजन करोगे ठीक से उस दिन वापस लौट आएगी। तो धोखा तुम किसी को दे नहीं पाओगे; अपने को ही दे रहे हो।। अभी तो तुम्हारा जीवन बिलकुल यंत्रवत है। काम पकड़ लेता है तो तुम पकड़े गए। तुम जानते भी नहीं, कहां से काम पकड़ लेता है। तुम्हारे ही कोष्ठों में, रोएं-रोएं में छिपा है काम। क्रोध पकड़ लेता है, वह भी तुम्हारे रोएं-रोएं में छिपा है। हिंसा पकड़ लेती है तो तुम्हें लगता है कि जैसे तुम पजेस्ड हो, किसी ने तुम्हारे ऊपर हावी हो गया और तुमसे कुछ करवा रहा है। और तुम्हें करना पड़ता है। तुम न करो तो बेचैनी; करके तुम पछताते हो। तुम यंत्रवत हो, मूर्छित हो। इसलिए तुम दोहरते रहोगे। यह दोहराव बिलकुल ही व्यर्थ है। यह पुनरुक्ति कहीं भी नहीं ले जाती, चाक घूमता रहता है अपनी ही जगह पर। तुम थोड़ा जागो। और मजे की बात यह है कि जागना तुम्हारे शरीर में कहीं भी छिपा हुआ नहीं है; जागना कहीं और से आता है। जागने की क्षमता तुम्हारे मन की भी क्षमता नहीं है, तुम्हारे शरीर की भी क्षमता नहीं है। वही जागने की क्षमता तुम्हारी आत्मा की क्षमता है। जागते ही तुम आत्मवान हो जाते हो। तो जब क्रोध आए तो तुम क्रोध की कम फिक्र लो, जागने की ज्यादा फिक्र लो। क्रोध को जाग कर देखो। कामवासना आए तो कामवासना की चिंता मत लो, जाग कर कामवासना को देखो। जाग कर तुम दूर हो रहे हो; एक फासला पैदा हो रहा है। जब भी तुम्हारे भीतर कोई वासना तुम्हें पकड़ ले तब तुम जागने की कोशिश करो। कठिन होगा। मुझसे लोग कहते हैं कि आप कहते हैं क्रोध में जागो; क्रोध में तो हमें याद ही नहीं रह जाती। धीरे-धीरे रहेगी। कोशिश करोगे तो आएगी। क्योंकि बुद्ध को आई, कृष्ण को आई, क्राइस्ट को आई। कोई कारण नहीं तुम्हें क्यों न आए? क्योंकि तुम भी उसी बीज से बने हो। जब दूसरे वृक्ष बड़े हो गए, बीज टूट गए और फूल खिल गए, तो तुम्हारा बीज भी फूट सकता है। सतत श्रम की जरूरत है। सतत पहरेदारी रखनी पड़ेगी। आज नहीं होगा, कल होगा। कल नहीं होगा, परसों होगा। एक काम तुम करते ही रहो: कुछ भी स्थिति हो, जागने की कोशिश करते रहो। एक दिन अचानक तुम पाओगे, बात घट गई। अचानक सौ डिग्री तक जागना आ गया, एक विस्फोट हो गया। और जिस दिन जागरण का विस्फोट होता है, उससे अनूठी कोई घटना इस संसार में नहीं है। जैसे हजार-हजार सूर्य एक साथ निकल आए हों! श्री अरविंद ने कहा है कि जब जागा तब पाया कि जिसे अब तक प्रकाश समझा था वह तो महा अंधकार है, और जिसे अब तक जीवन समझा था वह तो मृत्यु की पुनरुक्ति है। जब जाना जीवन तब यह पहचान आई। जब जाना असली प्रकाश को तब पहचान आई कि जिसको हम अब तक प्रकाश समझते थे वह तो कुछ भी नहीं है। और जब यह जागरण आता है तब तुम्हें अपने स्वरूप की पहली दफा प्रतीति होती है। उस प्रतीति को शब्दों में कहने का कोई उपाय नहीं। चेष्टा करो! बुद्ध के आखिरी क्षण, विदा होते समय के शब्द हैं कि आनंद, चेष्टा में सतत संलग्न रहना! एक क्षण को प्रमाद न करना! जरा भी सुस्ती को मत भीतर बैठने देना! क्योंकि जरा सी सुस्ती, और बहुत कुछ खो जाता है। तू श्रम करते ही रहना जब तक कि जाग ही न जाए, तब तक मानना अपने लिए कोई चैन नहीं है। अथक श्रम करना! 134
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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