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________________ मुझसे भी सावधान रहना और मन से तुम जरा सी देर को भी टूट गए उसी क्षण तुम अपने घर के सामने खड़े हो जाओगे। इतना तुम्हें पहचान में आ गया-यह घर है! फिर सब याददाश्त वापस लौटने लगेगी। और जैसे ही तुम जागना शुरू हो जाते हो, घर को पहचान लेते हो, अपने को पहचान लेते हो, थोड़ा ही सही, एक किरण भी हाथ में आ जाए, तो सूरज तक पहुंचने का रास्ता खुल गया। फिर तुम्हारे जीवन में पुनरुक्ति बंद हो जाएगी। फिर तुम्हारे जीवन में हर घड़ी नयी होगी। प्रकृति तो पुरानी है; वर्तुलाकार घूमती रहती है। परमात्मा सदा नया है। तुम भी सदा नये होने की क्षमता रखते हो। और तब प्रतिपल नया होगा। सुबह वही होगी, लेकिन तुम्हारे लिए वही नहीं होगी। सांझ वही होगी, लेकिन तुम्हारे लिए वही नहीं होगी। क्योंकि तुम नये होओगे। और जब तुम नये होते हो तो तुम्हारी दृष्टि बदल जाती है। दृष्टि बदलती है तो सारी सृष्टि बदल जाती है। नये होने की कला तुम्हें सीखनी पड़ेगी। अन्यथा तुम पुनरुक्त हो रहे हो; मशीन की तरह ही चल रहे हो। मशीन नया कर भी नहीं सकती। पश्चिम में बड़े महत्वपूर्ण कंप्यूटर निर्मित हुए हैं। एक आदमी को जो गणित हल करने में सौ साल लगें, वे एक सेकेंड में कर सकते हैं। ऐसे सवाल जिनको कि तीन हजार वैज्ञानिक हजार साल में पूरा कर पाएं, वे एक सेकेंड में हल कर देते हैं। लेकिन कंप्यूटर नया कुछ भी नहीं कर सकता। तुमने जो उसे पहले सिखा दिया है वही कर सकता है। उससे रत्ती भर नया नहीं कर सकता। कंप्यूटर की खोज से ऐसा लगा था कि हमने आदमी से भी बड़ा मस्तिष्क खोज लिया। क्योंकि आदमी के मस्तिष्क की सीमा है, कंप्यूटर की कोई सीमा नहीं है। सारी दुनिया की पुस्तकें एक कंप्यूटर में भरी जा सकती हैं। और तुम कहीं से भी सवाल पूछ लो, कंप्यूटर जवाब दे देगा। वेद हो, कि कुरान, कि बाइबिल, कि लाओत्से, कि महावीर, कि बुद्ध, कि कृष्ण, सारे ग्रंथ एक कंप्यूटर में रखे जा सकते हैं। और कंप्यूटर इतना छोटा कि तुम अपनी जेब में रख ले सकते हो। और तुम जब चाहो, जो पूछना चाहो, तत्क्षण-एक सेकेंड की भी झिझक नहीं होती-कंप्यूटर जवाब दे देगा। लेकिन फिर भी कंप्यूटर एक काम नहीं कर सकता और वह यह कि नया-नया एक शब्द कंप्यूटर नहीं ला सकता। जो उसे दिया गया है, उसको दोहरा देगा। तो वैज्ञानिक पहले बड़े प्रसन्न हुए थे, फिर बड़े उदास हो गए। क्योंकि मनुष्य के मस्तिष्क की गरिमा उसका संग्रह नहीं है; उसके नये को-एकदम नये को-पहचान लेने की क्षमता, एकदम नये को जन्म देने की क्षमता, एकदम मौलिक को प्रारंभ करने की क्षमता है। वह कोई यंत्र कभी भी न कर पाएगा। यंत्र कर कैसे सकता है? जो हमने उसे सिखा दिया वही कर सकता है। अगर तुम भी वही कर रहे हो जो तुम्हें समाज ने सिखा दिया, अगर तुम भी वही कर रहे हो जो प्रकृति ने तुम्हारे भीतर, तुम्हारे क्रोमोसोम में, तुम्हारे मूल कीष्ठों में जिसका ब्लू-प्रिंट रख दिया, अगर तुम भी वही कर रहे हो तो तुम भी यंत्र हो। मनुष्य अभी पैदा नहीं हुआ। गुरजिएफ कहा करता था कि मैं इस सिद्धांत को नहीं मानता कि हर आदमी के भीतर आत्मा है। उसकी बात में थोड़ी सचाई है। वह कहता था, अधिक लोग तो यंत्र हैं, कभी किसी आदमी में आत्मा होती है। अधिक लोग तो मशीन हैं, मनुष्य नहीं हैं। और वह ठीक कह रहा है। क्योंकि जहां तक सौ में निन्यानबे आदमियों का संबंध है, वे यंत्रवत जी रहे हैं, उनको आत्मवान कहना व्यर्थ ही है। कहते हैं आत्मवान उनको हम उनकी संभावना के कारण, उनकी वास्तविकता के कारण नहीं। वास्तविकता तो यंत्रवत है। लड़का जवान हुआ; उसकी काम-ऊर्जा पक गई; अब उसके मन में स्त्री का खयाल उठने लगा। यह तुम नहीं कर रहे हो। यह तो तुम्हारे शरीर के कोष्ठों में छिपा हुआ है; वे कोष्ठ ही तुमसे करवा रहे हैं। यह तो तुम्हारे शरीर के भीतर दौड़ते हुए हारमोन तुमसे करवा रहे हैं। तो बूढ़े आदमी को भी अगर हारमोन के इंजेक्शन दे दिए जाएं तो वह 133
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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