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________________ ताओ उपनिषद भाग६ क्रोध आग से भी बदतर है। क्योंकि आग तो केवल हाथ को जलाती है, चमड़ी को जलाती है, क्रोध तुम्हारी अंतरात्मा तक को झुलसाता है और जलाता है। आग की पहुंच तो ऊपर ही ऊपर है, क्रोध का जहर तो तुम्हारे प्राणों के गहनतम में प्रवेश कर जाता है। जागा हुआ आदमी कैसे घृणा करेगा? क्योंकि घृणा करके तुम दूसरे को थोड़े ही नुकसान पहुंचाते हो, घृणा करके तुम अपने को ही नष्ट करते हो। घृणा आत्मघात है। घृणा का अर्थ है अपने को जहर देते रहना। दूसरे को नुकसान होगा कि नहीं होगा, यह गौण है। लेकिन जो आदमी घृणा में जीता है, वह धीरे-धीरे अपने भीतर मरता जाता है। घृणा धीमे-धीमे मौत की तरफ ले जाती है। जो आदमी जागा हुआ है वह कैसे तृष्णा करेगा? क्योंकि तृष्णा सिवाय दुख के और कहीं नहीं ले जाती। पर यह जागे को दिखाई पड़ता है। उसके पास आंख है। वह देखता है कि यह रास्ता तो सिर्फ दुख में ले जाता है। तो क्यों अपने पैर उस पर उठाएगा? सोया हुआ आदमी, जैसे नशे में चल रहा हो, जैसे उसे पता न हो, कहां जा रहा है, क्यों जा रहा है, बार-बार उन्हीं रास्तों पर चला जाता है। उन्हीं रास्तों पर जाना सुगम है सोए आदमी को। क्योंकि नये रास्ते पर जागरण की जरूरत पड़ेगी। पुराने रास्ते की आदत हो जाती है। तुमने कभी खयाल किया? तुम साइकिल से या कार से घर लौटते हो, तुम्हें याद नहीं रखना पड़ता कि अब बाएं घूमें कि दाएं घूमें। सोया हुआ शरीर सब करता रहता है। अचानक तुम पाते हो कि दफ्तर से दरवाजे के सामने खड़े हो। बीच का रास्ता यंत्रवत पूरा हो गया। तुम वहीं पहुंच जाते हो। इतनी बार आए-गए हो कि अब होश की कोई जरूरत नहीं। हां, घर बदल लो तो तुम्हें कुछ दिन होश से आना पड़ेगा। अगर होश से न आओ तो तुम पुराने घर पर पहुंच जाओगे। दूसरे महायुद्ध में ऐसा हुआ कि एक आदमी को चोट लग गई और उसकी स्मृति खो गई, स्मृति बिलकुल खो गई। उसे यह भी याद न रहा कि मेरा नाम क्या है। उसे यह भी याद न रहा कि मैं किस फौज का हिस्सा हूं। युद्ध के मैदान पर कहीं उसका नंबर भी गिर गया जब उसे चोट लगी। तो बहुत मुश्किल हो गई कि वह कौन है। यही पता लगाना मुश्किल हो गया। उसे पूरे इंग्लैंड में घुमाया गया-शायद कहीं याद आ जाए! बड़े-बड़े नगरों में ले जाया गया। वह जाकर खड़ा हो जाए, उसे कुछ याद न पड़े। लेकिन एक छोटे गांव पर-ट्रेन यूं ही रुकी थी, वहां तो उतारने का खयाल भी न था—जैसे ही उसने गांव की तख्ती पढ़ी, कुछ हुआ। वह नीचे उतर गया। जो साथी थे उन्होंने रोकना भी चाहा कि तू क्या कर रहा है। लेकिन वह उतरा और भागा गांव के भीतर। जो उसे लेकर चल रहे थे वे उसके पीछे भागे। वह भागता हुआ एक दरवाजे पर जाकर खड़ा हो गया। उसने कहा, यह मेरा घर है। और सब याददाश्त वापस लौट आई। इतनी बार इस घर आया-गया था, इतनी बार इस स्टेशन के नाम को पढ़ा था, छिपी पड़ी थी कहीं मूर्छा में बात। जरूरत न पड़ी याद करने की। घर के द्वार पर खड़ा हो गया। पिता ने पहचान लिया कि मेरा लड़का है। सूत्र मिल गया। याददाश्त धीरे-धीरे वापस लौट आई। तुम भी बिलकुल भूल गए हो कि तुम कौन हो। और जन्मों-जन्मों में तुम बहुत जगह गए हो, बहुत यात्राएं की हैं। और उन यात्राओं में तुम अभी भी भटक रहे हो। कोई चाहिए जो सूत्र पकड़ा दे; तुम्हें थोड़ी सी याद आ जाए; तुम अपने घर के सामने खड़े हो जाओ। एक बार याद आ जाए तुम्हें भीतर के परमात्मा की, फिर सब धीरे-धीरे याद आ जाएगा। समस्त ध्यान की प्रक्रियाएं इसी बात की कोशिश हैं कि तुम्हें अपनी थोड़ी सी स्मृति आ जाए। किसी तरह शरीर से एक क्षण को भी तुम छूट जाओ, तो तुम प्रकृति से छूट गए। किसी तरह क्षण भर को मन बंद हो जाए तो तुमने इस भटकाव में जो शब्द और सिद्धांत और शास्त्र इकट्ठे कर लिए हैं, उनको तुम भूल गए। जिस क्षण शरीर 132
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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