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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ गरु के इतने पास होना, इतने पास होना जितने हो सको, फिर भी एक फासला रखना। अगर तुम अपनी आत्मा में थिर रहे तब तो फासला रहेगा। एक मंदिर तो बनेगा; तुम गुरु के साथ उस मंदिर को उठाने में एक स्तंभ हो जाओगे। लेकिन स्तंभ दूर-दूर होते हैं। एक ही छप्पर को सम्हालते हैं, लेकिन उनका स्वतंत्र व्यक्तित्व होता है। जो गुरु शिष्य के व्यक्तित्व को मार दे, वह गुरु नहीं है। जो गुरु शिष्य के व्यक्तित्व को निखार दे, इतना निखार दे कि अब शिष्य अपने होने से तृप्त हो जाए, संतुष्ट हो जाए, वही गुरु है। मुझे देख कर तुम्हारे मन में अभीप्सा उठे ऊंचाइयां छूने की, ठीक है। लेकिन मेरी जैसी ऊंचाइयां नहीं; तुम्हारी जैसी ही ऊंचाइयां। मुझे देख कर तुम्हें अभीप्सा उठे परमात्मा को पाने की, लेकिन वह प्यास तुम्हारी हो। वह प्यास को तुम मेरे शब्दों में मत बांधना। तुम्हारा संगीत तुमसे उठेगा। मेरे संगीत को देख कर तुम्हें अपने संगीत की याद आ जाए, बस काफी है। तुम भी खिलोगे, लेकिन तुमसे जो सुवास निकलेगी वह तुम्हारे ही फूल की होगी, वह मेरी नहीं होगी। मेरी सुवास से तुम्हें अपनी सुवास का भूला हुआ स्मरण आ जाए, विस्मृति हो गई है जिसकी उसकी स्मृति आ जाए, बस इतना काफी है। जिस दिन तुम खिलोगे तो मेरे जैसी तुम्हारी सुवास नहीं होगी, तुम्हारी सुवास तुम्हारे जैसी होगी। होना भी यही । चाहिए। पता नहीं तुम चंपा के फूल हो; पता नहीं तुम चमेली के फूल हो; पता नहीं तुम कमल हो। पता नहीं तुम कौन हो। क्योंकि जब तक तुम्हारा बीज नहीं टूटा है, पता भी कैसे हो सकता है। बीज से तो पहचानना मुश्किल है। अनंत बीज हैं, और हर बीज का अपना ही फूल है। और वह एक ही बार खिलता है। फिर दोबारा इस पृथ्वी पर वह नहीं खिलेगा। इसलिए इस पृथ्वी को तुम उसकी सुगंध से वंचित मत करना। नकलची मत बन जाना। दो शब्द हैं हमारे पास : अनुकरण और अनुसरण। अनुसरण तो करना गुरु का, अनुकरण मत करना। अनुसरण का मतलब है : गुरु की प्रज्ञा, गुरु का बोध, गुरु की समझ को आत्मसात करना। अनुकरण का अर्थ है : जैसा गुरु है, वैसा होने की कोशिश करना। शिष्य सीखता है; सीखता है अपनी ही नियति को पाने के लिए। सदगुरु तुम्हें अपने ढंग में नहीं ढालना चाहता, और सदशिष्य कभी किसी के ढंग में ढलना नहीं चाहता। ढंग तो तुम्हारा हो। ऐसा हुआ, एक मुसलमान फकीर था, जुनून। इजिप्त में हुआ। वह कहा करता था कि परमात्मा ने सभी चीजें पूर्ण बनाई हैं, क्योंकि पूर्ण से पूर्ण ही पैदा हो सकता है। जैसा ईशावास्य उपनिषद में कहा है कि उस पूर्ण से पूर्ण ही पैदा होता है और फिर भी पीछे पूर्ण छूट जाता है, ऐसा जुनून भी कहा करता था कि परमात्मा ने हर चीज पूरी बनाई है। गांव में एक तार्किक था। तार्किक भी था, बड़ा पंडित भी था। वह एक दिन जुनून को सुनने आया। जुनून ने कहा कि परमात्मा ने हर चीज परिपूर्ण बनाई है। उस तार्किक ने कहा, रुको! वह एक आदमी को साथ ले आया था, एक कुबड़े को। जो बिलकुल झुका जा रहा था, जिससे खड़े होते नहीं बनता था, जिसके हाथ-पैर तिरछे थे, जिसकी कमर बिलकुल झुक गई थी। उसने कहा कि देखो इस आदमी को! यह भी पूर्ण है? और यह भी परमात्मा ने बनाया? जुन्नून हंसा और उसने कहा कि इससे पूर्ण कुबड़ा हमने कभी देखा ही नहीं। बहुत कुबड़े देखे; यह परिपूर्ण है। परमात्मा ने परिपूर्ण से कुछ कम बनाया ही नहीं। तुम भी परिपूर्ण हो। बस जरा याद दिलानी है, सुरति जगानी है। जरा सा होश सम्हालना है। मेरे जैसे होने की भूल कर भी चेष्टा मत करना। वह तो तुम हो न पाओगे। और उस होने में तुम जो हो सकते थे वह भटक जाएगा। तब तुम मुझे कभी क्षमा न कर पाओगे। मैंने कभी चाहा न था कि तुम मेरे जैसे होओ, लेकिन अगर तुम उसमें लग गए तो तुम मुझसे सदा नाराज रहोगे। तुम मुझे फिर कभी क्षमा न कर पाओगे। क्योंकि मैंने तुम्हारी एक जिंदगी खराब कर दी। ध्यान रहे, मैं अपने हाथ बिलकुल खींचे लेता हूं; मेरी जिम्मेवारी बिलकुल नहीं है। अगर कभी तुम पछताओ तो दोष मुझे मत देना। वह मैंने कभी चाहा ही नहीं था। 130
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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