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________________ मुझसे भी सावधान रहना 129 तुम स्वयं परमात्मा की कृति हो । तुम्हें सुधारने का कोई भी उपाय नहीं है । कोई जरूरत भी नहीं है । तुम्हें सुधारने वालों ने ही तुम्हें इस दुर्दशा में पहुंचा दिया है। तुम सिर्फ अपने प्रति जागो। तुम अपने भीतर उसे खोज लो जो परमात्मा का दान है, प्रसाद है। तुम अपने खजाने से थोड़े परिचित हो जाओ । तो मैं यहां तुम्हें कोई अनुकरण करने के लिए नहीं कह रहा हूं। अगर अनुकरण करना है तो अपने भीतर का; अगर कहीं जाना है तो अपने भीतर; अगर कहीं पहुंचना है तो अपने भीतर । तुम मुझसे सदा सावधान रहना। क्योंकि खतरा हो सकता है। मेरे बिना चाहे भी खतरा हो सकता है। क्योंकि तुम मुझे भी दूसरे गुरुओं जैसा ही सोचोगे। तुमने बहुत गुरुओं के पास बहुत कुछ सीखा है। वह कचरा तुम यहां भी ले आए हो। तो जब मैं तुमसे कुछ कहूंगा तो तुम उसी कचरे से उसकी व्याख्या करोगे। मैं यहां हूं कि तुम्हें तुम जैसा बनने में सहायता दे सकूं। और अगर जरा भी तुम्हें ऐसा लगे कि तुम मेरी नकल पर उतारू हो गए हो तो भाग खड़े होना, लौट कर पीछे मत देखना। क्योंकि नकल खतरनाक है। नकल से सावधान रहना । सब नकल हीनता की ग्रंथि से पैदा होती है। और तुम हीन नहीं हो। तुम्हारे पास सब है जो होना चाहिए। बस तुम्हें पता नहीं है। खजाने पर बैठे हो, चाबी खो गई है । चाबी भी कहीं दूर नहीं खो गई है, कहीं तुम्हारे ही भीतर खो गई है। उसे खोज लेना है । तुम्हारा मार्ग परमात्मा से सीधा जुड़ा है। एक बार तुम भीतर उतरे कि तुम सीधे ही जुड़ जाते हो। तब तुम गुरु को धन्यवाद इसलिए नहीं देते कि उसने तुम्हें परमात्मा से मिला दिया, बल्कि इसलिए देते हो कि वह तुम्हारे और परमात्मा के बीच में खड़ा न हुआ, जब वक्त आया तो चुपचाप हट गया। साधारण जिनको तुम गुरु कहते हो वे तुम्हें परमात्मा से मिलने न देंगे। बात वे परमात्मा के मिलाने की करेंगे, लेकिन सदा वे बीच में खड़े रहेंगे। वे दीवाल हैं, द्वार नहीं। जो भी किसी को कह रहा है कि मैं आदर्श हूं, मेरे जैसे हो 'जाओ, वह आदमी जहर फैला रहा है। मेरा प्रेम है बुद्ध से, क्राइस्ट से, कृष्ण से, लाओत्से से । लेकिन उस प्रेम के कारण न तो मैं लाओत्से जैसा हो गया हूं, न बुद्ध जैसा, न क्राइस्ट जैसा । मैं हूं तो अपने जैसा। अगर मैं लाओत्से पर भी बोलता हूं तो मैं वही बोल रहा हूं जो मैं बिना लाओत्से के बोलता । लाओत्से तो बहाना है। पुरानी खूंटी है; काम योग्य है; कुछ टांगा जा सकता है। बल्कि कह तो मैं वही रहा हूं जो मैं कहूंगा; लाओत्से पैदा न भी हुआ होता तो भी कहता। मैं लाओत्से के बहाने अपने को ही कह रहा हूं। कृष्ण के बहाने भी अपने को कह रहा हूं। इसलिए यह कुछ पक्का मत समझना कि लाओत्से तुम्हें मिल जाए और तुम पूछो कि मैंने ऐसा ऐसा लाओत्से के संबंध में कहा है तो जरूरी नहीं कि वह राजी हो । आवश्यकता भी नहीं है। हो सकता है वह राजी न हो। कृष्ण से तुम पूछो कि मैंने जो गीता की व्याख्या की है उससे वे राजी हैं? जरूरी नहीं कि वे राजी हों। पूरी संभावना तो यह है कि वे राजी नहीं होंगे। क्योंकि वे उन जैसे, मैं मैं जैसा। जो मैं कह रहा हूं वह मैं ही कह रहा हूं। लाओत्से, कृष्ण, बुद्ध तो बहाने हैं। तुम ऐसा समझ ले सकते हो कि वे हुए हों, न हुए हों, कोई फर्क मुझे पड़ता नहीं। तुम पूछ सकते हो कि मैं क्यों उनके नाम से कुछ कह रहा हूं ? प्रेम मेरा उनसे है । और वास्तविक प्रेम तभी संभव है जब तुम प्रेमी जैसे न हो जाओ। नहीं तो प्रेम खो जाएगा। क्योंकि दो व्यक्ति जब बिलकुल एक जैसे हो जाते हैं तो दोनों के बीच का आकर्षण खो जाता है। शिष्य जब बिलकुल गुरु जैसा हो जाएगा तो दोनों के बीच का आकर्षण खो जाएगा। आकर्षण तो होता है विरोध में; विरोधी ध्रुवों में आकर्षण होता है। खलील जिब्रान ने कहा है कि तुम प्रेम तो करना, लेकिन प्रेमपात्र से एक मत हो जाना। तुम प्रेम तो करना, लेकिन मंदिर के स्तंभों की भांति, जो दूर खड़े रहते हैं और एक ही छप्पर को सम्हालते हैं। स्तंभ करीब आ जाएं, छप्पर गिर जाएगा। फासला रखना।
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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