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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ लाओत्से कहता है, 'सैन्यदल के बिना कूच करना, आस्तीन नहीं समेटना, सीधे हमलों से चोट नहीं करना, बिना हथियारों के हथियारबंद रहना।' यह न केवल व्यक्तियों के लिए, बल्कि राष्ट्रों के लिए भी सुझाव है। कमजोर आदमी जल्दी से आस्तीन समेट लेता है। असल में, कमजोर आदमी जल्दी से क्रोध में आ जाता है। क्रोध कमजोरी का लक्षण है। क्रोध का अर्थ ही है कि तुम्हारी बुद्धि की सीमा आ गई; इसके पार अब तुम बुद्ध होने को राजी हो। तुम्हारी समझ खो गई; अब तुम पागल होने को राजी हो। क्योंकि क्रोध क्षण भर के लिए आ गया पागलपन है। क्रोध की और पागल की अवस्था में भेद समय का है, गुण का नहीं है। क्रोध का अर्थ है टेंपरेरी, अस्थायी पागलपन। और पागलपन का अर्थ है स्थायी क्रोध। पागल चौबीस घंटे उत्तेजित है। उसने समझ को बिलकुल ही ताक पर रख दिया। तुम कभी-कभी ताक पर रखते हो। फिर थोड़ी देर बाद फिर उठा कर सम्हाल लेते हो, कि गलती हो गई, पछतावा कर लेते हो। लेकिन क्रोध में तुम जो करते हो वह पागल ही कर सकता है। तुम अगर क्रोध में अपनी अवस्था देखना चाहो तो कभी आईने के सामने खड़े होकर क्रोध की सब भाव-भंगिमा करना। तब तुम्हें पता लगेगा, कैसे सुंदर तुम दिखाई पड़ते हो जब तुम क्रोध में आ जाते हो! उचकना, ' कूदना, गाली देना, चीजें तोड़ना-फोड़ना; आईने के सामने जरा देखते रहना अपने को। यही तुम्हारी क्रोध की स्थिति है। क्रोध में तुम बताते हो कि तुम विकसित नहीं हो पाए, तुम्हारे पास चैतन्य की क्षमता नहीं है। क्रोध का अर्थ है कि तुम अपने भीतर नहीं हो, बाहर हो। तो कोई भी तुम्हें हिला देता है बाहर से; कोई भी डांवाडोल कर देता है। जरा सी बात, और तुम्हारा संतुलन खो जाता है। यह संतुलन है ही नहीं; किसी तरह तुम अपने को सम्हाले हो। 'आस्तीन नहीं समेटना, सैन्यदल के बिना कूच करना, सीधे हमलों से चोट नहीं करना, बिना हथियारों के हथियारबंद रहना।' इस लाओत्से के वचन पर एक पूरा शास्त्र जूडो का निर्मित हुआ है। और वह शास्त्र यह है कि सीधा हमला न करना। जूडो का प्रशिक्षार्थी जब किसी से लड़ता है तो हमला नहीं करता, हमला झेलता है। जूडो की पूरी कला है हमले को झेलना। और हमले को इस तरह झेलना कि शरीर में कोई प्रतिशोध और प्रतिरोध न हो। समझो कि आप एक घूसा मुझे मारें। तो जो सहज सामान्य वृत्ति होगी वह यह होगी कि चूंसे के विपरीत मैं अपने हाथ को खड़ा कर दूं, ताकि हाथ पर घुसा पड़ जाए और मेरे चेहरे को नुकसान न पहुंचे। लेकिन हाथ अकड़ा होगा, हड्डी सख्त होगी। क्योंकि जब कोई हमला कर रहा है तो जितना हाथ अकड़ा होगा—यह हमारा खयाल है-उतनी ही चोट आसानी से बचाई जा सकेगी, क्योंकि हाथ अकड़ा होगा तो शक्तिशाली होगा। जूडो कहता है, बिलकुल गलत है बात। दूसरे की चोट से तुम्हारा हाथ नहीं टूटता, तुम्हारी अकड़ से टूटता है। क्योंकि दूसरा एक ऊर्जा फेंक रहा है चूंसे के द्वारा, और तुम्हारा हाथ अकड़ा है। उस ऊर्जा और तुम्हारे हाथ में संघर्ष हो जाता है। अकड़ की वजह से हड्डी टूट जाती है। तुम कहोगे लोगों से जाकर कि इसने मेरी हड्डी तोड़ दी। जूडो कहता है, तुम गलती बात कर रहे हो; हड्डी तुमने खुद तोड़ ली। काश तुम हड्डी को लोचपूर्ण रखते! भीतरी, बारीक फासला है। तुम हड्डी को ऐसे रखते जैसे यह आदमी चोट करने नहीं आ रहा, आलिंगन करने आ रहा है, प्रेम करने आ रहा है। और तुम्हारी तो दशा इतनी विकृत हो गई है कि कोई आलिंगन भी करे तो भी तुम हड्डी को मजबूत रखते हो कि पता नहीं क्या इरादा हो। कभी तुमने गौर किया कि कोई तुम्हें आलिंगन में भर ले तो भी तुम सम्हले रहते हो। चारों तरफ देखते हो, कोई...इसका इरादा क्या? मुस्कुराते हो, लेकिन छूटना चाहते हो। हड्डी अकड़ी रहती है आलिंगन में भी। इसलिए प्रेम तक भी तुम में प्रवेश नहीं कर पाता। 116
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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