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आक्रामक बही, आक्रांत ठोबा श्रेयस्कर है
बच्चा तो इज्जत का सवाल है। अगर प्रथम न आया तो घर में कोई सम्मान न मिलेगा। मां-बाप पीछे लगेंगे कि प्रथम आओ। क्योंकि यह शिक्षण है प्रथम होने का। आज नहीं कल बाजार में फिर इसका उपयोग करना है। अगर अभी से तुम ढीले पड़े और पीछे खड़े होने को राजी हो गए, तो जिंदगी में क्या करोगे? जिंदगी में बड़ी लड़ाई है। छोटे से बच्चे में जहर डालना शुरू हो जाता है। फिर जिंदगी भर यह जहर चलता है-धन, मकान, पद, प्रतिष्ठा-सब जगह प्रतिस्पर्धा है। किसी को हराना है, किसी को चारों खाने चित्त करना है।
लाओत्से कहता है, अगर कोई तुम्हें चारों खाने चित्त करने आए, उसे कष्ट भी मत देना, तुम खुद ही लेट जाना, चारों खाने चित्त हो जाना। और उससे कहना, तू बैठने का छाती पर थोड़ा मजा ले ले जितना तुझे लेना हो, फिर जब तुझे जाना हो चले जाना।
वह आदमी का तुमने मजा ही छीन लिया उस आदमी का। क्योंकि मजा तो तुम्हारे लड़ने में और तुम्हारे हराए जाने में था। अगर तुम लड़े ही न, मजा ही गया। वह आदमी कहेगा, लेटे रहो, हम कहीं किसी और को खोजते हैं। तुमसे क्या सार है! तुम पड़े रहो चारों खाने चित्त; तुम्हारे ऊपर कोई आकर नहीं बैठेगा। क्योंकि उसमें मजा ही क्या है तुम्हारे ऊपर बैठने में? तुम लड़ते ही नहीं। तुम हारे ही हुए हो। मजा तो है कि तुम्हें हराया जाए। मजा तो यह है कि तुम लड़ो। और जितना बड़ा दुश्मन हो उतना ज्यादा मजा है। जितना शक्तिशाली दुश्मन हो उतना ज्यादा मजा है। ऐसे दुश्मन से क्या सार! क्योंकि इससे अहंकार को कोई भोजन न मिलेगा।
लाओत्से इसलिए कह रहा है कि तुम न तो खुद अपने अहंकार को बढ़ाओ और न अपने कारण दूसरे के अहंकार को भोजन दो। क्योंकि वह भी पाप है। तुम उसको भी गलत इंद्रधनुषों में उलझा रहे हो। तुम खुद उलझ रहे हो और दूसरे को उलझा रहे हो। तुम हार ही जाओ। तुम सर्वहारा हो जाओ।
और जो सर्वहारा हो गया वही संन्यासी है। अब उसकी किसी से कोई वैमनस्य की दशा न रही। महावीर कहते हैं, मित्ति मे सब्ब भुए सू वैरं मज्झ न केणई। सबसे मेरी दोस्ती है, और किसी से मेरा वैर नहीं। यह तभी घट सकता है जब तुम सर्वहारा होने की कला सीख लो। और यह बड़ी से बड़ी कला है। और पृथ्वी उसी दिन स्वर्ग बन सकेगी जिस दिन इस कला के व्यापक विस्तार की संभावना हो जाएगी कि सब शिक्षणशालाएं विनम्रता सिखाएंगी, 'प्रथम होने का अहंकार नहीं; कि मां-बाप हारना सिखाएंगे, जीतना नहीं; कि सम्मान उसका होगा जो पीछे हट जाता है, उसका नहीं जो आगे बढ़ जाता है।
बड़ी पुरानी कथा है चीन में कि एक अजनबी विदेश से आया। वह जैसे ही उतरा नाव से, घाट पर बड़ी भीड़ लगी देखी। दो आदमी लड़ रहे थे। दोनों लाओत्से के अनुयायी मालूम पड़ते। बड़ा झगड़ा चल रहा था। बड़ी गालियां दे रहे थे, चूंसे उठाते थे, दौड़ते थे। लेकिन हमला नहीं हो रहा था। बस यह सब बातचीत चल रही थी। और चेहरे पर क्रोध भी नहीं था उनके। गालियां भी दे रहे थे, लेकिन क्रोध भी नहीं था। वह अजनबी बड़ा हैरान हुआ। थोड़ी देर खड़ा देखता रहा, फिर उसने कहा, यह मामला क्या है! इतने जोश में दिखाई पड़ते हैं, लेकिन टूट क्यों नहीं पड़ते? और यह भीड़ खड़ी क्या देख रही है?
तो लोगों ने कहा कि भीड़ यह देख रही है कि जो पहले टूट पड़े वह हार गया। बस भीड़ विदा हो जाएगी। बात खतम हो गई। ये एक-दूसरे को उकसा रहे हैं कि पहले तुम आक्रमण कर दो, क्योंकि जिसने आक्रमण कर दिया वह हार गया। इनकी पूरी कोशिश यह है कि दूसरा इतना प्रोवोकेशन में आ जाए, इतना उत्तेजित हो जाए कि हमला कर बैठे। बस हमला किया कि भीड़ विसर्जित हो जाएगी। बात खतम हो गई। जिसने हमला किया वह हार गया।
___कभी ऐसी दुनिया बनेगी जब हमला करने वाला हारा हुआ समझा जाएगा; तब जीवन एक नयी यात्रा पर निकलेगा।
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