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________________ आक्रामक नहीं, आक्रांत होना श्रेयस्कर हैं 113 तुम्हारे अमृत की शुभ्र रेखा दिखाई पड़ती है, अन्यथा दिखाई नहीं पड़ती। मर कर ही जानता है कोई अमृत क्या है; मिट कर ही जानता है कोई सनातन क्या है, शाश्वत क्या है। क्षणभंगुर टूटता है सपना तो शाश्वत का सूर्योदय होता है। लाओत्से कहता है, आक्रांत होना उचित है। अहंकार को दौड़ाओ मत, गिरा दो । 'एक इंच आगे बढ़ने की बजाय एक फुट पीछे हटना श्रेयस्कर है।' अगर लाओत्से की सुनी जाए बात तो यह सारी पृथ्वी शांति से भर सकती है। लेकिन जिनकी बात चलती है, जिनका सिक्का चलता है, वे चाणक्य और मैक्यावेली हैं। लाओत्से का सिक्का चलता नहीं। और जिस पर चल गया, उसने परम आनंद को जान लिया। हट जाओ पीछे। लाओत्से ने एक पूरा का पूरा निरहंकार - रणनीति का शास्त्र निर्मित किया है। वह कहता है, जो हट जाए वही सम्मान योग्य है। उलटी ही उसकी धारणा है। वह कहता है, जो हट जाए वही सम्मान योग्य है। हम हटने वाले को कायर कहते हैं। हम कहते हैं, जो हट जाए वह कायर है । और हमारी इन्हीं धारणाओं ने मनुष्य को युद्धों से भर दिया है। जो हट जाए वह विनम्र है, हमने ऐसा क्यों न कहा ? और धारणाओं पर बहुत कुछ निर्भर करता है। दो आदमी लड़ते हैं। तो जो छाती पर चढ़ जाता है उसको हम फूलमालाएं पहनाते हैं। जो हार गया, जो जमीन पर चारों खाने चित्त पड़ा है, उसको कोई उठाने भी नहीं जाता। तुम हिंसा का इतना सम्मान क्यों करते हो? यह जो आदमी छाती पर चढ़ गया है यह हिंसक है, यह जंगली जानवर जैसा है। इसलिए तुम अपने पहलवानों को देखो। तुम्हारे जो बड़े पहलवान हैं वे जंगली जानवरों जैसे दिखाई पड़ेंगे। यह कोई शरीर का सौष्ठव नहीं है। और न ही तुम्हारे पहलवानों के शरीर स्वस्थ होते हैं। सभी घातक बीमारियों से मरते हैं। गामा टी बी से मरता है। और चालीस साल के बाद सभी पहलवान अड़चन में पड़ना शुरू हो जाते हैं। ★ क्योंकि शरीर के साथ उन्होंने जबरदस्ती की है। ये जो उनकी फूली हुई मसलें दिखाई पड़ती हैं ये जबरदस्ती और अपने शरीर के साथ की गई हिंसा के सबूत हैं। यह जंगलीपन है । यह कोई शरीर का सौष्ठव नहीं है, न कोई शरीर का सौंदर्य है। यह पशुता है। और एक आदमी दूसरे को चारों खाने चित्त कर देता है इसको हम विजेता मानते हैं, हिंद केसरी ! यह पागलों की दुनिया मालूम पड़ती है। तुम सम्मान हिंसा को क्यों देते हो ? दुष्ट को क्यों देते हो? तुम कायर क्यों कहते हो जो हार गया ? मूल्य बदल जाएं, अगर जो हार गया उसको तुम विनम्र कहने लगो, जीवन की पूरी व्यवस्था बदल जाए। जो हट गया उसको तुम शिष्ट कहो, जो आगे बढ़ गया उसको तुम अशिष्ट कहो, तो जीवन और नयी यात्रा पर निकल जाए। कभी न कभी लाओत्से सुना जाएगा। क्योंकि मैक्यावेली और चाणक्य दुनिया को जहां ले आए हैं, वह कोई अच्छी दशा नहीं है। युद्ध और युद्ध, कलह और कलह, और हर जगह गलाघोंट प्रतिस्पर्धा है । और जो आदमी जितने लोगों के गले घोंट दे उतना महान हो जाता है। और जो आदमी जितने लोगों के सिरों की सीढ़ियां बना ले और बैठ जाए सिंहासन पर, वह विजेता हो जाता है। तुम्हारे मूल्यांकन पागलपन के मूल्यांकन हैं। यह नीति नीति नहीं मालूम पड़ती। तुम्हारी राजनीति, राजनीति नहीं मालूम पड़ती, अनीति मालूम पड़ती है। कोमल को, विनम्र को तुम्हारे जीवन - शास्त्र में कोई भी जगह नहीं है। तूफान आता है, बड़े वृक्ष गिर जाते हैं, लड़ते हैं, घास का पौधा बच जाता है। लेकिन घास के पौधे का तुम्हारे मन में कोई सम्मान नहीं है। तुमने विनम्रता की शक्ति बिलकुल नहीं पहचानी। तुम यही कहे चले जाते हो कि टूट जाना भला, लेकिन झुकना मत। और झुकना लोच है। और झुकना जीवंतता है। जो नहीं झुक सकता वह बूढ़ा है, उसकी हड्डियां अकड़ गई हैं, पक्षाघात से भरा है। किसी न किसी दिन लाओत्से समझ में आएगा तो तुम जिनका सम्मान करते थे उनको तुम पैरालाइज्ड कहोगे, और जिनको तुमने फूलमालाएं पहनाई थीं, हिंद केसरी कहा था, उनको तुम जंगली जानवर मानोगे। वैसे तुम्हारे
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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