SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आक्रामक बहीं, आक्रांत ठोबा श्रेयस्कर है भर की यह तलम्हें फंसाया हुलने चाहिए से इस सबको छोड़ कर जाता है तो तुम कहते हो : एस्केपिस्ट है, पलायनवादी; देखो भाग खड़ा हुआ। तो तुम दूसरों को भी नहीं भागने देते। घर में आग लगी हो और अगर कोई घर के बाहर जाता है तो तुम कहते होः एस्केपिस्ट है, पलायनवादी है, भगोड़ा है; देखो भाग रहा है। तो न केवल तुम अपने को रोकते हो, अहंकारियों की भीड़ दूसरों को भी निकलने नहीं देती। समझ में भी किसी को आ जाए तो भी तुम सब तरह की बाधा खड़ी करते हो कि वह निकल न जाए। क्योंकि न केवल उसके भागने से यह सिद्ध होगा कि उसने जान लिया जहां दुख था वहां सुख की भ्रांति हुई थी, उसके भागने से तुम्हें अपने पैरों पर भी अविश्वास आ जाएगा। और एक के भागने से अनेक को यह हिम्मत आनी शुरू हो जाएगी कि हम भी भाग जाएं। इसलिए तुम एक को भी भागने नहीं देते। लेकिन इस सूत्र को खयाल में रख लेना : जहां-जहां तुम सुख पहले चरण में पाओ, समझ लेना कि धोखा है। क्योंकि पहले चरण में अगर सुख मिलता होता तो सारा संसार कभी का सुखी हो गया होता। सुख तो अंतिम चरण की उपलब्धि है। सुख तो पुरस्कार है। सुख तो पूरी जीवन-यात्रा का निचोड़ है। सुख तो सार है सारे अनुभवों का। सुख खुद कोई अनुभव नहीं है; सुख तो सारे अनुभवों के बीच से गुजर कर तुम्हें जो प्रौढ़ता उपलब्ध होती है, जो जागृति आती है, उस जागृति की छाया है। सुख अपने आप में कोई अनुभव नहीं है; सुख जागे हुए आदमी की प्रतीति है। और जागना तो मंजिल पर होगा, अंत में होगा। प्रथम तो तुम कैसे जाग सकोगे? इसलिए जहां-जहां सुख हो वहां-वहां सावधान हो जाना। और अहंकार की यह तरकीब अगर तुम्हारी समझ में आ जाए तो बहुत कुछ साफ हो जाएगा। अहंकार की यह रणनीति है। इसी तरह उसने तुम्हें फंसाया है-व्यक्ति को भी, समाज को भी, राष्ट्रों को भी, सभ्यताओं को भी। इस अहंकार की रणनीति के कुछ सूत्र समझ लेने चाहिए तो लाओत्से आसान हो जाएगा। लाओत्से अहंकार की रणनीति के बिलकुल विपरीत है। लेकिन दुनिया में दो आदमी हुए हैं जो अहंकार की रणनीति के बड़े से बड़े प्रस्तोता हैं। एक आदमी हुआ पश्चिम में, मैक्यावेली; और एक आदमी हुआ भारत में, चाणक्य। उनके नाम ही अलग हैं, उनकी बुद्धि बिलकुल समान है। मैक्यावेली कहता है कि सुरक्षा का सबसे बड़ा उपाय आक्रमण है। दि ग्रेटेस्ट डिफेंस इज़ टु अटैक। और कभी दुश्मन को मौका मत दो कि वह हमला तुम पर करे। क्योंकि वह तो हार की शुरुआत हो गई। हमेशा आक्रमण तुम करो; आक्रांत दूसरे को होने दो। एक बार दूसरे ने हमला कर दिया तो तुम्हारी हार तो शुरू हो गई। आधे तो तुम हार ही गए। कभी मौका मत दो दूसरे को आक्रमण करने का। इसके पहले कि कोई आक्रमण करे तुम आक्रमण कर दो। तो तुम्हारी जीत सुनिश्चित होती है। - क्यों ऐसा होता होगा? क्योंकि अहंकार के भीतर बड़ा भय भरा हुआ है। अहंकार बिलकुल रेत का भवन है। या तो तुम दूसरे को डरा दो, अन्यथा दूसरा तुम्हें डरा देगा। और एक बार तुम डर गए तो सम्हलना मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि अहंकार का भवन आश्वस्त नहीं है। भीतर कोई आश्वासन नहीं है; भीतर तो तुम कंप ही रहे हो। और एक बार अगर दूसरे ने हमला कर दिया और कंपकंपी तुम्हारी बाहर आ गई, तो न केवल तुम कंपोगे, दूसरे भी जान लेंगे कि तुम कंप रहे हो। और दूसरों की आंखों में देख कर अपना कंपन तुम इतने कंप जाओगे कि तुम गिर जाओगे। तो अच्छा यह है कि तुम दूसरे पर पहले हमला कर दो, ताकि उसकी कंपकंपी बाहर आ जाए, उसका भय बाहर आ जाए, वह घबड़ा जाए। वह अगर घबड़ा गया तो हार हो गई। ___ अहंकार के भीतर भय छिपा है। सभी अहंकारों के भीतर भय छिपा है। और भय के छिपने का कारण है। क्योंकि अहंकार की मृत्यु होने वाली है। अहंकार वास्तविक नहीं है; इंद्रधनुष जैसा है; क्षण भर का खेल है। क्षण भर का संयोग है कि आकाश में बदलियों में पानी के कण लटके हैं और सूरज की किरणें उन पानी के कणों से गुजर रही 107
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy