SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग ६ मुल्ला ने भी सूप चखा। वह तो जलती आग था। उसकी भी आंख से आंसू बहने लगे, लेकिन वह भी पीए चला गया। पत्नी ने पूछा, क्या बात है मुल्ला, तुम्हारी आंख से आंसू क्यों बह रहे हैं? तो उसने कहा, मेरी आंख से इसलिए आंसू बह रहे हैं कि तुम्हारी मां मर गई, और तुम्हें क्यों छोड़ गई! तुम्हें भी ले जाती तो अच्छा होता। जीवन में रोज छोटे-छोटे कामों में भी तुम्हारा मूल जीवन-दर्शन प्रकट होता है। तुम भूल स्वीकार नहीं कर सकते। अहंकार कभी भूल स्वीकार नहीं कर सकता। क्योंकि अगर भूल स्वीकार की तो ज्यादा देर न लगेगी जब कि तुम्हें यह भी पता चल जाएगा कि अहंकार तो महा भूल है। इसलिए अहंकार कोई भूल स्वीकार नहीं करता। क्योंकि कहीं से भी भूल स्वीकार की गई तो ज्यादा देर न लगेगी कि तुम पाओगे कि अहंकार तो महा भूल है। इसलिए अहंकार भूलों का निषेध करता है, इनकार करता है; वह उनको स्वीकार नहीं करता। और अहंकार की बड़ी से बड़ी भूल यह है कि जो अंत में दुख देता है, उसमें प्रारंभ में वह सुख देखता है। जहां-जहां प्रारंभ में सुख दिखाई पड़े वहां-वहां अंत में तुम पाओगे कि दुख मिलेगा। क्योंकि सुख इतना सस्ता नहीं हो सकता कि प्रारंभ में मिल जाए। सुख तो यात्रा की मंजिल की सुवास है। वह यात्रा का पहला पड़ाव नहीं है, न द्वार है। वह तो यात्रा का अंत है। सुख तो उपलब्धि है। इसलिए जहां-जहां पहले सुख मिलता है वहां-वहां पीछे दुख मिलेगा। और जहां-जहां पहले दुख दिखाई पड़ता है, अगर तुमने साहस रखा तो तुम पाओगे कि पीछे वहीं से महा सुख के द्वार खुलते हैं। दुख को झेलने की जिसकी क्षमता है वही सुख को पा सकेगा। दुख को सुखपूर्वक झेल लेने की जिसकी सामर्थ्य है महा सुख उस पर बरसेगा। लेकिन जिसने कहा कि दुख को मैं झेलना ही नहीं चाहता, मैं तो पहले ही कदम पर सुख चाहता हूं, वह आटे के लोभ में बड़े कांटों में उलझ जाएगा। तो अहंकार का एक जीवन-दर्शन है जो शुरू में सुख का आभास खड़ा करता है, सब तरफ फंदा है वहां। वहां एक दफा भीतर उतर गए तो लौटना कठिन होता जाता है। मुल्ला नसरुद्दीन का बेटा उससे पूछ रहा था कि अब मैं एक लड़की के प्रेम में पड़ रहा हूं, ऐसा मालूम पड़ता है। क्या आप उचित समझते हैं कि अब मैं विवाह कर लूं? मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, अभी तुम प्रौढ़ नहीं हुए, विवाह के योग्य नहीं हुए। जब प्रौढ़ हो जाओ तब मुझसे कहना। उस लड़के ने पूछा, और मैं यह भी जान लूं कि प्रौढ़ होने का लक्षण क्या है? यानि कब मेरा प्रौढ़ होना सिद्ध होगा? नसरुद्दीन ने कहा, जब तुम विवाह का खयाल ही भूल जाओगे तभी तुम प्रौढ़ हुए। जब तक तुम्हारे मन में खयाल उठता रहे कि विवाह करना है तब तक समझना अभी बचकाने हो, विवाह के योग्य नहीं। और जब तुम्हें समझ में आ जाए कि विवाह बेकार है तब तुम प्रौढ़ हो गए। तब अगर तुम्हें विवाह करना हो तो मुझसे कहना। यह कठिन शर्त मालूम पड़ती है, लेकिन जीवन की भी यही शर्त है। तुम जब तक सुख के लिए बहुत आतुर हो तब तक तुम प्रौढ़ नहीं हुए, और तुम दुख में फंसोगे। क्योंकि हर जगह दुख ने छद्म-आवरण बना रखा है सुख का। नहीं तो दुख को कौन चुनेगा, सोचो! कांटे को कौन मछली चुनेगी? कांटे को चुनने को तो कोई भी राजी नहीं है। दुख को तो कोई भी न चुनेगा इस संसार में, अगर दुख पर दुख ही लिखा हो। लेकिन सब जगह दुख पर सुख लिखा है, स्वागतम बने हैं; द्वार पर ही बैंड-बाजे बज रहे हैं कि आओ, स्वागत है! और तुम्हारा अहंकार ऐसा है कि तुम एक बार द्वार में प्रविष्ट हो जाओ तो लौटना तुम्हें अपने ही कारण मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि दुनिया में भद्द होगी; लोग हंसेंगे कि तुम गए और वापस लौट आए। फिर तो आगे ही आगे तुम चलते जाते हो। पीछे लौटना अहंकार को बहुत मुश्किल है। इसी तरह तो तुम संसार में गहरे उतर गए हो। एक दुख को छोड़ते हो, दूसरा चुन लेते हो। और भी गहन दुख में पड़ते जाते हो। और अगर कोई आदमी तुम्हारे बीच 106
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy