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असंघर्षः सारा अस्तित्व सहोदर है
ले कि तुम कितने शक्तिशाली हो। अशक्त शक्ति का दिखावा करना चाहता है। लेकिन जिसके पास शक्ति है वह दिखावे की बात ही भूल जाता है। दिखाने का कोई सवाल ही नहीं है; जो है वह है। और वह इतना आश्वस्त है उसके होने से कि अब किसी का प्रमाणपत्र तो चाहिए नहीं।
एक दूसरी कहानी है ईसप की कि सिंह गया है जंगली जानवरों से पूछने। पूछा उसने भेड़िए से कि कौन है सम्राट वन का? उसने कहा कि महाराज, आप! यह भी कोई पूछने की बात है? पूछा उसने हिरनों से। उन्होंने सामूहिक स्वर से कहा कि आप! इसमें कोई संदेह है क्या? ऐसा पूछता हुआ अकड़ से भरता हुआ वह हाथी के पास पहुंचा। और हाथी से उसने पूछा कि कौन है सम्राट वन का? हाथी ने उसे सूंड में लपेटा और फेंका कोई पचास फीट दूर। हड्डी-पसली चकनाचूर हो गई। लंगड़ाता हुआ हाथी के पास आया और कहा कि अगर उत्तर मालूम न हो तो इतना परेशान होने की क्या जरूरत! अगर उत्तर पता नहीं तो कह देते कि पता नहीं।
जिसको उत्तर पता है उसे उत्तर देना भी नहीं पड़ता। प्रमाण लेने ही वही जाता है जो संदिग्ध है। जो असंदिग्ध है उसे किसका प्रमाण चाहिए? कौन प्रमाण देगा उसे? और जिनसे तुम प्रमाण मांग रहे हो वे कौन हैं? उनके प्रमाण का कितना मूल्य है? और हम चौबीस घंटे प्रमाण मांग रहे हैं। हमारे प्राणों की बड़ी अकुलाहट है, कोई कह दे कि तुम बड़े सुंदर हो। किससे प्रमाण मांग रहे हो? कोई कह दे कि तुम बड़े बुद्धिमान हो; कोई कह दे कि तुम जैसा बहादुर कोई भी नहीं। पर तुम प्रमाण किससे मांग रहे हो? और जो तुम्हें प्रमाण दे रहा है वह कौन है? जो तुम्हारी खुशामद कर रहा है वह तुमसे भी गया-बीता होगा। उस गए-बीते के प्रमाण पर तुम्हारी बुद्धिमानी, तुम्हारा सौंदर्य, तुम्हारी बहादुरी निर्भर है।
लाओत्से कहता है कि जो वीर है, वीर सैनिक हिंसक नहीं होता।
एक बड़ी अनूठी इतिहास में घटना घटी है भारत के। और वह घटना यह है कि भारत में जितने बड़े अहिंसक पैदा हुए, सब क्षत्रिय घरों में पैदा हुए; एक भी ब्राह्मण घर में अहिंसक पैदा नहीं हुआ। ब्राह्मण घर में तो परशुराम पैदा हए, जिन जैसा हिंसक खोजना कठिन है। कहते हैं उन्होंने अनेक बार पृथ्वी को क्षत्रियों से खाली कर दिया। तो अगर ब्राह्मणों में तुम्हें खोजना हो कोई बड़े से बड़ा नाम तो वह परशुराम का है। उस नाम से ऊपर कोई नाम नहीं जाता; क्योंकि ब्राह्मणों में वही एक आदमी है जिसको अवतार होने की प्रतिष्ठा हमने दी है। और परशुराम फरसा लिए खड़े हैं। वह फरसा उनका प्रतीक हो गया। नाम तो उनका राम ही रहा होगा। परशुराम का मतलब है : फरसा वाले राम। हिंसक बड़े से बड़ा भारत ने पैदा किया परशुराम, वह ब्राह्मण घर से आया। और अहिंसक भारत ने पैदा किए-सारे अहिंसक-चौबीस जैनों के तीर्थंकर, वे क्षत्रिय; चौबीस बुद्ध, सब क्षत्रिय।
क्षत्रिय घरों से आए अहिंसक और ब्राह्मण घर से आया हिंसक; यह जरा सोचने जैसा है, मामला क्या है?
परशुराम आश्वस्त नहीं हैं। सारी पृथ्वी को क्षत्रियों से खाली कर दें तभी उनको आश्वासन मिलेगा कि वे कुछ हैं। लेकिन महावीर, बुद्ध आश्वस्त हैं। उन्हें अपने होने में कोई संदेह नहीं है। वे चींटी को भी बचा कर चलते हैं; चींटी को भी मारना उन्हें कठिन है। परशुराम को सारी पृथ्वी को क्षत्रियों से खाली कर देना आसान है।
असल में, ब्राह्मण के मन में हमेशा एक कुंठा रही है। और वह कुंठा यह है कि वह दुर्बल है, दीन है। और माना कि क्षत्रिय उसकी पूजा भी करते हैं, तो भी ताकत तो क्षत्रिय के हाथ में ही है। और माना कि पुरोहित क्षत्रिय उसे ही बनाते हैं, चरण भी उसके छूते हैं, लेकिन वास्तविक ताकत-डी फेक्टो ताकत-वह तो क्षत्रिय के हाथ में है। वह चाहे तो क्षण भर में ब्राह्मण की गर्दन उतार दे। अगर ब्राह्मण पूज्य है तो वह भी क्षत्रिय की स्वीकृति के कारण। वह जिस दिन अस्वीकार कर दे उस दिन मिट्टी में मिल जाएगा। तो ब्राह्मणों के मन में सदियों से एक पीड़ा रही है, वह है क्षत्रिय को किसी तरह नीचा दिखाने की। परशुराम तो उसी की कथा हैं। वह सारी पीड़ा ब्राह्मणों के भीतर इकट्ठी हो
ठिन है। परशुराम का वादा है। और वह कुठार
माना कि पुरोहित क्षा
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