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ताओ उपनिषद भाग ६
एक पुरोहित को बुलवाया जो पहला काम किया और कहा कि पहले मेरी शादी कर दो। पुरोहित भी चकित हुआ कि इस घड़ी में शादी!
लेकिन कारण यह था कि हिटलर सदा डरा रहा-क्या भरोसा एक अनजान-अपरिचित स्त्री? और सभी अनजान-अपरिचित हैं। किससे परिचय है किसका? अपने से ही परिचय नहीं, तो दूसरे से क्या परिचय? पता नहीं स्त्री किसी की जासूस हो, किसी से मिली हो; रात एक साथ सोना खतरनाक, असुरक्षित। अब कोई डर न रहा। उसने शादी करवाई। और शादी होने के बाद जो दूसरा काम किया वह आत्मघात। दोनों ने आत्मघात कर लिया।
इतना भयभीत आदमी! जरा-जरा सी बात से वह मूछित हो जाता था। अगर कोई उसके विपरीत कुछ कह दे, तो ऐसा कई बार हिटलर के जीवन में घटा कि उसको मिरगी आ जाती थी, विपरीत बात भी नहीं सुन सकता था। क्योंकि विपरीत का मतलब कि उसे शक आ जाता अपने पर कि मैं भी कहीं गलत हो सकता हूं। उसके निकट के लोग भी बड़े परेशान रहते थे कि उससे कहीं ऐसी कोई बात न हो जाए कि वह गिर पड़े, मिरगी आ जाए, चक्कर आ जाए, बेहोश हो जाए। उसकी हर बात माननी चाहिए। वह एक छोटे बच्चे की भांति था, जो हर छोटी बात में पैर पटकने लगेगा और सिर फोड़ने लगेगा। उनकी हर बात माननी ही चाहिए। वह हर बात का ज्ञाता है। और ज्ञान उसे कुछ भी न था। इस कमजोर आदमी ने सारी दुनिया को हिंसा में डुबा दिया। दूसरा महायुद्ध, दुनिया का बड़े से बड़ा युद्ध था। करोड़ों लोग मारे गए। भयंकर हिंसा हुई, जैसी कभी न हुई थी। और जिस आदमी के कारण हुई वह महा कायर था।
कायर हमेशा हिंसक होगा। कायर को हिंसक होना ही पड़ेगा। नहीं तो अपनी कायरता को छिपाएगा कहां? हिंसा के धुएं में ही छिपाएगा।
मैंने सुना है कि ईसप एक कहानी लिखना चाहता था, लिख नहीं पाया। किन्हीं सूत्रों से वह कहानी मुझ तक पहुंच गई, मैं तुमसे कह देता हूं। कहानी है कि एक गधे की बड़ी आकांक्षा थी कि जंगल के सम्राट सिंह से दोस्ती कर ले। गधों की सदा यही आकांक्षा होती है। और किसी तरह गधे ने सिंह को राजी कर लिया। क्योंकि गधे तरकीब जानते हैं स्तुति की, खुशामद की। असल में, गधों ने ही तो सिंह को समझा दिया है कि तुम सम्राट हो। अन्यथा इसका कोई प्रमाण है? और गधे ने बड़ी स्तुति की। सिंह प्रसन्न हो गया। उसने कहा, तुम तो वजीर बनाने योग्य हो। गधे ने कहा, आप जैसा बुद्धिमान ही केवल पहचान सकता है। बाकी लोग तो मुझे गधा समझते हैं। क्योंकि लोग समझ ही नहीं सकते; इतनी बुद्धि कहां!
सिंह ने उसे साथ ले लिया। और पहले ही दिन दोनों गए शिकार के लिए। तो गधा अपनी बहादुरी दिखाना चाहता था। दोनों रुके एक मांद के बाहर जहां कुछ जंगली भेड़ें रहती थीं गुफा में। गधा भीतर गया। उसने कहा, तुम बाहर बैठो; मैं अभी ऐसा उत्पात मचाऊंगा भीतर जाकर कि भेड़ें अपने आप बाहर आ जाएंगी। तुम मार लेना और भोजन कर लेना, और मेरे लिए भी बचा लेना।
सिंह बाहर बैठा रहा। और गधे ने निश्चित ही ऐसा भयंकर उत्पात मचाया, इतनी धूल उड़ाई, इतनी दुलत्तियां झाड़ी कि घबड़ा गईं भेड़ें और बाहर निकलने लगीं। सिंह ने खूब भोजन किया, गधे के लिए भी बचाया। और जब गधा आया तो उसने पूछा कि कहो कैसा रहा मेरा कृत्य? सिंह ने कहा कि अगर मुझे पता न होता कि तू एक गधा मात्र है तो मैं खुद भाग खड़ा होता, इतना उत्पात तूने मचा दिया था। कई बार मैंने अपने को रोका, सम्हाला, कि अरे गधा ही है। नहीं तो कई बार भागने की हालत आ गई थी।
गधा जब उत्पात मचाएगा तो अतिशय मचाएगा। जब भी कायर आदमी बहादुरी दिखाएगा तो अतिशय दिखाएगा। और दिखाने का उपाय क्या है? एक ही उपाय है कि मिटाओ, हिंसा करो, तोड़ो-फोड़ो, ताकि दुनिया जान
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