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ताओ उपनिषद भाग
गई, कि वे दीन हैं, हीन हैं, ना-कुछ हैं, भिखारी हैं। और क्षत्रिय आदर भी देता है तो भी वह उसकी मरजी है; न दे तो कुछ कर न सकोगे। और शायद आदर देना भी उसकी कुशलता है और राजनीति है; क्योंकि आदर देकर वह तुमको सांत्वना देता है। और दुनिया में सभी राजनीतिज्ञ जानते हैं कि ब्राह्मण को आदर देना ठीक है; नहीं तो ब्राह्मण उपद्रवी सिद्ध हो सकता है, भयंकर उपद्रव उससे हो सकता है। दुनिया में जितने उपद्रव आते हैं वे ब्राह्मण से आते हैं। ब्राह्मण यानी इंटेलिजेंसिया; ब्राह्मण यानी वह जो बुद्धिमान है, सोच-विचार सकता है।
भारत बहुत प्राचीन देश है, इसने समझ लिए हैं रहस्य, तो इसने ब्राह्मण को आदर दे दिया। इसलिए भारत में कभी क्रांति नहीं हो सकती; क्योंकि बिना ब्राह्मण के क्रांति करेगा कौन? क्षत्रिय शांति में उत्सुक हो सकता है, क्रांति में नहीं। ब्राह्मण क्रांति में उत्सुक होता है। क्योंकि ब्राह्मण को लगता है, हूं तो मैं इतना बड़ा जानकार, लेकिन ताकत मेरे हाथ में बिलकुल नहीं है। वह बगावत सुलगाता है, विद्रोह जगाता है। और जो हिंदुस्तान ने किया था-पांच हजार साल में कोई क्रांति भारत में नहीं हुई—उसका राज यह है कि ब्राह्मण को इतना आदर दे दिया, उसकी इतनी स्तुति कर दी। वह था कुछ नहीं; उसके भीतर कुछ भी नहीं थी ताकत। लेकिन एक ताकत थी, वह बगावत सुलगा सकता है। वह लड़ेगा नहीं; लेकिन दूसरों को लड़वा सकता है, वह दूसरों को भड़का सकता है। उसके पास वाणी । की कुशलता है, तर्क का आधार है। वह शोषित जनों को उपद्रव में उतार सकता है।
जो भारत ने किया था वही सोवियत रूस में किया जा रहा है आज। आज सोवियत रूस में लेखकों का, प्रोफेसरों का, कवियों का, वैज्ञानिकों का ब्राह्मणों का जितना आदर है उतना किसी का भी नहीं। क्योंकि सोवियत रूस भी अब क्रांति नहीं चाहता। और सोवियत रूस में तब तक क्रांति न हो सकेगी। और जो थोड़ी-बहुत चिनगारियां आती हैं, किसी पास्तरनेक सोल्झेनिस्तीन से, वे सब ब्राह्मणों की चिनगारियां हैं। कोई ब्राह्मण नाराज हो जाता है तो वह गड़बड़ शुरू करता है।
खुद ब्राह्मण उपद्रव नहीं करेगा; लेकिन उपद्रव करवा सकता है। ऐसी किताबें लिख सकता है; बगावती स्वर जगा सकता है। और कभी अगर हजारों साल का क्रोध इकट्ठा हो जाए ब्राह्मण का तो फिर परशुराम पैदा होते हैं। परशुराम हजारों साल की पीड़ा का संगृहीत रूप है। वह अवतरण है सारी हिंसा का जो ब्राह्मण में इकट्ठी हो गई। थोड़ा सोचो! किसी ने कभी सोचा नहीं ठीक से कि आखिर परशुराम को ब्राह्मणों की किस पीड़ा ने पैदा किया होगा कि परशुराम ने सात बार पृथ्वी को क्षत्रियों से खाली कर दिया! काट डाले क्षत्रिय। क्या कारण रहा होगा? क्षत्रियों से ऐसी क्या नाराजगी रही होगी?
नाराजगी गहरी है। क्षत्रिय पैर तो छूता है, लेकिन वह सिर्फ दिखावा है। तलवार उसी के हाथ में है। और ब्राह्मण को वह कितने ही ऊंचे बिठा दे, वह उसी के इशारे पर ऊंचा बैठा है। जिस दिन इशारा करेगा, नीचे उतर आना पड़ेगा।
तो ब्राह्मणों ने तो बड़े से बड़ा हिंसक पैदा किया और क्षत्रियों ने बड़े से बड़े अहिंसक पैदा किए। दो धर्म दुनिया में अहिंसक धर्म हैं : बौद्ध और जैन; दोनों क्षत्रियों से पैदा हुए।
असल में, जितना आश्वस्त हो व्यक्ति अपने साहस का उतना ही दिखाने का मोह चला जाता है। दिखाना किसको है? और बात इतनी प्रगाढ़ है कि दिख ही जाएगी। दिखाने के लिए प्रयास क्या करना है? तुम्हारे भीतर जो भी होता है वस्तुतः, तुम उसे दिखाना नहीं चाहते। जो नहीं होता वही तुम दिखाना चाहते हो। क्योंकि तुम्हें पता है, अगर तुमने न दिखाया तो किसी को दिखाई पड़ेगा कैसे? है तो है ही नहीं। - सुंदर स्त्री आभूषणों से मुक्त हो जाती है; कुरूप स्त्री कभी भी आभूषणों से मुक्त नहीं हो सकती। सुंदर स्त्री सरल हो जाती है; कुरूप स्त्री कभी भी नहीं हो सकती। क्योंकि उसे पता है, आभूषण हट जाएं, बहुमूल्य वस्त्र हट जाएं, सोना-चांदी हट जाए, तो उसकी कुरूपता ही प्रकट होगी। वही शेष रह जाएगी, और तो वहां कुछ बचेगा न।
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