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________________ पुनः अपने मूल स्रोत से जुड़ो 87 गया था बम के गिरने से और आस-पास सिवाय कूड़ा-कबाड़ और खंडहर के टूटे-फूटे सामान के कुछ भी न था । दीवारों पर छप्पर भी न था । और वह इलाका बर्बाद हो गया था। लोगों ने उसे छोड़ दिया था; उसको सुधारा भी नहीं गया था। उसको उसने अपना आवास बना लिया था। इस डाक्टर ने लिखा कि जो चीज पहली मुझे प्रभावित की वह यह थी कि उस खंडहर में वह इस तरह रह रहा था जैसे कोई किसी आलीशान महल में रह रहा हो। उसकी शालीनता का अंत नहीं था। वह इस शान से बैठा था उस खंडहर में कि बड़े-बड़े सम्राटों के महल फीके पड़ जाएं। खंडहर भी दीप्त था उसकी मौजूदगी से । और उस चिकित्सक ने लिखा है कि मैं हैरान हो गया, क्योंकि मैंने ऐसा आदमी पहले कभी देखा नहीं था । यह इतना अनूठा था । इसे कुलीनता कहता है लाओत्से । कुलीनता क्यों कहता है ? क्योंकि कुलीनता शब्द तो कुल से आता है। कुलीनता इसीलिए कहता है कि तुम्हारा मूल कुल, जहां से तुम पैदा हुए हो, वह परमात्मा है; तुम्हारा परिवार नहीं। वही तुम्हारा कुल है; वस्तुतः वही तुम्हारी कोख है। वही, जहां से सारा अस्तित्व आया है, वही माता है। वही तुम्हारा कुल है। और जिस दिन तुम परमात्मा की तरह चलने, उठने-बैठने लगोगे, जीने लगोगे, उसी दिन तुम कुलीन हो । उसके पहले नहीं। उस दिन तुम्हारी देह बूढ़ी हो, कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि देह वस्त्रों से ज्यादा नहीं है। उस दिन तुम्हारी देह पर झुर्रियां पड़ जाएं, कोई फर्क नहीं पड़ता; तुम्हारी भीतर की आभा उन झुर्रियों के पार भी प्रकट होती रहेगी। उस दिन तुम्हें बाहर की दीनता दीन नहीं बना सकेगी। उस दिन तुम्हारी संपदा इस संसार की न रही, पारलौकिक हो गई। वही संपदा संपदा भी है। इस संसार की संपदा, छिपा ले तुम्हारी दीनता को, मिटाती नहीं । तुम धनी लोगों को 'देखो। धन का अंबार उनके चारों तरफ होगा, और गौर से तुम उन्हें देखोगे, तुम उन्हें दीन पाओगे। तुम बड़े राजनीतिज्ञों को देखो। बड़ी शक्ति उनके पास होगी, वे विध्वंस कर सकते हैं, लाखों को मार-जिला सकते हैं। लेकिन अगर तुम उन्हें देखोगे तो तुम उन्हें बड़ा दीन पाओगे। जिसने भी बाहर की संपत्ति को संपत्ति समझा वह कभी संपत्तिशाली नहीं हो पाता। भीतर एक संपदा का अजस्र स्रोत है। 'जो लघु को देख सके, वह स्पष्ट दृष्टि वाला है। जो कुलीनता के साथ जीता है, वह बलवान है। प्रकाश को काम में लाओ... ।' तुम प्रकाश से ही आए हो; प्रकाश तुम्हारा स्वभाव है। उसे काम में लाओ। 4 . और स्पष्ट दृष्टि को पुनः प्राप्त करो।' क्योंकि वह दृष्टि कभी तुम्हारे पास थी । इसलिए लाओत्से कहता है, पुनः। वह कोई नई बात नहीं है । तुमने उसे खोया है; वह तुम्हारे पास थी। लेकिन शायद जरूरी है कि जो हमारे पास है, उसे जानने के लिए कि वह हमारे पास है, उसे खोना जरूरी है। नहीं तो हमें पता ही नहीं चलता कि हमारे पास क्या है, जब तक तुम खोओ न। जो भी तुम्हारे पास होता है उसे ही तुम भूल जाते हो। और उस प्रकाश ज्यादा पास तुम्हारे कुछ भी नहीं। पास कहना भी ठीक नहीं, क्योंकि पास में भी थोड़ी दूरी होती है। तुम प्रकाश हो। तुम उसे भूल गए हो। उसे भूलना जरूरी था। अब तुम जब दुबारा पाओगे तभी तुम उसे आनंद से पा सकोगे। बचपन खोना जरूरी है, क्योंकि वह मुफ्त मिलता है। मुफ्त की कोई कीमत करता है? फिर जब तुम उसे अथक श्रम और साधना से पुनः पाओगे तभी तुम समझोगे उसका मूल्य । हर चीज का मूल्य चुकाना पड़ता है। बिना मूल्य चुकाए हमें कोई चीज मूल्यवान नहीं मालूम होती । तुमने गंवाया है परमात्मा को । यह भी जीवन की एक अनिवार्य प्रक्रिया है कि गंवा कर ही तुम जब उसे श्रम से पाओगे, चेष्टा से पाओगे, तभी तुम पाओगे उसे पहली दफा। तभी तुम समझोगे कि अरे इतनी बड़ी संपदा, मैं ऐसे ही गंवा आया था! तो गंवाना भी प्रौढ़ता का अंग है। एक बार खोना जरूरी है। लेकिन खोए बैठे रहना उचित नहीं । खो चुके, अब उसकी खोज जरूरी है।
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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