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ताओ उपनिषद भाग ५
'प्रकाश को काम में लाओ, और स्पष्ट दृष्टि को पुनः प्राप्त करो। इस प्रकार अपने को बाद में आने वाली पीड़ा से बचा सकते हो।'
पीछे तो बहुत पीड़ा हो गई। अब उसको बदलने का कोई उपाय नहीं। अतीत जा चुका; अब कुछ किया नहीं जा सकता। उसके लिए बैठे मत पछताते रहो। भविष्य आ रहा है। अतीत की चिंता छोड़ो। प्रकाश को काम में लाओ, ताकि जो अतीत में हुआ वह भविष्य में न हो, वह पुनरुक्त न हो। लोग पीछे के लिए बैठे रोते रहते हैं। लोग अपने घावों को उघाड़-उघाड़ कर देखते रहते हैं। घावों में अंगुली डाल-डाल कर देखते रहते हैं। जो जा चुका, जा चुका; अब कुछ भी किया नहीं जा सकता। जो आ रहा है, जो हो रहा है, जो होने वाला है, उसे बदला जा सकता है।
लेकिन अगर तुम पछताते रहे अतीत के लिए तो भविष्य तुम्हारे लिए रुका नहीं रहेगा। वह आ ही रहा है। और तुम अतीत के लिए पछता रहे हो। और अतीत के लिए पछताने में तुम अपने को रूपांतरित भी नहीं कर पा रहे हो। फिर तुम अतीत को दुहराओगे। तुम्हारा भविष्य भी तुम्हारे अतीत की पुनरुक्ति होगा। यही दुर्भाग्य है। तुमने जो कल किया था वही तुम कल भी करोगे। क्योंकि आज को तुम गंवा रहो हो। प्रकाश को काम में नहीं ला रहे, और जीवन-ऊर्जा को उसके मूल स्रोत से नहीं जोड़ रहे। वही ध्यान है।
हम क्या सिखा रहे हैं ध्यान में? इतना ही कि तुम वापस अपने मूल स्रोत में गिर जाओ। तुम उसे भीतर लिए चल रहे हो। वह सरोवर तुम्हारे पास ही है। एक डुबकी लगानी है, और तुम नए हो जाओगे। तुम्हारी सब अतीत की धूल झड़ जाएगी। तुम्हारा सब अंधेरा मिट जाएगा। ध्यान रखो, करोड़ों-करोड़ों जन्मों का अंधेरा भी हो, दीया जल जाए तो मिट जाता है। अंधेरा यह नहीं कहता कि मैं करोड़ों वर्ष पुराना हूं, इस छोटे से दीए से कैसे मिलूंगा? और तुमने कितने ही मार्गों पर यात्रा की हो, कितनी ही धूल-धवांस इकट्ठी कर ली हो, एक डुबकी पानी में, और धूल बह जाती है। एक डुबकी अपने में, सब अतीत धुल जाता है।
बैठे पश्चात्ताप मत करो। प्रकाश को काम में लाओ। और तब अतीत में पुनरुक्ति नहीं होती, तब अतीत की पुनरुक्ति नहीं होती। तब भविष्य तुम्हारा नया होगा; सुबह की ओस जैसा ताजा, नई कोंपल जैसा नया। उस नए को द्वार दो। वह तुम्हारे द्वार पर दस्तक दे रहा है।
तुम पछता रहे हो, रो रहे हो। या तो तुम गलत करते हो या गलत करने के लिए पछताते हो। दोनों गलत हैं। गलत करना तो गलत है ही, अब गलत के लिए पछताना और भी गलत है। जो हो चुका, हो चुका; जा चुका, जा चुका। मुर्दो को दफना दो। उनको ढोने की कोई भी जरूरत नहीं है।
लाओत्से कहता है, 'इसे ही परम में विश्राम कहते हैं।'
प्रकाश को काम में ले आना, मूल में उतर जाना, छिद्रों का बंद हो जाना, द्वारों का अपने आप अवरुद्ध हो जाना, भीतर की ऊर्जा का संगृहीत होना, कुलीनता की उपलब्धि, एक समृद्धि जो भीतर की है, एक धन जो आत्मा का है-इसे ही परम में विश्राम कहते हैं। और ऐसा व्यक्ति ही परमात्मा की चोरी करने में सफल हो जाता है।
चोरी ही करनी है तो परमात्मा की करो। क्यों व्यर्थ चीजों को चुराने में लगे हो? संगृहीत ही करना है तो परमात्मा को करो। कूड़ा-कर्कट संगृहीत करके होगा भी क्या? अगर जीना ही है तो परमात्मा में जीओ। अगर मरना ही है तो परमात्मा में मरो। छोटे से राजी मत हो जाना। व्यर्थ से, छुद्र से राजी मत हो जाना।
आज इतना ही।
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